मंजु गुप्ता

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प्रकृति के अंश हैं हम

तितली के पंख झुलसे
गौरैया गायब हुई
जंगलों की आई शामत
ज़िंदगी घायल हुई

पशु- पक्षी की कौन कहे
आदमी की दुर्दशा हुई
कुछ भी तो नहीं शुद्ध
हवा तक विषैली हुई

नदियों में बहता मलबा
गंगा भी मैली हुई
पहाड़, जंगल, ताल, पोखर
सभी की दुर्गति हुई

जीवन को बचाना है तो
पर्यावरण बचाना होगा
कवच है यह धरती का
इसे न भुलाना होगा

प्रकृति का अंश हैं हम
प्रकृति हमारी आराध्य
उपयोग करें, विनाश नहीं
यही है मानव धर्म

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