दूरदर्शन

अमरनाथ ‘अमर’

 तब दूरदर्शन केंद्र मंडी हाउस में न होकर संसद मार्ग स्थित आकाशवाणी भवन में था। आकाशवाणी भवन में आकाशवाणी का महानिदेशालय था (अभी भी है) उसकी पांचवी मंजिल से कार्यक्रमों का प्रसारण होता था। उसी परिसर में दूसरे भवन में दूरदर्शन का स्टूडियो था।

पांचवी मंजिल पर ही मेरा कमरा नंबर था 542, केंद्र के समन्वय प्रभाग और साहित्यिक कार्यक्रम ‘पत्रिका’ का मैं उस समय प्रभारी था। व्यक्तिगत एल्बम से एक दुर्लभ तस्वीर मिली तो लगा उसकी स्मृतियों को आज साझा करना समीचीन होगा। पत्रिका कार्यक्रम में “आज के संदर्भ में प्रेमचंद की प्रासंगिकता” विषय पर परिचर्चा होनी थी इसके लिए हमने प्रख्यात कथाकार श्री कमलेश्वर, प्रेमचंद साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान डॉक्टर कमल किशोर गोयनका, प्रख्यात साहित्यकार डॉ रामदरश मिश्र और कथाकार पत्रकार श्री महेश दर्पण को आमंत्रित किया था। (आज की तिथि में श्री कमलेश्वर और गोयनका जी हमारे बीच नहीं हैं, डॉ. रामदरश मिश्र जी 101 वर्ष की उम्र में आज भी रचनाशील हैं और श्री महेश दर्पण साहित्य में पूर्ण रूप से सक्रिय हैं) यह तस्वीर उसी समय की है।

कमलेश्वर जी प्रारंभिक दौर में दूरदर्शन में स्क्रिप्ट राइटर थे और बाद में अतिरिक्त महानिदेशक भी रहे। अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने बताया की अमर 542 कमरे में जहाँ आप आज बैठते हैं कभी इसी कमरे में मैं बैठता था और एक संयोग और ये भी कि कार्यक्रम पत्रिका के प्रभारी आज आप हैं और तब इसकी शुरुआत हमने की थी। पत्रिका नाम भी मैंने ही दिया था। हमारे मन में एक उत्सुकता थी कि उन्होंने पत्रिका में पहले कार्यक्रम का विषय क्या रखा था तब कमलेश्वर जी ने बताया,1960 में पत्रिका का पहला कार्यक्रम प्रसारित हुआ था जिसमें कहानी पर मोहन राकेश, कविता पर अज्ञेय और सूचना पर इन्दर मल्होत्रा शामिल हुए थे। इस संदर्भ में मैंने कमलेश्वर जी का एक लंबा साक्षात्कार रिकॉर्ड किया था जो मेरी पुस्तक “टेलीविजन साहित्य और सामाजिक चेतना” में शामिल है।

 इसी बैठक में कमलेश्वर जी ने एक और रोचक प्रसंग का जिक्र किया।  ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार उसी दौरान आकाशवाणी में कमलेश्वर जी के मित्र और सहकर्मी थे। दुष्यंत कुमार मेरठ से अपनी बुलेट मोटरसाइकिल से आकाशवाणी भवन प्रतिदिन आया जाया करते थे और हर बार 10:00 बजे होने वाली प्रोग्राम मीटिंग में या तो पहुंच नहीं पाते थे या आते भी थे तो बहुत विलंब से। इस बात से तत्कालीन स्टेशन डायरेक्टर नाराज हुआ करते थे। एक दिन डायरेक्टर साहब ने अपनी नाराजगी व्यक्त तो दुष्यंत जी ने हंसकर कहा सर मैं कभी लेट होता ही नहीं घर से समय पर निकलता ही हूं लेकिन क्या करूं मेरी मोटरसाइकिल कहीं अटक जाती है, तो इसमें मेरा क्या दोष? यह बात सुन सभी के चेहरे पर हंसी फूट पड़ी थी। यही दुष्यंत कुमार कालांतर में हिंदी ग़ज़ल के शलाका पुरुष कहलाए।

 आपको भी शायद याद होगा कमलेश्वर जी “सारिका” पत्रिका के संपादक थे जो पूरे देश की सबसे लोकप्रिय कहानी की पत्रिका थी। सारिका जैसी कहानी की पत्रिका में उन्होंने जब दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों को छापा (“साए में धूप” संग्रह) तो दुष्यंत कुमार पूरे देश के जन जन मे लोकप्रिय हो गए। इसी चित्र के साथ न जाने कितनी स्मृतियां आज भी ताज़ा  हैं…. शेष फिर कभी….

 “मैं तुझे भूलने की कोशिश में

 आज कितने करीब पाता हूं “

                       –   दुष्यंत कुमार –

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »