भारत एवं चीन विश्व की चार सबसे पुरानी सभ्यता वाले देश हैं जिनके मध्य दो सहस्त्र वर्षों के सांस्कृतिक आदानप्रदान का इतिहास रहा है I दोनों देश सदियों से एक दुसरे की सभ्यता संस्कृति को प्रभावित करते आ रहे हैं I पहली शताब्दी में भारत से बौद्ध धर्म के चीन में प्रवेश करने बाद अनेक भारतीय विद्वानों ने चीन की यात्रा की और उनमें से असंख्य चीन की मिट्टी में ही अपनी अंतिम सांसे ली जिनमें धर्मरक्ष ,कश्यप मातंग , बोधिधर्मन, कुमारजीव आदि प्रमुख हैं जिन्होंने भारतीय ज्ञान –विज्ञान से चीनी संस्कृति को समृद्ध किया I भारतीय दर्शन , चिकित्सा विज्ञान , नक्षत्र विज्ञान ,गणित , भाषा विज्ञान आदि का चीनी संस्कृति पर व्यापक प्रभाव पड़ा I प्राचीन काल में बौद्ध धर्म ,हिन्दू धर्म एवं योग विज्ञान भारत – चीन सांस्कृतिक सम्बन्ध के मध्य सेतु का कार्य करते थे , वर्तमान समय में वहीँ कार्य हिंदी रूपी सेतु से हो रहा है I
अभी चीन के 17 विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा एवं साहित्य में पाठ्यक्रम हैं I लगभग 15 विश्वविद्यालयों में भारत अध्ययन केंद्र हैं जहाँ चीनी भाषा के माध्यम से भारतीय संस्कृति एवं समाज पर शोध होता है , इसके अलावा 50 से अधिक विश्वविद्यालयों में बौद्ध अध्ययन केंद्र हैं जो परोक्ष – अपरोक्ष रूप से भारत से जुड़ा हुआ है I इसके अलावा चीनी विद्वान भारतीय संस्कृति एवं समाज को समझने के लिए अन्य भारतीय भाषाओँ का भी अध्ययन कर रहे हैं जिसमें संस्कृत ,पाली, हिंदी ,तमिल, पंजाबी, गुजराती , बंगाली, उर्दू आदि भाषाएँ शामिल हैं, बंगाली और उर्दू में स्नातक पाठ्यक्रम है , अन्य भाषाओँ में १-२ वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम है I
चीन में भारतीय भाषाओँ के अध्ययन का लम्बा इतिहास रहा है I प्राचीन काल में भारत से हिन्दू धर्म ,बौद्ध धर्म, योग ,आयुर्वेद का ज्ञान चीन गया जिसने चीनी संस्कृति को समृद्ध किया I प्राचीन चीनी विद्वानों ने संस्कृत भाषा के माध्यम से भारत- चीन सांस्कृतिक आदानप्रदान की नीवं रखी, चीनी जन इन भारतीय ज्ञान को विस्तृत रूप से समझने के लिए भारतीय भाषाओँ के ज्ञान को आवश्यक समझा , फलतः प्राचीन भारत की तत्कालीन भाषा संस्कृत तथा बाद में पाली भाषाओँ का चीनी विद्वतजनों ने सांगोपांग अध्ययन किया I ह्वेनसांग, फाह्यान ,यित्सिंग जैसे चीनी विद्वान भारत आये और विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्ववविद्यालय में संस्कृत –पाली भाषाओँ के ज्ञान सहित भारतीय दर्शन ,चिकित्सा विज्ञान आदि का अध्ययन किया और वापस चीन जाकर उनका चीनी भाषा में अनुवाद भी किया जिनमें से अधिकतर आज भी संग्रहित हैI धर्मांध मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा विश्ववविद्यालय को नष्ट कर देने के कारण भारत में उनमें से अधिकांश अप्राप्य है I ह्वेन्स्संग के यात्रा संस्मरण के आधार पर भारत में राजगीर , वैशाली, सारनाथ आदि नगरों की खोज हो सकीं , यदि उनका यात्रा संस्मरण नहीं होता तो आज भारत के लगभग 80 प्रतिशत बौद्ध स्थलों की खोज नहीं हो पाती और हमारा मध्यकाल का स्वर्णिम इतिहास मिटटी में दबा रहता Iभारत से भी बोधिधर्मन ,कुमारजीव आदि महान विद्वान् अपने विपुल ज्ञान भंडार के साथ चीन गए और भारतीय ज्ञान को चीनी भाषा में अनुदित कर चीनी साहित्य भण्डार को समृद्ध किया I भारतीय – चीनी विद्वानों के संयुक्त प्रयास से भारत –चीन के मध्य २००० वर्ष के लम्बे सांस्कृतिक सेतु का निर्माण हुआ जिसका प्रभाव आज भी दृष्टिगोचर हैं I
चीन में हिंदी शिक्षण का प्रारम्भ एवं विकास
चीन में हिंदी भाषा को प्रारंभ हुए लगभग आठ दशक हो चुके हैं I चीन में हिंदी शिक्षण को लगभग आठ दशक का लम्बा समय पूरा हो गया है I सर्वप्रथम १९४२ में चीन के युन्नान प्रान्त के राष्ट्रीय पूर्वी भाषा महाविद्यालय में हिंदी शिक्षण प्रारंभ हुआ, लेकिन उस समय चीन में जापान विरोधी युद्ध विजय को देखते हुए हिंदी विभाग को सिछ्वान प्रान्त के छोंग्छिंग शहर में स्थानांतरित कर दिया गया, और १९४६ में नानचिंग शहर में स्थानांतरित कर दिया गया I १९४९ में चीनी जनवादी गणराज्य की स्थापना हुई और पूर्वी भाषा महाविद्यालय को नानचिंग शहर से राजधानी पेइचिंग के पेइचिंग विश्वविद्यालय के पूर्वी भाषा महाविद्यालय में मिला दिया गया जो कालांतर में चीन में हिंदी अध्ययन का महत्वपूर्ण केंद्र बना I
चीन में हिंदी शिक्षण को पांच भागों में बांटा जा सकता है ,प्रथम चरण १९४२ से वर्ष १९४८ तक, द्वितीय चरण, वर्ष १९४९ से १९६८ तक, तृतीय चरण वर्ष १९६६ से १९७६, चतुर्थ चरण १९७६ से २००५, पंचम चरण २००५ से वर्तमान समय तक है I
प्रथम चरण – पहला वर्ष १९४२ से वर्ष १९४८ तक , यह समय हिंदी शिक्षण का प्रारंभिक काल था, उस समय चीन राजनितिक रूप से बहुत ही उथल –पुथल से गुजर रहा था,परिणामतः इस काल में हिंदी भाषा शिक्षण में ज्यादा प्रगति नहीं हुई I
द्वितीय चरण – चीन में हिंदी शिक्षण का दूसरा काल वर्ष १९४९ से १९६८ तक था, यह काल चीन में हिंदी शिक्षण के लिए बहुत ही अच्छा रहा , इसी समय नए भारत और नए चीन की स्थापना हुई , दोनों देशों के मित्रता की नई कहानी शुरू हुई , तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चऊ एन लाय ने चीनी विद्यार्थियों को हिंदी पढ़ने लिए प्रेरित किया , उस समय के भारतीय राजदूत महोदय की पत्नी को पेइचिंग विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाने के निमंत्रित किया गया , फलतः हिंदी का भी विकास द्रुतगति से हुआ,इस काल के हिंदी विद्वानों ने चीन के हिंदी शिक्षण की मजबूत नीवं रखी, लेकिन १९६२ में हुए भारत – चीन युद्ध ने हिंदी की विकास यात्रा पर विराम लगा दिया I
तृतीय चरण – तीसरा काल वर्ष १९६६ से १९७६ तक था, यह काल चीन में सांस्कृतिक क्रांति का काल था, सांस्कृतिक क्रांति के समय चीन में बहुत असमान्य काल था, विश्वविद्यालयों में प्रवेश परीक्षा की प्रणाली को बंद कर दिया गया था, विद्यार्थियों को अनुशंसा के आधार पर प्रवेश मिलने लगा, जिसके कारण शैक्षिक रूप से असामान्य लोग विश्वविद्यालय में प्रवेश करने लगे जिसका प्रभाव हिंदी शिक्षण पर भी पड़ा, प्रवेश लेने वाले विद्यार्थी मुख्यतः किसान और सैनिक होते थे, जिनकी अकादमिक क्षेत्र में कोई विशेष रूचि नहीं थी,फलतः उनका चीन के हिंदी अध्ययन – शोध में कोई विशेष योगदान नहीं रहा I
चतुर्थ चरण – चौथा काल १९७६ से २००५ और पांचवां काल २००५ से वर्तमान समय तक I यह समय चीन के आर्थिक विकास के प्रारंभ का समय था , अस्सी के अंत का दशक चीन के आधुनिकतावाद और आर्थिक सुधारवाद में प्रवेश का समय था , चीन में चतुर्दिक सकारात्मक परिवर्तन का समय था , आर्थिक प्रगति के साथ चीन के कई नए विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा की पढ़ाई शुरू हुई I
पंचम चरण – पांचवां काल २००५ से वर्तमान समय तक I वर्ष २००५ में चीनी राष्ट्रपति का भारत आगमन हुआ, दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार बढ़ने लगा , व्यापार के साथ – साथ भाषाई सम्बन्ध भी प्रगाढ़ करने की आवश्यकता को दोनों देशों के नेताओं ने समझा और इस काल में चीन में सबसे ज्यादा विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढाई शुरू हुई , और लगभग १० नए विश्वविद्यालयों में हिंदी पाठ्यक्रम में स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठयक्रम शुरू की गई I
हिंदी भाषा एवं साहित्य पाठ्यक्रम संचालित करने वाले चीनी विश्वविद्यालय
क्रम संख्या | विश्वविद्यालय का नाम | हिंदी पाठ्यक्रम स्थापना वर्ष |
१ | बीजिंग विश्वविद्यालय ,बीजिंग | १९४२ |
२ | बीजिंग जनसंचार विश्वविद्यालय, बीजिंग | २००० |
३ | बीजिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, बीजिंग | २००६ |
४ | शीआन अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, शीआन | २००६ |
५ | क्वांग्तोंग विदेशीभाषा विश्वविद्यालय,क्वान्ग्चौ | २०११ |
६ | युन्नान अल्पजाति विश्वविद्यालय, खुनमिंग | २०११ |
७ | शंघाई अंतरराष्ट्रीय भाषा विश्वविद्यालय, शंघाई | २०१३ |
८ | पी.एल.ए विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, | अनुपलब्ध |
९ | ल्वयांग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय , ल्वयांग | अनुपलब्ध |
१० | थ्येनचिन विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, थ्येनचिन | २०१७ |
११ | द्वितीय बीजिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, बीजिंग | २०१८ |
१२ | युन्नान विश्वविद्यालय, खुनमिंग | |
१३ | सछ्वान विदेशी भाषा विश्वविद्यालय ,छोंग्छिंग | २०१९ |
१४ | वन्चौ विश्वविद्यालय ,वन्चौ | २०२० |
१५. | छिंगताओ विश्वविद्यालय, शानतोंग | |
१६. | हु नान शिक्षण विश्वविद्यालय,छांगशा |
चीन में हिंदी के विकास के प्रमुख कारण
वर्तमान समय में चीन के 17 विश्वविद्यालयों में हिंदी पाठ्यक्रम है लेकिन वर्ष 2000 के पहले यह संख्या मात्र तीन थी, पिछले दो दशकों में हिंदी शुरू करने वाले विश्वविद्यालयों की संख्या में इतनी वृद्धि क्यों हुई ? इसका सबसे बड़ा कारण हिंदी का बाज़ार की भाषा बनना है , आज हिंदी जनभाषा ,राज्यभाषा ,विश्वभाषा से होते हुए बाज़ार की बन गयी है I विदुर जी ने सुख की परिभाषा बताते हुए कहा है कि “अर्थागमों नित्यमरोगिता च प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।वश्यश्च पुत्रो अर्थकरी च विद्या षट् जीव लोकेषु सुखानि राजन्।”, जिसमें उन्होंने कहा है कि विद्या को अर्थ प्रदान करने वाली होनी चाहिए I वर्तमान समय में चीन में हिंदी अर्थ प्रदान करने वाली बन गयी है I
- अकादमिक क्षेत्र में नौकरी के अवसर – चीन के विश्वविद्यालयों में जिस तरह से हिंदी पाठ्यक्रमों की वृद्धि हो रही है , उससे अधिक संख्या में चीनी विद्यार्थी हिंदी में स्नातकोत्तर और पीएचडी कर रहे हैं , और चीन में हिंदी शिक्षक बन रहे हैं ,बहुत से चीनी शोधार्थी भारत आकर हिंदी में उच्च अध्ययन करने जा रहे हैं I इसके कारण भी चीन में हिंदी पढ़ने वाले विधार्थियों की संख्या बढ़ रही है I
- कम्पनियों में नौकरी के अवसर – दूसरा महत्वपूर्ण कारण चीनी कंपनियों में हिंदी विशेषज्ञों की मांग बढ़ना है I अभी भारत के मोबाइल बाज़ार में लगभग 81 प्रतिशत हिस्सेदारी चीनी मोबाइल ब्रांडो की है , उन चीनी मोबाइल कम्पनियाँ उन चीनी युवाओं को अधिक वरीयता देती हैं जो चीनी तथा अंग्रेजी के हिंदी भाषा के विशेषज्ञ हों , ऐसी स्थिति में हिंदी से स्नातक युवाओं को चीनी कम्पनियाँ अच्छे वेतन के साथ आमंत्रित करती हैं, जिससे चीन में हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या में गुणोत्तर वृद्धि हो रही है I इसके आलावा बहुत सी चीनी कम्पनियाँ जिन्होनें भारत में निवेश किया है यह चीन में स्थित वे चीनी कम्पनियाँ जो भारत से सबंधित कार्य करती हैं , वे भी हिंदी से स्नातक हिंदी के विद्यार्थियों को हाथोंहाथ लेती है I
- अनुवाद के क्षेत्र में नौकरी अवसर – वर्ष २०१६ में भारत – चीन सरकर ने सयुंक्त अनुवाद कार्यक्रम की घोषणा की , जिसमें चीनी सरकार २५ भारतीय साहित्यिक कृतियों का हिंदी से चीनी में अनुवाद करेगी , तथा भारतीय सरकार २५ चीनी साहित्यिक कृतियों का चीनी से हिंदी भाषा में अनुवाद करेगी , उदेश्य है भारत-चीन के वैसे पाठक जिन्हें चीनी –हिंदी नहीं आती , वे इस अनुवाद कार्यक्रम के माध्यम से एक दुसरे की संस्कृति को समझ सकें I हिंदी से चीनी में अनुवादित होने वाली साहित्यिक रचनाओं में सूरदास-ग्रंथावली , मुंशी प्रेमचंद रचना संचयन (गोदानउपन्यास और लघु कथाएं ), अज्ञेंय रचना संचयन (उनकी कवितायेँ और लघु कहानियां ), भीष्म साहनी रचना संचयन (तमस उपन्यास और लघु कथाएँ ), महादेवी वर्मा रचना संचयन (कवितायेँ ) आदि हिंदी साहित्यिक कृतियाँ शामिल है I इस प्रकार के अनुवाद कार्यक्रम के माध्यम से चीन के हिंदी के जानकारों को अर्थालाभ का अच्छा अवसर प्राप्त होता है I भारत से चीन आने वाले व्यापारी भी हिंदी अनुवादकों की मांग करते हैं I हाल के कुछ वर्षों में चीन में हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता बढ़ी हैं , हिंदी फ़िल्में भारत से कई गुना अधिक वव्यापार चीन में करती हैं, हिंदी धारावाहिक भी चीन में बहुत लोकप्रिय हैं , हिंदी फ़िल्में एवं धारावाहिकें चीन में चीनी सबटाइटल के साथ प्रदर्शित होती हैं , ऐसे हिंदी से चीनी अनुवादकों की मांगे दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं , इस प्रकार के अनुवाद कार्यों में अच्छे पैसे मिलते हैं I
- सिविल सेवा में कार्यकरना – वर्तमानमेंआर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक या भौगोलिक कारकों के कारण से क्वान्ग्तोंग , बीजिंग, तिब्बत और अन्य स्थानों में विदेशी-संबंधित मामले हमेशा होते हैं।जो छात्र स्थिर काम करना चाहते हैं या तंत्र के भीतर काम करने में रुचि रखते हैं वे इस विकल्प पर विचार करते हैं।
- मीडिया के क्षेत्र में अवसर – चीन का चाइना रेडियो इंटरनेशनल विश्व के बीस से ज्यादा भाषाओँ में अपनी सेवा प्रदान करता है , जिसमें हिंदी भी शामिल है , पत्रकारिता में रूचि रखने वाले तथा बोल चाल एवं लिखित हिंदी में विशेष निपुणता रखने विद्यार्थीचाइनारेडियोइंटरनेशनल में अच्छे वेतनमान पर कार्य करने का अवसर प्राप्त करते हैं I
- पर्यटन के क्षेत्र में अवसर – बहुत सी पर्यटनकंपनियां जैसे क्वान्ग्चौ इंटरनेशनल टूरिज़्म कं, लिमिटेड हर वर्ष क्वान्ग्तोंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय मेंआते हैं, वे अपने भारतीय पर्यटन विभाग को संभालने के लिए हिंदी सिखने वाले विद्यार्थी की भर्ती करते हैं । चीन से हर वर्ष बहुत से पर्यटक भारत घुमने आते हैं , कुछ यूनेस्को की सूचि में शामिल स्थल देखने आते हैं तो कुछ बौद्ध स्थलों को देखने आते हैं, योग एवं आयुर्वेद सीखने वाले भी चीनी बढ़ रहे हैं , वर्तमान में भारत में सस्ते इलाज़ के लिए भी चीनी पर्यटक भारत के रूख कर रहे हैं , जिससे चीन में बहुत से पर्यटन सेवा देने वाली कम्पनियाँ शुरू हुई हैं जहाँ हिंदी पढने वाले विद्यार्थी आसानी से नौकरी प्राप्त कर सकते हैं I
- वर्तमान समय चीन के हवाई अड्डों पर भी हिंदी के जानकारों की मांग बढ़ी हैं , आवश्यकता पड़ने पर हिंदी में न्यायिक सहयोग प्रदान करने की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है I वैसे विद्यार्थी जो हिंदी भाषा में बोलचाल की छमता रखते हैं , साथ ही भारतीय समाज एवं कानून के सामान्य परिचय का ज्ञान रखते हैं ,उनके लिए यह एक अलग अवसर प्रदान करता है I
- योग – आयुर्वेद के क्षेत्र में अवसर – चीन के लगभग छः सौ शहरों में योग केंद्र है , बड़े बड़े शहरों में तो बीस से अधिक योग केंद्र हैं , जहाँ चीनी योगाचार्यों के साथ साथ भारतीय योगगुरु भी विद्यादान करते हैं I अभी चीन में “योग पर्यटन ” बहुत प्रसिद्द हो रहा है , चीन से भारत आने वाले बहुत से पर्यटक यदि दस दिनों के लिए भारत आ रहे हैं तो पांच दिन भारत के किसी योग केन्द्रों में जाकर योगाभ्यास करते हैं , शेष पांच दिन भारत के पर्यटन स्थलों का भ्रमण करते हैं I आयुर्वेद भी बहुत लोकप्रिय है , बहुत से चीनी आयुर्वेद प्रयोग दैनिक स्तर पर करते हैं I इसके कारण भी बहुत से चीनी जिज्ञासु स्वयं भी संस्कृत – हिंदी सीखते है I
- हिंदी फिल्मों की बढ़ती लोकप्रियता – भारत-चीन सम्बन्ध को प्रगाढ़ करने में हिंदी सिनेमा भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है I हिंदी फ़िल्में सीमाई और भाषाई भेद के अंतर को दूर करते हुए चीन में लोकप्रिय हो रही हैं I भारत–चीनकेमध्यसीमाविवाददोनोंदेशोंके बीच के सांस्कृतिक आदानप्रदान को प्रभावित नहीं कर पाया है , भारत- पाकिस्तान सीमा विवाद के कारण पाकिस्तान में भारतीय फ़िल्में प्रदर्शित नहीं हो रहीं हैं, इसके उलट पिछले साल भारत-चीन-भूटान के मध्य ७० दिन से ज्यादा चलने वाले डोकलाम विवाद भी चीन में भारतीय फिल्मों पर बैन नहीं लगा बल्कि दंगल फिल्म ने भारत से ज्यादा चीन में कमाई की है , इस साल २०१८ में पांच हिंदी फ़िल्में चीन में प्रदर्शित हुई हैं , सीक्रेट सुपरस्टार , हिंदी मीडियम , बजरंगी भाईजान , बाहुबली -२ और टॉयलेट –एक प्रेम कथा I इन सारी फिल्मों नेचीन में जबरदस्त कमाई तो की ही साथ ही चीनी जन के ह्रदय को छूने में सफल रही , “टॉयलेट ”फिल्म चीनी बॉक्स ऑफिस पर विदेशी फिल्मों की श्रेणी में लगातार एक सप्ताह तक पहले स्थान पर बनी रही I चीन में हिंदी फ़िल्में प्रसिद्ध होने के कारण क्या है ? जबकि चीनी फ़िल्में तकनीक और एक्शन के मामले में हिंदी फिल्मों से बेहतर होती है I इसके लिए हमें चीनी इतिहास एवं समाज को समझना पड़ेगा I आज चीन में महिलाओं को समानता का अधिकार प्राप्त है , परन्तु प्राचीन चीन में ऐसा नहीं था,महिलाओं का सामाजिक स्थान बहुत ही निम्न एवं दयनीय था, प्रसिद्ध दार्शनिक कन्फ़्यूशियस के अनुसार महिलाएं शादी से पहले पिता,शादी के बाद पति और बुढ़ापे में पुत्र के सरंक्षण में रहे I चीन में महिलाओं के छोटे पैर शुभ माने जाते थे ,इसलिए महिलाओं को छोटी उम्र में ही लोहे के जूते पहना दिए जाते थे ताकि उनके पैर बड़े ना हों, महिलाओं को शिक्षा का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त नहीं था I भारतीय फ़िल्में भावना प्रधान होती हैं , वर्तमान समय में सामाजिक मुद्दों एवं सत्य घटनाओं पर फ़िल्में ज्यादा संख्या में बन रही हैं I दंगल, टॉयलेट- एक प्रेम कथा ,हिंदी मीडियम आदि फ़िल्में जो हाल ही में चीन में प्रदर्शित हुई है , इनमें महिलाओं के संघर्ष की कहानी है , जन सामान्य की कहानी है, गावं की कहानी है , जो चीनी दर्शकों के मर्मस्थल को छूने में सफल हो रही है I आज चीन का जो विकास पूरी दुनिया को अचंभित कर रहा है वह पिछले ३० सालों का है, चीन की वर्तमान पीढ़ी ने अपने जिन संघर्षों को जिया है हिंदी फ़िल्में में दिखाई गयी कहानी उन्हें अपनी कहानी लगती है I भारत –चीन विश्व की महान सम्भ्याताएं हैं, दोनों देशों की संस्कृति में बहुत सारी समानताएं हैं, दोनों ने समान दुखों को भोगा है , वर्तमान समय में भी दोनों देशों विकास की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं ,और जनसँख्या,गावों में व्याप्त गरीबी,आतंकवाद जैसे समान समस्यायों से जूझ रहे हैं, ये सारी समस्याएं हिंदी फिल्मों के विषय बन चुके हैं, हिंदी के इस फ़िल्मी पकवान का चीन में दर्शक चीनी चटनी के साथ चटकारे के साथ आनंद ले रहे हैं I
भारत –चीन सरकार स्तर पर सहयोग – राजकीय सहयोग के बिना कोई भी भाषा विकसित नहीं हो सकती है , चीन में विश्वविद्यालय स्तर पर हिंदी के विकास के योगदान में भारत एवं चीन दोनों देशों की सरकारों का विशेष योगदान है I चीन सरकार विगत दो दशक में में ना केवल दस विश्वविद्यालयों में हिंदी भाषा में स्नातक पाठ्यक्रम शुरू की हैं बल्कि भारत में हिंदी पढने जाने के लिए छात्रवृति भी प्रदान करती है I साथ ही चीनी सरकार हर उस विश्वविद्यालय में जहाँ हिंदी भाषा का पाठ्यक्रम है वहां एक भारतीय मूल के शिक्षक को हिंदी पाठन के लिए एक अच्छे वेतन के साथ आमन्त्रित करती है जिससे चीनी विद्यार्थी हिंदी में विशेष पारंगता प्राप्त कर सकें I भारत सरकार भी भारत सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् के माध्यम से चीन के तीन विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठ की स्थापना की है जहाँ भारत से हिंदी भाषा के विद्वान् २ वर्षों के लिए हिंदी अध्यापन के लिए जाते हैं , उन शिक्षकों का वेतन भारत सरकार वहन करती है , साथ ही भारत सरकार चीन में स्थित अपने दूतावास एवं वाणिज्य दूतावास के माध्यम से हिंदी के विकास में अपना सहयोग करती है I भारतीय दूतावास चीनी विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर हिंदी दिवस का आयोजन करती है ,हिंदी संभाषण ,हिंदी लेखन प्रतियोगिता आदि का आयोजन करती है ,पुरस्कार स्वरुप छोटा पारितोषिक भी दिया जाता है जिससे विद्यार्थियों को हिंदी सीखने की प्रेरणा भी मिलती है , चीन के कुछ विश्वविद्यालयों में भारतीय दूतावास द्वारा “हिंदी प्रकोष्ठ ” की स्थापना की गई है जिसका उद्देश्य चीनी विद्यार्थियों को भारत सम्बन्धी विस्तृत जानकारी प्राप्त कराना है I भारत सांस्कृतिकसम्बन्धपरिषद् चीनी विद्यार्थियों को भारत स्थित “केंद्रीय हिंदी संस्थान ” में हिंदी में उच्च अध्ययन के लिए छात्रवृति प्रदान करती है I चीन में स्नातक चार वर्षों का होता हैं ,हिंदी भाषा पढने वाले विद्यार्थी द्वितीय या तृतीय वर्ष में एक वर्ष के लिए भारत उच्च अध्ययन के लिए जाते हैं I युवा किसी भी देश के भविष्य होते हैं, और चीनी युवा जो हिंदी पढ़ रहे हैं , भारत में अध्ययन पर्यन्त भारतीय संस्कृति ,सामाजिक स्थिति को विशेष रूप से जानते – समझते हैं और भारत – चीन सम्बन्ध को एक नई दिशा देनें में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं , युवाओं के इस सांस्कृतिक आदानप्रदान से दोनों देशों के संबंधों का भविष्य निश्चित रूप से उज्जवल होगा I
शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मलेन में भाग लेने चीन आईं भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पेइचिंग विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ रहे विद्यार्थियों से मिलीं , चीनी बच्चों के ये कहने पर कि वे भारत से बहुत प्यार करते हैं और भारत जाना उनका सपना है लेकिन पता नहीं उनका ये सपना कब पूरा होगा , विदेश मंत्री ने उन २५विद्यार्थियों के सपना को पूरा करने के लिएभारत आने का न्योता दिया और इसे शीघ्र पूरा करने के लिए चीन के भारतीय राजदूत को आवश्यक निर्देश भी दिया I सुषमास्वराज नेयहभीकहा, ‘यहां तक कि दो विदेश मंत्री भी हमारे देशों की दोस्ती उतनी प्रगाढ़ नहीं बना सकते, जितनी चीन के छात्र, जो हिंदी से प्यार करते हैं ।‘ विदेश मंत्री का यह कथन बहुत हद तक सही भी है, आज जब देशी – विदेशी मीडिया भारत में बलात्कार के समाचार से भरी पड़ी है , विदेशी लोग भारत आने में डर रहे हैं , इन परिस्थितियों में चीन में हिंदी पढने वाले विद्यार्थी बिना अख़बारों के बढ़ा चढ़ा के लिखे गये नकारत्मक खबरों की परवाह किये बिना भारत में हिंदी पढ़ने आ रहे हैं, स्नातक तृतीय वर्ष में चीन के हिंदी विद्यार्थी एक साल के लिए भारत अध्ययन हेतु जाते है , वापस चीन आकर वे भारत की एक सकारात्मक छवि पेश करते हैं , बहुत सारे चीनी युवा हिंदी में स्नातक होने के बाद भारत को अपने कर्मक्षेत्र के रूप में भी चुन रहे हैं , कह सकते है कि चीन में हिंदी पढने वाले विद्यार्थी दोनों देशों के मध्य दूत का काम कर रहे हैं और हिंदी के माध्यम से दो देशों के मध्य सांस्कृतिक –आर्थिक सम्बन्ध को और प्रगाढ़ कर रहे हैं I
चीनी विश्वविद्यालयों में हिंदी पाठ्यक्रम
चीन में अभी हिंदी में स्नातक , स्नातकोत्तर और पीएचडी तीन पाठ्यक्रम चल रहे हैं I चीन के सत्रह विश्वविद्यालयों में हिंदी में स्नातक पाठ्यक्रम हैं , तीन विश्वविद्यालयों बीजिंग विश्वविद्यालय , क्वांग्तोंग विदेशीभाषा विश्वविद्यालय,क्वान्ग्चौ तथा शीआन अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, शीआन में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम है , तथा केवल एक बीजिंग विश्वविद्यालय में पीएचडी पाठ्यक्रम है I स्नातक में हिंदी वार्तालाप, हिंदी लेखन, हिंदी श्रवण , व्यावसायिक हिंदी, समाचार पत्र, हिंदी – चीनी अनुवाद, चीनी – हिंदी अनुवाद , भारत – चीन सांस्कृतिक संबंध का इतिहास, हिंदी साहित्य , हिंदी साहित्य का इतिहास, आदि विषय पढ़ाये जाते हैं I चीन में स्नातक चार वर्षों का होता हैं , स्नातकोत्तर तीन वर्षों का होता है I हिंदी में स्नातक करने वाले विद्यार्थी पहले दो वर्ष बुनियादी हिंदी सीखते हैं , हिंदी व्याकरण , हिंदी श्रवण , मौखिक हिंदी आदि पढ़ते हैं , तृतीय वर्ष में वे भारत जाते हैं जहाँ एक वर्ष वे हिंदी भाषा के साथ साथ भारतीय संस्कृति के साथ साक्षात्कार करते हैं जो उनके लिए एक बहुत ही अलग प्रकार का अनुभव होता है , क्योंकि भारत जाने से पहले वे मीडिया के माध्यम से ही भारत से परिचित हुए होते हैं , जिससे उनके मन में भारत के प्रति थोड़ी नकारात्मक छवि बैठ जाती है कि भारत महिलाओं के लिए असुरक्षित नहीं है , लेकिन भारत में एक साल रहने के दौरान उन्हें भारतीय समाज को नजदीक से देखने का अवसर प्राप्त होता है जिससे उनके मन में भारत के बारे में बैठी भ्रान्ति समाप्त हो जाती है , उन्हें भारत से अनकहा लगाव हो जाता है जो उनके चीन वापस जाने के बाद भी अपनी ओर आकर्षित करता है , फलस्वरूप कई चीनी विद्यार्थी स्नातकोत्तर करने तथा नौकरी करने भारत चले जाते हैं I तृतीय वर्ष भारत जाने के लिए चीनी विद्यार्थियों को चीनी सरकार तथा भारतीय सरकार से छात्रवृति मिलती हैं , यदि किसी कारणवश किसी विद्यार्थी को छात्रवृति नहीं मिलती है तो वे स्वयं के खर्च से भारत चले जाते हैं I चतुर्थ वर्ष में चीनी विद्यार्थी भारत से वापस आने बाद भारत- चीन सांस्कृतिक सम्बन्ध का इतिहास , भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति ,व्यावसायिक हिंदी, हिंदी –चीनी अनुवाद , हिंदी साहित्य , आदि विषय पढ़ते हैं , साथ ही पहले सत्र में हिंदी में एक लघु शोध निबंध लिखते हैं , शोध निबंध का विषय भारतीय साहित्य ,समाज , भारत चीन सम्बन्ध आदि से सम्बन्धित होता है I दुसरे सत्र में विद्यार्थी बाहर किसी कंपनी में कार्यानुभव लेते है I इस प्रकार चतुर्थ वर्ष में विद्यार्थी हिंदी में शोध अनुभव भी ले लेते हैं तथा कार्यानुभव भी, जो उनके स्नातक होने के बाद उनके भविष्य निर्धारण में बहुत ही सहायक सिद्ध होता है I
निष्कर्ष – वर्तमान समय में चीन में हिंदी भाषा एवं साहित्य पर बहुत शोध हो रहे हैं, वाल्मीकि रामायण, पंचतंत्र , महाभारत , अभिज्ञानशाकुन्तल , रामचरितमानस , सूरसागर , फणीश्वर नाथ रेणु की मैला आंचल ,प्रेमचंद की प्रतिनिधि कहानियों का चीनी भाषा में अनुवाद हो चूका है I चीनी विद्यार्थी स्नातक एवं स्नातकोत्तर में भी लघु शोध निबंध लिखते है ,इन लघु शोध निबंधों के माध्यम से चीनी विद्यार्थी भारतीय संस्कृति , दर्शन , वाणिज्य , भारतीय नारी की स्थिति आदि को समझने का प्रयास करते हैं I साथ ही चीनी विद्वत जन भी अपने तथ्यपरक शोधों से हिंदी भाषा को समृद्ध कर रहे हैं I हिंदी में उनके योगदान को देखते हुए प्रसिद्ध चीनी शिक्षक प्रोफेसर यू लोंग यू को वर्ष २०१६ में भारत के माननीय राष्ट्रपति द्वारा भारत अध्ययन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए “भारत विद पुरस्कार ”प्रदान किया गया I बीजिंग विश्वविद्यालय के हिंदी के प्रोफेसर च्यांग चिंग ख्वेई जिनका सूरदास पर विशेष शोध कार्य हैं को हिंदी में विशेष योगदान के लिए वर्ष २०१८ में भारत सरकार द्वारा “डॉ जार्ज गियर्सन पुरस्कार ” प्रदान किया गया I वाल्मीकि रामायण, पंचतंत्र, अभिज्ञानशाकुन्तल का चीनी भाषा में पद्यानुवाद करने वाले प्रो. चि श्येनलिन को वर्ष 2008 भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण से सम्मानित किया गया,उस समय अस्पताल में थे , भारत आने की स्थिति में नहीं थे , तब भारत के तत्कालीन विदेशमंत्री श्री प्रणब मुखर्जी स्वयं चीन जाकर अस्पताल में प्रो. चि श्येनलिन को पद्मभूषण से सम्मानित किया , पद्मभूषण से सम्मानित होने वाले वे प्रथम चीनी विद्वान् हैं I निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि चीन में हिंदी का विकास तीव्र गति से हो रहा है तथा हिंदी भाषा रुपी सेतु के माध्यम से भारत – चीन सांस्कृतिक संबंध दिन प्रतिदिन प्रगाढ़ हो रहे हैं I हमें हिंदी पर गर्व करते हुए हिंदी के विकास में अपना योगदान देनें का प्रयास करना चाहिए I हिंदी में एक कहावत है “गुरु गुड़ रह गये , चेला चीनी हो गया I ” यह सातवीं शताब्दी की घटना है , उस समय भारत से गुड़ चीन गया ,चीनी सम्राट को गुड़ का स्वाद अद्वितीय लगा , तब चीनी सम्राट ने अपने दूत मगध भेजे गुड़ बनाने की कला को सीखने के लिए , चीनी दूत भारत से गुड़ बनाने की कला सीखकर चीन वापस गए , और उन्होंने वहां जाकर गुड़ से अच्छा “चीनी ” बनाया, पुनः दसवीं वीं सदी में हमारा गुड़ चीनी बनकर घर वापस आया I कहने का तात्पर्य यह है कि हम उस दिन की प्रतीक्षा न करें जब हमारा गुड़ बाहर से चीनी बनकर आये, हमारा वेद , वेदा बनकर आये, हमारा आयुर्वेद , आयुर्वेदा बनकर आये , हमारा योग , योगा बनकर आये तभी हम उसे स्वीकार करेंगे , हमें आवश्यकता है अपनी भाषा एवं संस्कृति पर गर्व करते हुए उसे यथोचित सम्मान दें , हमारी हिंदी भी यथोचित सम्मान की अधिकारी है जो उसे अपने घर में ही दुष्प्राप्य है I आवश्यकता है हिंदी की महता को स्वीकार करते हुए उसे राष्ट्रभाषा के पद पर सुभोषित करने का I कुल निष्कर्षतः चीन में हिंदी भाषा दिन प्रतिदिन लोकप्रिय हो रही है , कालांतर में भारत – चीन के मध्य सांस्कृतिक सम्बन्ध को घनिष्ट करने में जो कार्य बौद्ध धर्म एवं योग ने किया था , आज वहीँ कार्य हिंदी कर रही है I हिंदी रूपी सेतु से भारत –चीन मैत्री सम्बन्ध और प्रगाढ़ हो रहे हैं I
-डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी