-आशा बर्मन, कनाडा

तुमने मुझको नहीं मनाया

तुमने मुझको नहीं मनाया

बात ना कोई ऎसी भारी.
हो गयी तकरार हमारी,
सीमा पार हुई जब बातें,
चुप रहने की मेरी बारी
यत्न किया, पर थमें न अश्रु
नयनों ने मोती ढलकाया
तुमने मुझको नहीं मनाया।

हर हालत में साथ जियेंगे,
हर हालत में साथ मरेंगे,
ऎसी कुछ कसमें खायीं थीं
अपने मन का राज़ कहेंगे।

फिर यह दूरी, मौन है कैसा?
सम्मुख खड़ा प्रश्नचिन्ह सा
उत्तर जिसका खोज रही, पर
अबतक नहीं मुझे मिल पाया
तुमने मुझको नहीं मनाया।

कविताओं में मैंने पाया,
कोई रूठे, कोई मनाये,
मानिनी नारी के प्रसंग भी,
कवियों ने तो बहुधा गाये।

होती होंगी ऎसी बातें
मैं कैसे विश्वास करूँ, जब
मेरे जीवन में तो ऐसा
एक प्रसंग कभी ना आया,
तुमने मुझको नहीं मनाया।

बरस बरस जो साथ रहे हम,
तिनका तिनका नीड़ बनाया,
‘इस अनबन से मत हो पीड़ित,’
मैंने मन को यह समझाया।

यह सब कह कर,मन आया भर
मैंने उर का रोष बहाया|
तुमने फिर भी नहीं मनाया।

***** ***** *****

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »