भारत एवं चीन विश्व के चार महान सभ्यताओं में शामिल है, दोनों देशों के मध्य २००० वर्षों के मैत्री सम्बन्ध का इतिहास रहा है I दोनों देशों के मध्य उच्च स्तर की ऐतिहासिक समानताएं दोंनो देशों को और निकट लाती है I  ईसा पूर्व पांचवी शताब्दी में भारत में जब हिंसा ,राजाओं के मध्य आपसी युद्ध सामान्य बात थे तब भगवान विष्णु के नवम अवतार हुआ भगवान बुद्ध के रूप में जिन्होनें सम्पूर्ण मानवजाति को अहिंसा का दिव्य सन्देश दिया I  उस समय चीन भी छोटे छोटे राज्यों में विभक्त था , चीन के इतिहास में यह युद्धरत काल था , रजवाड़ों के मध्य आपसी युद्ध चरम पर था, उस संक्रमण काल में चीन में महान दार्शनिक कन्फ़्यूशियस का जन्म हुआ , जिन्होंने  युद्धरत राजाओं को शांति का सन्देश दिया,  आयु में कन्फ़्यूशियस भगवान बुद्ध से २५ वर्ष छोटे थे , इन दोनों महात्माओं ने तत्कालीन भारतीय – चीनी समाज को सत्य एवं अहिंसा के मार्ग पर चलने को प्रेरित किया I  ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में भारत वर्ष के प्रथम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने टुकड़ों में विभाजित भारतवर्ष को एक कर अखंड भारत का निर्माण किया , ठीक उसी समय खंड –खंड में बटे हुए चीन को एकीकृत कर छिन श ह्वांग चीन के प्रथम सम्राट बने I  गुप्त काल भारत का स्वर्ण काल था , उस समय चीन में थांग काल था जो चीन का स्वर्णकाल था I १२ वीं शताब्दी आते आते भारत पर दुर्दांत मुस्लिम आक्रमणकारियों का कुशासन प्रारंभ हो गया , ठीक उसी समय चीन में भी अल्पसंख्यक जाति के य्वान वंश का शासन शुरू हुआ जिसका दुष्प्रभाव भारत – चीन की मूल संस्कृति पर पड़ा जो आज दृष्टिगोचर होता है I १९ वीं शताब्दी आते आते भारत – चीन पर पश्चिम के उपनिवेशवादीयों की कुदृष्टि पड़ गयी , भारत ब्रिटिश उपनिवेश और चीन अर्ध-उपनिवेश बन गया , जिसमें भारत – चीन के वासियों को सांस्कृतिक – आर्थिक रूप  से दलित किया गया I हर दृष्टि से विपरीत उस परिस्थति में आशा के दो पुष्पों का उदय हुआ, भारत में महात्मा गाँधी के रूप में और चीन में सन –यात- सेन के रूप में , जिन्होंने भारत – चीन को विदेशी दासता से मुक्त करा कर गणतंत्र की स्थापना किया I उपरोक्त विवरणों से   स्पष्ट है की भारत चीन में उच्च स्तर की ऐतिहासिक समानताएं हैं जिसका लाभ एक दुसरे की संस्कृति ,सुख  – दुःख को समझने में मिला I                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                         

महात्मा गाँधी भारतीय सनातन संस्कृति के पुजारी एवं प्रचारक थे I  वेदों के विश्व बंधुत्व की विचारधारा , भगवद्गीता के “अहिंसा परमोधर्म, धर्म हिंसा तथैव च ” की विचारधारा, उपनिषदों के “वसुधैव कुटुम्बकम ” की विचारधारा, पुराणों की “परोपकाराय पुण्याय ,पापाय परपीडनम् ” की विचारधारा,  सनातन संस्कृति के “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया” एवं “यत्र नार्यन्तु पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवता ” के उद्घोष , तथा “मातृभाषां परित्यज्य येऽन्यभाषामुपासते, तत्र यान्ति हि ते यत्र सूर्यो न भासते. ” आदि सनातनी सत्यों को स्वयं के जीवन में उतारा भी और जन सामान्य को इन्हें जीवन में उतारने के लिए प्रेरित भी किया I

भारतीय वैदिक संस्कृति में पले बढ़े हम सभी जन यह भी जानते है कि सद आचरण से व्यक्ति महान बनता है , इसलिए हमें सदा सत्य बोलना चाहिए,असद आचरण नहीं करना चाहिए,झूठ नहीं बोलना चहिये,हिंसा व्यक्ति को पतन के गर्त में ले जाती है ,अतः अहिंसा  ही परम धर्म है , परोपकार से बड़ा कोई पूण्य नहीं है , सत्य के प्रति आग्रह करना हमारा पुनीत कर्तव्य है I  स्वालंबन, स्वाध्याय ,स्वदेशी वस्तु का प्रयोग, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना , स्वधर्म में रहते हुए स्वराष्ट्र के प्रति समर्पित रहना , साद जीवन उच्च विचार , नैतिकता का उच्च मापदंड स्थापित करना आदि मानवता के आभूषण हैं,फिर भी हममें से स्वल्प जन ही इन आभूषणों से भूषित होने का सार्थक प्रयास करते है , वो भी पूर्ण तन्मयता एवं तत्परता से नहीं I व्यक्ति  इन छोटी छोटी सुनने में सामान्य किन्तु प्रभाव में अति गंभीर आर्ष सत्यों का अनुपालन कर महान बन सकता है जिसके ज्वलंत उदहारण महात्मा गाँधी है , जो इनका अनुपालन कर मोहनदास से महात्मा बन गये I

१९ वीं शताब्दी चीन और भारत दोनों के लिए दुखदायी था, दोनों देश अपनी – अपनी राजनितिक –सांस्कृतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष रत थे I  चीन और भारत ने समान दुखों को भोगा है I गाँधी जी चीनी लोगों के दुखों से दुखी थे , साथ ही उन्होंने चीनी लोगों को वैचारिक समर्थन भी दिया , चीन पर जापानी आक्रमण का गाँधी जी ने कड़ा विरोध किया तथा चीनी मुक्ति आन्दोलन को उन्होंने अपना पूरा समर्थन दिया I यद्यपि गाँधी जी का सत्याग्रह एवं अहिंसा का दर्शन चीनी लोगों के लिए  नया था , परन्तु चीनी लोगों ने उनके दर्श्गन का स्वागत किया , अकादमिक स्तर पर भी गाँधी दर्शन पर लिखा पढ़ा गया जिसका प्रभाव चीन के हर वर्ग पर पड़ा I गाँधी जी के अहिंसा के विचारों से असहमति रखने वाले भी बहुत थे I  उनके खादी आन्दोलन के विचार से भी चीन में एक वर्ग असहमत था , उनके अनुसार यह एक प्रकार से आधुनिकीकरण का विरोध था, परन्तु दूसरा पक्ष इस बात से सहमत था कि इस आन्दोलन से सामान्य जनमानस को संगठित किया जा सकता है I

महात्मा गाँधी ने १४ जून १९४२ को तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति चियांग खाई शेक को पत्र लिखा था जब चीन अपनी संप्रभुता के लिए जापानी – ब्रिटिश उपनिवेशवाद से लड़ रहा था , जिसमें उन्होंने चीन के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट किया था , “जल्द हीं जापानी हमले के खिलाफ़ आपका पांच साल का युद्ध समाप्त हो जायेगा जिसने चीन में लोगों के जीवन में दुःख भर दिए हैं I मुझे उस दिन का इंतजार है जब एक स्वतंत्र भारत और एक स्वतंत्र चीन एशिया और पूरी दुनिया की अच्छाई के लिए मित्रता और भाईचारे में एक –दुसरे के साथी होंगें I  ” इससे जाना जा सकता है कि गाँधी जी चीनी लोगों के दुखों के प्रति कितने संवेदनशील थे , भारत की स्वतंत्रता के साथ – साथ वे चीनी जन के स्वतंत्रता के लिए भी खड़े थे I मानव जाति के प्रति यहीं संवेदनशीलता उन्हें महामानव बनाती है I

महात्मा गाँधी के देहावसान पर चीनी राष्ट्रपति चियांग खाई शेक ने चीनी भाषा में एक सन्देश भेजा था जिसका अर्थ था “परोपकार करना संत के काम जैसा है ” जो आज भी नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय गाँधी म्यूजियम में सुरक्षित रूप से संग्रहित है I गाँधी जी की स्मृति में १९४८ में चीन के प्रसिद्ध ओपेरा अभिनेता ल्याओ शिया ह ने एक ओपेरा का मंचन किया I इससे स्पष्ट है कि महात्मा गाँधी का चीन से सम्बन्ध कितना घनिष्ट था I यह गाँधी जी के मानवीय दुःखो के प्रति करुणा की ही भावना थी जो भारत से बाहर सुदूर चीन में भी उन्हें प्रासंगिक रखा था I

चीन में गाँधी दर्शन पर चीन में अनेक लेख छपे , असहयोग आन्दोलन के समय चीन की “पूर्वी पत्रिका” में गाँधी जी पर लगभग २० आलेख प्रकाशित हुए , जिनमें गांधीवाद , अहिंसा की प्रशंसा की गयी थी, उन्हें एक महान समाज सुधारक एवं क्रांतिकारी बताया गया था ,पश्चिम की पैसे की पूजा करने की विचारधारा और युद्ध की विचारधारा से दूर रहने के उनके विचारों का समर्थन किया था I  चीन में अभी तक गाँधी पर ६० पुस्तकें (८० दशक में १४ , ९० के दशक में १७ तथा २००० के दशक में ३७ ) प्रकाशित हुई हैं , १६० अकादमिक आलेख (८० के दशक में ६३ , ९० के दशक में २९ ,२००० के दशक में ६६ ) प्रकाशित हुए , तथा १४० से ज्यादा गैर – अकादमिक आलेख (८० के दशक में २२ , ९० के दशक में ७ ,२००० के दशक में ११४) छपे I  चीन में हुए ये शोध दर्शाते है कि चीन जन महात्मा गाँधी के विचारों से कितने प्रभावित थे और उनके बारे में जानने के लिए कितने उत्सुक थे I

वर्तमान समय में भी चीन में गाँधी अध्ययन में चीनी युवावों की रूचि बढती जा रही है , चीन की वाणिज्यिक राजधानी में स्थित फुतान विश्वविद्यालय के आग्रह पर भारत सरकार द्वारा वहाँ गाँधी अध्ययन केंद्र खोला गया , जिसका उद्घाटन किया वर्ष २०१५ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी चीन यात्रा के समय किया, यह चीन का पहला ऐसा शोध केंद्र बना जो गाँधी अध्ययन को समर्पित है I वर्ष २००५ में चीन की राजधानी पेइचिंग के छाओ यांग उद्यान में वहां के प्रसिद्ध मूर्तिकार युआन शी खुन द्वारा बनाई गयी महात्मा गाँधी की प्रतिमा स्थापित की गयी है जहाँ प्रति वर्ष गाँधी जयंती के अवसर में भारतीय दूतावास द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन की जाती है जहाँ बड़ी मात्रा में चीनी जन भी जुटते हैं I दक्षिणी चीन का सबसे बड़े शहर क्वान्ग्चौ में भारतीय वाणिज्य दूतावास द्वारा महात्मा गाँधी की प्रतिमा लगाने पर विचार हो रहा हैं, संभवतः अगले वर्ष यह पूर्ण भी हो जायेगा I भारतीय दूतावास चीनी विश्वविद्यालयों से मिलकर महात्मा गाँधी पर हिंदी लेखन प्रतियोगिता का भी आयोजन करती है , जिसका उद्देश्य चीनी युवाओं को महात्मा गाँधी के विचारों से अवगत कराना है I

चीन की आनहुई प्रान्त की श्रीमती वू पेई आज भी गाँधीवाद को जी रही हैं, गाँधी जी के सादा जीवन उच्च विचार का पालन करते हुए आज भी एक सामान्य जीवन जीती हैं, साथ ही अपने गावं में एक विद्यालय भी चलाती हैं I इस भौतिक युग में भी वह बिना वाशिंग मशीन ,ए.सी. के रहती हैं I कह सकते हैं कि वर्तमान समय में चीन में गाँधी जी के विचारों की प्रासंगिकता बढ़ रही है , युवाओं में भी महात्मा गाँधी के विचारों को जानने में रूचि बढ़ रही है I

महात्मा गाँधी के विचार केवल किसी एक क्षेत्र ,देश तक सीमित नहीं है , वरन सम्पूर्ण मानव समाज के लिए है I  वर्तमान विश्व गरीबी उन्मूलन , वैश्विक आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन आदि गंभीर समस्यायों का सामना कर रहा है,यदि हम इन सभी वैश्विक समस्यायों के प्रति गंभीर है तो हमें गाँधी जी के विचारों को आत्मसात करना ही पड़ेगा,  गाँधी जी का स्वदेशी का विचार ,सर्व धर्म समभाव का विचार से ही हम एक शांतिपूर्ण एवं सामंजस्यपूर्ण वैश्विक समाज का निर्माण कर सकते है I  भारत – चीन मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध का सपना गाँधी जी ने आज से सौ साल पहले देखा था जिसे गाँधी जी के विचारों से मूर्त रूप दिया जा सकता हैं , जो वर्तमान समय की मांग भी है I

-विवेक मणि त्रिपाठी

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