
– संगीता शर्मा, कनाडा
वक़्त
सुन्दर वक़्त तो ऐसे बह निकलता है
जिस तरह घटायें हवाओं के साथ
हर पल, फुरती से बनता चला जाता है कल
समय रुकता नहीं, रेत जैसे जाता है फिसल
जी करता है भागते समय की गति को थाम लूँ
कुछ सुन्दर पलों को अपने आँचल में बांध लूँ
कुछ खूबसूरत लम्हों को ऐसे चुन पाऊं
जैसे खुशबूदार चमेली के फूलों को चुन ले आते हैं घर.
न तो दिख पाता है वक़्त और न ही उसके पर
तो उड़ कहाँ और कब जाता है कम्बख्त!
चिराग से ढूंढते मिलता नहीं फिर ये कीमती ज़ेवर
कहती है अदा, संभाल रखें, खुल के जीएं , बीत जायेगा ये वक़्त
सिर्फ रह जाएँगी चंद यादें जो कभी न होंगी ख़त्म
दिमागी बाइस्कोप में अंतकाल तक रहेंगी ज़ब्त !
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