
वर्णमाला में वर्ण नहीं — भाग -2

डॉ. अशोक बत्रा, गुरुग्राम
चाय पर खूब गुलगपाड़ा हुआ। गरमागरम बहस हुईं। बहस इतनी गर्म थी कि ठंडे पकौड़े भी गर्म लगे। लोग चाय पर भी क ख और क्, ख् के शुद्ध उच्चारण का दावा ठोक रहे थे।
मिश्रा जी अपनी सीट पर बैठते हुए बोले — सर! हम कुछ भी बोलें, कमी तो आप निकाल ही देंगे। अब आप ही बता दें कि दोनों के उच्चारण में अंतर क्या है!
सारे अध्यापक मेरी ओर देखने लगे। कहने लगे — सर, हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा। आप ही रहस्य सुलझाएँ।
मैंने कहा — इसमें रहस्य कोई है ही नहीं।
खुली किताब की तरह साफ है। आप हलन्त वाले जिस वर्ण का उच्चारण करना चाह रहे हैं, उसका उच्चारण हो ही नहीं सकता।
मिश्रा जी औचक बोल पड़े — सर, यह तो आप विचित्र बात बता रहे हैं। क् का उच्चारण कैसे नहीं हो सकता?
हम क्या में, क्लेश में क् बोलते हैं।
दूसरा अध्यापक बोला — हम वाक् और सम्यक् में भी हलन्त क बोलते हैं। फिर आप यह क्यों कह रहे हैं कि क् का उच्चारण नहीं हो सकता।
एक अध्यापिका ने कहा — हम न्याय में न् का उच्चारण करते हैं और सम् में म् का उच्चारण करते हैं। फिर आप यह कैसे कहते हैं कि हलन्त व्यंजन बोले नहीं जा सकते?
एक अन्य अध्यापिका ने पूछा — क्या व्यंजन में ध्वनि नहीं है? प्, फ़् में ध्वनि नहीं है? वर्ण की परिभाषा में स्पष्ट कहा गया है — वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसके टुकड़े न हो सकें। जब वर्ण और व्यंजन में ध्वनि है तो इसे बोला क्यों नहीं जा सकता?
प्रश्न सघन होता जा रहा था। मैं और प्रश्नों की प्रतीक्षा कर रहा था।
मैंने कहा — आप सबके प्रश्न ठीक हैं। आपके उदाहरण भी ठीक हैं। क्लेश, क्या, न्याय में हलन्त व्यंजन का उच्चारण हो रहा है। परन्तु आपने मेरा प्रश्न ध्यान से नहीं सुना। मैंने पूछा था– क्या क् को उच्चरित कर सकते हैं? आप नहीं कर सकते।
क्या में क् का स्वतंत्र उच्चारण सम्भव नहीं है। इसका उच्चारण या के साथ मिलने के कारण हो रहा है। क्लेश में जो क् है, उसका उच्चारण ल् के कारण भी नहीं, अपितु उसके पीछे लगे स्वर के कारण हो रहा है।
मैंने एक प्रश्न और किया — अच्छा आप में- से कोई बताएँ कि व्यंजन किसे कहते हैं?
एक बार फिर-से बताने वालों के हाथ झंडियों की तरह लहराने लगे। एक ने रटा रटाया बता दिया — जिन ध्वनियों का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है, उन्हें व्यंजन कहते हैं।
एक अध्यापक ने पूछा — तो आप कहना चाहते हैं कि व्यंजन बोले नहीं जा सकते?
दूसरे ने कहा — यह कैसे हो सकता है?
मैंने पूछा — आपको व्यंजन की परिभाषा पर विश्वास नहीं है। अपने पर भी विश्वास नहीं है?
ये व्यंजन सचमुच मौनी बाबा, गूँगे और लंगड़े होते हैं। इनके पाँव नहीं होते। इन्हें चलाने के लिए, अथवा इन्हें बुलवाने के लिए एक स्वर की जरूरत होती है। चाहे अ हो, आ हो, उ, ऊ, इ, ई,ऋ, ए, ऐ, ओ या औ हो। परन्तु कोई न कोई स्वर अवश्य चाहिए। वरना ये उच्चरित नहीं हो सकते।
एक अध्यापक ने पूछा — जब ये उच्चरित नहीं हो सकते तो इन्हें ध्वनि क्यों कहा जाता है?
दूसरे ने प्रतिवाद किया — ये ध्वनि नहीं हैं तो भाषा में बोले कैसे जाते हैं?
बात को गड्डमड्ड होते देख मैंने फिर प्रश्न का मुँह मोड़ा — वास्तव में ध्वनि तो मुँह से बोली जाती है। ये दोनों ध्वनि-चिह्न या ध्वनि की लिपियाँ हैं।
–जी हाँ, लिखित रूप में तो ये ध्वनि-चिह्न ही हैं। ध्वनियाँ तो ये तब बनेंगी, जब इन्हें मुँह से उच्चरित किया जाएगा।
मैंने बात को आगे बढ़ाया। कहा– देखिए, क को तो उच्चरित किया जा सकता है, किंतु क् को नहीं।
कैसे सर?
–क में अ है।
— जी हाँ, है।
— अ का उच्चारण हो सकता है।
— हाँ, हो सकता है।
— यही अ क् के भीतर छिपी ध्वनि को बाहर निकालता है, उसे उच्चरित करवाता है। यदि अ या कोई और स्वर साथ न दे, तो क् उच्चारण के लिए तरसता बैठा रहता है– लंगड़ों, लूलों और अपंगों की तरह।
एक ने प्रतिवाद किया — यह तो ठीक है। क् स्वतंत्र नहीं बोला जा सकता। उसमें ध्वनि तो है न!
मैंने मुस्करा कर कहा — यहीं तो असावधानी होती है। क् में ध्वनि निहित तो है, किंतु वह विहित अर्थात प्रकट नहीं है — स्वयंप्रकट नहीं है। क में स्वयंप्रकट ध्वनि है। वह अ की सहायता से प्रकट हो रही है।
— जी, अब कुछ – कुछ समझ में आया। तो सर, सवाल है कि क, ख, ग, घ क्या हैं?
— व्यंजन– एक ने कहा।
दूसरे ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा — फिर वहीं पहुँच गए, जहाँ से चले थे। कुछ समझ नहीं आया। बल्कि पहले वाला भी भूल गया और नया भी याद नहीं रहा।
मैं मुस्कराया। बोला — अच्छी खासी यात्रा कर आए हो। थोड़ा और चलो। अभी रहस्य खुल जाएगा।
एक ने सकुचाते हुए कहा — यह क वर्ण-समूह हुआ।
दूसरे ने कहा — वर्ण – समूह तो शब्द को कहते हैं। क्या यह शब्द हुआ?
तीसरे ने कहा — नहीं, शब्द नहीं, यह संयुक्त वर्ण है।
एक ने संशय प्रकट किया — संयुक्त वर्ण या संयुक्त व्यंजन तो क्ष, त्र, ज्ञ हैं।
एक अध्यापक, जो पहले से दुविधा में था, बोला — शायद हम इसे अक्षर कहते हैं।
मैंने पूछ लिया — आप किस आधार पर क को अक्षर कहते हैं? क्या है अक्षर की परिभाषा?
अबकी बार हाथ कुछ कम हिले। शायद अध्यापकों ने अक्षर के बारे में कम पढ़ रखा था।
मैंने उन्हीं से प्रश्न पूछा — बताइए जरा! अक्षर किसे कहते हैं?
एक अध्यापक ने शायद chatgpt खोल लिया था। बोले — भाषा की वह मूल ध्वनि जिसे तोड़ा नहीं जा सकता, उसे अक्षर कहते हैं।
किसी ने आपत्ति की — यही परिभाषा वर्ण की है।
एक ने कहा — अक्षर को ही वर्ण कहते हैं।
मैंने जिनसे प्रश्न पूछा था, वे मिश्रा जी बोले — भाषा की वह मूल ध्वनि जिसे एक साँस में बोला जाए, उसे अक्षर कहते हैं।
एक ने कहा — एक साँस में तो मैं पूरे वाक्य को बोल सकता हूँ। तो क्या वाक्य अक्षर है?
मिश्रा जी ने स्पष्टीकरण दिया — एक साँस नहीं, एक झटके में उच्चरित किया जाए, उसे अक्षर कहते हैं।
मैंने पूछा — भाषा की सबसे छोटी, अविभाज्य और एक झटके में उच्चरित ध्वनि को अक्षर कहते हैं?
मिश्रा जी ने साँस ली। बोले — बिल्कुल ठीक कहा सर। इसी को अक्षर कहते हैं।
मैंने पूरी कक्षा की ओर देखा। अनेक दुविधाएँ सिर उठाए खड़ी थीं। एक अध्यापक ने पूछा — वर्ण भी सबसे छोटी अविभाज्य ध्वनि है और अक्षर भी। तो क्या ये पर्यायवाची हैं?
एक ने कहा — मैंने कहा तो है — वर्ण को अक्षर भी कहते हैं। कितनी ही पुस्तकों में ऐसा लिखा है।
मैं फिर मौन खड़ा हो गया। अब शुक्ला जी बोले — सर! वर्ण सबसे छोटी ध्वनि नहीं, ध्वनि चिह्न है, जिसके खंड नहीं हो सकते। और अक्षर भाषा की सबसे छोटी ध्वनि है, जिसके खंड नहीं हो सकते।
मुझे लगा — अब पटाक्षेप होना चाहिए वरना दुविधाएँ सुरसा-सी हो जाएँगी। अतः मैंने कहा —
सारे द्वन्द्व सामने आ चुके हैं। अब आप ध्यान से सुनें।
1. वर्ण लिखित भाषा की लघुतम ध्वनि है, जिसके खंड नहीं हो सकते।
2. अक्षर मौखिक भाषा की लघुतम ध्वनि है, जिसके खंड नहीं हो सकते।
3. सभी स्वर वर्ण भी हैं और अक्षर भी, क्योंकि वे स्वतंत्र बोले जा सकते हैं।
4. सभी व्यंजन स्वरविहीन होते हैं। उनका उच्चारण नहीं होता। उन्हें स्वरों की सहायता से बोला जाता है — जैसे क्, ख्, ग् आदि।
5. क. ख. ग. घ अक्षर हैं। ये व्यंजन अक्षर हैं। ध्यान करें, इन्हें बोलने के लिए अ के योग से अक्षर बनाया गया है। उच्चारण करते हुए इनके खंड नहीं हो सकते। जबकि लिखित रूप में इनके खंड हो सकते हैं। तब इनमें क् और अ दो वर्ण होंगे।
6. मेरी अंतिम टिप्पणी यह है कि
यदि वर्णमाला यह है —
क. ख. ग. घ.
च. छ. ज. झ. आदि
तो मेरा शीर्षक बिल्कुल ठीक है —
वर्णमाला में वर्ण नहीं हैं।
इसमें अक्षर भरे पड़े हैं।
कक्षा में प्रश्नों की झड़ी लग गई। अनेक हाथ उठे।
कोई कह रहा था — तो फिर वर्णमाला का क्या करें?
कोई पूछ रहा था कि वर्णिक छंद में भी अक्षर गिने जाते हैं।
पर मेरा चाय का समय हो गया था।
मैं अपनी कीमती चाय इन फालतू बातों में क्यों बर्बाद करूँ?
मौज ले दुनिया की ग़ाफ़िल
हालाँकि यह पैरोडी है। मूल पंक्ति है —
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल, जिंदगानी फिर कहाँ!
जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ??
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