
तिरस्कार
– डॉ. पद्मेश गुप्त
सिमरन को भाई नहीं बहन चाहिए।
‘लड़के बहुत गंद होते है। मारपीट, उछल कूद और चीखने चिल्लाने के अलावा उनको आता ही क्या है? घर में सबको लड़का ही चाहिए। दादी तो सबसे ज्यादा लड़के लड़के की रट लगा कर बैठी है, जैसे लड़कियों की कोई वैल्यू ही नहीं है। खुद भी तो वह लड़की ही है। मम्मा अच्छी है। उन्हें भी लड़की चाहिए। मुझे कितना प्यार करती है वह? बार बार यही कहती है कि लड़कियां बहुत प्यारी होती है, सिमरन की तरह।’
‘बुआ भी पागल है। उन्हें पता नहीं क्या मिलेगा भतीजे से? जब वह उनके बाल खींच कर भागेगा और बॉल फेक कर मारेगा तब उन्हें पता लगेगा कि लड़के कितने बदमाश होते है। हे भगवान मुझे बहन ही देना, एक प्यारी सी बहन। मैं उसे बहुत प्यार करूँगी। जैसे माँ मेरी चोटी कर के मुझे सजाती सँवारती है, मैं भी उसकी चोटी कर के उसे गुड़िया की तरह सजाऊँगी।’
अपने मासूम नन्हें नन्हें ख्यालों को संजोए, स्वयं से संवाद करती सात वर्षीय सिमरन न जाने कब अपनी मम्मी और पापा के बीच में सो गई।
सुबह उसे उसकी माँ ने नहीं बुआ ने बड़ी उत्सुकता से जगाया। “उठो सिमरन जल्दी उठो, हमें अस्पताल चलना है। तुम्हारा भाई आने वाला है।”
सिमरन चहक कर उठती है और जल्दी जल्दी अस्पताल जाने की तैयार करने लगती है।
अस्पताल पहुंच कर सिमरन को पता चलता है कि उसकी बहन हुई है और वह खुशी से फूली नहीं समाती। मन ही मन अपनी दादी और बुआ को मुंह चिढ़ाते हुए वह अत्यंत स्नेहपूर्ण नज़रों से अपनी नवजन्मी बहन को निहारती है और सबके मना करने के बावजूद हल्के हल्के से उसे छूने की कोशिश करती है एवं गोद में लेने को उत्सुक होती
तभी सिमरन के कानों में उसकी दादी की बातें पड़ने लगती है। “कितना फर्क है दोनों बहनों में? सिमरन का रंग देखो और इस लड़की का! जमीन आसमान का फर्क है। इतना काला तो हमारे खानदान में कोई नहीं है। कहाँ सिमरन, गोरी चिट्टी और कहाँ यह काली कलूटी पैदा हुई है।”
बुआ भी कुछ दादी जैसी ही बातें कर रही थीं। “यह तो कहीं से भी सिमरन की बहन नहीं लग रही है। क्या आशा भाभी? लड़की ही पैदा करनी थी तो सिमरन की तरह पैदा की होती। इस काली के आगे सिमरन तो हॉलीवुड की हीरोईन लग रही
सिमरन कुछ उलझन में पड़ती है। एक तरफ तो उसे अपनी प्रशंसा सुन कर अच्छा लग रहा है परन्तु दूसरी ओर अपनी बहन के बारे में उनके कहने का तरीका अच्छा नहीं लग रहा है। काले और गोरे में कोई अंतर जाने बिना सिमरन मन ही मन
खुश होते हुए अपने आप से कहती है “मम्मा को लड़का नहीं हुआ ना, इसीलिए ये मेरी बहन के बारे में गंदी गंदी बाते कर रही है। भगवान ने मेरी सुन ली, मुझको बहन मिल गई है, मै जीत गई और ये लोग हार गए।”
सिर्फ बुआ और दादी ही नहीं, आने जाने वाले भी ऐसी ही टिप्पड़ियाँ करते और सिमरन की उलझन को बढ़ाते। सबसे अच्छी बात उसे मम्मा की ही लगती कि “मुझे तो अपनी दोनों ही बेटियाँ अच्छी लगती है, सिमरन अगर हॉलीवुड की हीरोईन है तो मेरी छोटी बेटी राखी किसी बॉलीवुड की हीरोईन से कम नहीं है, इसके नाक-नक्श तो देखो.. रेखा से कम नहीं है।”
समय के साथ-साथ सिमरन और राखी की उम्र भी सीढ़ियाँ चढ़ती रहीं। सिर्फ परिवार वालों से ही नहीं स्कूल और दोस्तों से भी सिमरन को अपने गोरे रंग के महत्व का एहसास होने लगा।
___ ‘यार दिनेश, सिमरन का तो स्वयंवर कराना पड़ेगा। पूरा हिन्दुस्तान ही नहीं आधा इंग्लैण्ड भी आएगा तुम्हारी बड़ी बेटी का हाथ माँगने लेकिन राखी.. राखी के लिए कुछ पैसा बचाना शुरू कर दो। बिना दहेज के इसका ब्याह नहीं होने वाला, ‘आशा, किसके ऊपर चली गई तुम्हारी यह छोटी बेटी, भारत में नारियल और संतरे की कमी हो गई थी क्या? लगता है दूसरी प्रेग्नेंसी के समय तुम बहुत लापरवाह रही..”; ‘एक बहन अंग्रेज़ और दूसरी नीगरो, एक अप्सरा और दूसरी दासी, पहली मेम और छोटी बाई’ जैसे वाक्य और टिप्पड़ियाँ सुनते सुनते दोनों बहनें अपनी अपनी सोच और भावनाओं के साथ बड़ी होने लगी।
सिमरन का अहम् और सुपीरियोरिटी काम्प्लेक्स बढ़ता रहा और राखी हीन-भावना के साथ संघर्ष करती रही।
सिमरन की सोलहवीं वर्षगांठ पर बड़ी पार्टी रखी गई। सिमरन के कई दोस्त पहली बार घर आए थे। राखी भी अब नौ वर्ष की हो गई है। उसे महसूस हुआ जैसे सिमरन उसे अपने दोस्तों से मिलवाना नहीं चाहती है। यह सच ही था, सिमरन को अपनी बहन के साँवले रंग पर शर्म आ रही थी। अपने प्रति सिमरन के ऐसे व्यवहार को अब राखी महसूस करने लगी थी। सिमरन छोटी छोटी बातो पर अक्सर उसका तिरस्कार करती।
राखी को स्कूल में कभी कभी रंगभेद का शिकार तो होना पड़ता परन्तु अपने अधिकांश टीचर्स की वह दुलारी थी। अपनी मीठी मीठी बातो, नाच-गाने से वह सबका मन मोहती। मंच पर नाट्य वैगरह में भाग लेने में उसे बड़ा मज़ा आता।
बारह वर्ष की आयु में राखी को अपने स्कूल के वार्षिकोत्सव में होने वाले नाटक में मुख्य भूमिका मिली। लंदन के लेखक डॉ. सत्येन्द्र श्रीवास्तव द्वारा लिखित कहानी ‘अंडिक्लेयर्ड विश्व सुन्दरी’ के नाटकीय रूपान्तर में राखी ने उस एशियन लड़की की भूमिका अदा की जो लंदन के स्कूल में रंगभेद का शिकार होती है।
राखी को लोगों से तो बहुत प्रशंसा मिली परन्तु सिमरन ने यह कह कर उसका मज़ाक बनाया कि साँवली होने के कारण उसे एशियन लड़की की भूमिका बहुत सूट की है।
राखी मासूमियत से बोली “दीदी, टीचर कह रही थी कि वो कोशिश कर रही है कि इस नाटक का मंचन लंदन में हो। मैं भी जाऊँगी उनके साथ।”
राखी की इस बात पर सिमरन बोली “तुम और लंदन, वहाँ सब गोरे रहते है। तुम्हें तो वहाँ कोई घुसने ही नहीं देगा।”
घीरे घीरे सिमरन के मन में अपने गोरे रंग को लेकर अहंकार बढ़ता गया। कुछ लोगों के कहने पर और कुछ अपने ही घमण्ड में उसे लगने लगा कि उसे अपने जोड़ का लड़का हिन्दुस्तान में मिलेगा ही नहीं और वह इंग्लैण्ड-अमेरिका के ही किसी लड़के से शादी करेगी। सिमरन का व्यवहार परिवार के अन्य लोगों के साथ भी अच्छा नहीं था।
इंटरनेट के माध्यम से सिमरन की ख्वाईश पूरी भी हुई और उसे एक अंग्रेज़। लड़का मिल गया जो सिमरन के कहने पर भारत आया और उससे विवाह के लिए राजी भी हो गया। सिमरन ने अपने परिवार वालों की एक न सुनी और रॉबर्ट नाम के उस अंग्रेज़ से कोर्ट मैरिज कर के लंदन चली गई।
सिमरन ने जीवन में जो चाहा उसे मिला। गोरे रंग के कारण पहले उसे अपनी दादी और बुआ जैसे परिवार के सदस्यों से ज्यादा प्यार मिला, दोस्तो से प्रशंसा और अब मनचाहा वर।
रॉबर्ट लंदन के एक अच्छे बैक का मैनेजर है। चेलसी के पॉश इलाके में उसका फ्लैट है और समाज में अच्छा सम्मान भी।
“आई एम सो लकी रॉब, मुझे तुम्हारे जैसा हैन्डसम् आदमी मिला है।” “एण्ड आई एम सो लकी सिम, मुझे तुम्हारी जैसी रोमान्टिक वाईफ।”
एक दूसरे की प्रशंसा करते हुए रॉबर्ट और सिमरन अपना नया जीवन शुरू करते है। रॉबर्ट सिमरन से बताता है कि उसके माता-पिता ने अपने घर मैनचेस्टर में उनके विवाह के उपलक्ष्य में पार्टी रखी है और दो दिन बाद ही उन्हें वहाँ जाना है। सिमरन भी बहुत उत्सुक है उनसे मिलने के लिए। राबर्ट ने अपने पसन्द की भूरे रंग की नई ड्रेस सिमरन को विशेष पार्टी के लिए दिलाई।
राबर्ट के पिता ने अपने घर के बड़े से लॉन में पार्टी रखी। रॉबर्ट और उसकी माँ सिमरन को मेहमानों से मिलवाने लगीं। सिमरन को शुरू शुरू में तो अच्छा लगा फिर थोड़ी ही देर में वह अपने आप को अकेला पाने लगी। सभी अपने अपने ग्रुप में व्यस्त हो गए।
सिमरन को अकेला देख रॉबर्ट उसके पास आया और हाथ पकड़ कर लोगों के बीच में ले गया। वह सिमरन से बोला “बोर हो रही हो? लोगो से मिलो जुलो, धीरे धीरे सबको जान जाओगी।” “जानती हूँ, डोण्ट वरी” सिमरन मुस्कुरा कर बोली।
सिमरन का कुछ लोगों से संवाद शुरू कराने के लिए राबर्ट बोला “फेण्ड्स, आप लोगों को सिमरन की ड्रेस कैसी लगी? मैने दिलाई है उसे।”
इतने में पीछे से राबर्ट की माँ बोली “और कौन हो सकता है, हम सब जानते कि तुम्हें ब्राऊन कलर से कितना प्यार हैं.. इसीलिए तो तुम भारत से भूरी बीवी ले कर आए हो।”
राबर्ट समेट सब एक साथ हँसने लगे परन्तु सिमरन को राबर्ट की माँ के कहे इस वाक्य का भाव पसन्द नहीं आया।
कुछ देर बाद खाने के वक्त राबर्ट ने अपनी माँ की एक सहेली से पूछा “शैरी कैसी है, वह आज नहीं आई?”
वह औरत बोली “उसके बारे में बात मत करो, वह एक काले लड़के के चक्कर में पड़ी है जो मुझे कतई पसन्द नहीं।”
“सो व्हाट, मेरी पत्नी भी भारतीय है, मेरी मॉम को कोई आपत्ति नहीं हुई”
रॉबर्ट की बात पर वह औरत मुँह बनाते हुए बोली “तुम्हारी माँ मदर टेरेसा हो सकती हैं, परन्तु मैं नहीं।”
___ सिमरन को यह सब संवाद अच्छा नहीं लग रहा था। उसे इन लोगों के साथ असुविधा महसूस होने लगी।
कुछ दिनों बाद लंदन में राबर्ट के किसी मित्र की पार्टी में भी कुछ इसी प्रकार की बातें सुनने को मिली।
“हे मेट, योर पाकी वाईफ इस सेक्सी मैन।” “रॉब के तो अब ब्राऊन किड्स पैदा होंगे”, ‘रॉब हैज़ गॉट रेड वाईन इन हिज़ सेलर, ऑफर हिम सम व्हाईट डियर।”
घर लौटते हुए सिमरन ने राबर्ट को ऐसे संवादों पर आपत्ति जताई तो राबर्ट बोला “फॉरगेट इट सिम, जस्ट चिल… ये सब मज़ाक है।”
सिमरन को राबर्ट की इस बात का बहुत बुरा लगा। वह शिकायती अंदाज़ में बोली “मेरा तिरस्कार तम्हारे लिए मजाक है?।”
“रिलैक्स सिम, ना ही मैं तुम्हारा रंग बदल सकता हूँ और न ही लोगों का मुंह बन्द कर सकता हूँ।” रॉबर्ट ने सिमरन की आपत्ति का दो टूक जवाब दे दिया।
धीरे धीरे सिमरन को समझ में आने लगा कि अब लंदन में रहने के लिए उसे इस प्रकार की टिप्पड़ियों का सामना करना ही पड़ेगा। बचपन से भारत में राजकुमारी कही जाने वाली सिमरन इंग्लैण्ड आकर पाकी हो गई। वह राबर्ट के साथ बाहर पार्टियों में जाने से कतराने लगी।
सिमरन का घमण्ड चूर होने लगा। जिस गोरे रंग पर सिमरन को इतना नाज़ था आज उसी रंग के कारण आए दिन उसका तिरस्कार होता। देखते ही देखते सिमरन को लंदन में चार साल बीत गए। लंदन आने के बाद सिमरन को अपने परिवार की याद तो अवश्य आती परन्तु उसने भारत में अपने परिवार से कोई विशेष संपर्क नहीं रखा।
भारत में सब समझते कि सिमरन एक घमण्डी लड़की है और वह उन लोगों से संपर्क रखना ही नहीं चाहती और इधर सिमरन सोचती कि उसने उनकी मर्जी के विरुद्ध विवाह किया है इसलिए वे उससे नाखुश है।
सिमरन अपने आप को बहुत अकेला महसूस करने लगी। रॉबर्ट की इच्छा होती कि सिमरन उसके साथ बाहर जाया करे और लोगों से मिला-जुला करे, उसे भी अकेले जाना खलता परन्तु सिमरन की जिद् के आगे उसे झुकना पड़ता और वह अकेला ही निकल जाता। रॉबर्ट देर रात तक पाटियों में बाहर रहता और सिमरन घर में अकेली। सिमरन को रंगभेदी टिप्पड़ियों से नफरत होती और रॉबर्ट पर इसका कोई असर नहीं होता। इन्हीं बातों को लेकर सिमरन और रॉबर्ट के बीच फासले बढ़ने लगे।
एक दिन राबर्ट सिमरन से बोला “सिम, मैं जानता हूँ कि तुम्हें मेरी पार्टियाँ पसन्द नहीं है लेकिन आज बहुत स्पेशल है, मेरे प्रमोशन की खुशी में आज की पार्टी है, अगर तुम भी चलोगी तो मुझे अच्छा लगेगा।”
सिमरन को भी जैसे कई दिनों से रॉबर्ट के ऐसे ही किसी प्रस्ताव का इंतज़ार था, वह राजी हो गई लेकिन बोली “यस आई विल, लेकिन अगर किसी ने भी रेसिस्ट रिमार्क या रंगभेद टिप्पड़ी की, मैं पार्टी छोड़ दूंगी।”
रॉबर्ट हँसते हुए कहता है “ओके, आई विल मेक श्योर कि आज ऐसा कुछ न हो।”
लंदन के एक आलीशान होटल में पार्टी होती है।
पार्टी के बीच में रॉबर्ट के बॉस माईक हाथ में लेते है और रॉबर्ट को उसके प्रमोशन पर बधाई देते हुए कहते है “आज रॉबर्ट हमारा विशेष अतिथि है, आप सब लोग इसका और इसकी पत्नी का ख़ास ख्याल रखिए, कृप्या कोई रेशियल कमेन्ट्स मत कीजिएगा।”
सिमरन को आग लग जाती है। वह अपने आपको अजीब परिस्थिति में पाती है। मन तो हुआ कि उस अंग्रेज़ को जाकर एक जोरदार तमाचा मार दे परन्तु उसे थेक्स कह कर सर झुकाना पड़ता है।
___पार्टी के बाद वह रॉबर्ट से कहती है “रॉब, यू एण्ड योर इंग्लिश सोसाईटी, कान्ट दे थिंक ऑफ एनी ह्यूमैनिटी, मानवता की बात कभी सोच ही नहीं सकते है क्या ये अंग्रेज? केवल रंग, रंग और रंग…. दिस कलर ऑफ स्किन इज सो इम्पार्टेन्ट टू देम।”
सिमरन की इस बात पर रॉबर्ट झल्लाकर बोलता है “आई थिंक सिम, यू आर हाईली काम्प्लेक्स्ड एण्ड पैरानॉईड। तुम बेवजह ऐसी बातों पर चिड़चिड़ाती हो और हीनभावना से ग्रस्त हो। अगर तुम्हें इंग्लिश सोसाईटी से इतनी ही दिक्कत है, तो चली क्यों नहीं जाती अपने देश? यू ब्लडी बिलॉग टु अ ब्राऊन रेस सो व्हाट्स द प्रोबलेम? तुम्हें इस सोसाईटी में बुलाया ही किसने था? तुम्ही हमेशा से किसी अंग्रेज़ से विवाह करना चाहती थीं।”
रॉबर्ट के इस जवाब से आज सिमरन टूट जाती है। आज पहली बार उसने रॉबर्ट का यह रूप देखा। रात भर सिमरन रोती रही और अपने गोरे रंग के पीछे जीवन भर भागने पर पछताती रही।
रॉबर्ट सुबह देर तक सोता रहा। सिमरन बेडरूम से बाहर आई और अख़बार उठा कर बैठ गई। अचानक उसकी नज़र तीसरे पेज की तसवीर पर पड़ी। सिमरन चौक गई।
यह तसवीर उसकी छोटी बहन राखी की थी। तसवीर के नीचे लिखा था “इस साल विश्व सुन्दरी प्रतियोगिता का खिताब भारत की राखी ने जीता है।”
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(साभार : ‘ब्रिटेन की प्रतिनिधि हिंदी कहानियाँ’, संपादक- जय वर्मा, प्रकाशक- प्रलेक प्रकाशन, मुंबई)
