
अमरेन्द्र कुमार, अमेरिका
आदमी और कबूतर
(१)
नाम देकर
सभ्यता का विकास
छीन कर
धरती और आकाश
बनाये जा रहे
कंक्रीट के दरबे
तैयारी हो चुकी है पूरी
आदमी को कबूतर बनाने की
(२)
कबूतर
शांति का प्रतीक है
सरे आम
शिकार हो जाता है
आदमी
इस अर्थ में
कबूतर जैसा ही है
(३)
पग-पग पर
आज बहेलिये
फिर बैठे हैं जाल बिछाकर
कबूतर फिर आज फंसे हैं
दानों के लोभ में आकर ।
फंसनेवालों के बीच
प्रश्न आज फिर छिड़ा है
कैसे बचाएं अपने आप को
बहेलिया बस दो पग दूर खड़ा है ।
सबको प्रतीक्षा है
कोई तो होगा
जो बताएगा आगे आकर
चले चलो जाल को उड़ाकर ।