भारत –चीन विश्व की महान सभ्यताओं में से हैं जहाँ ज्ञान –विज्ञान की लौ सहस्त्राब्दियों से जल रही है I भारत – चीन ने अपनी ज्ञान परंपरा से सम्पूर्ण मानव समाज का पथ आलोकित किया है I २१ वीं सदी ज्ञान की सदी है I वैश्विक मानचित्र पर ज्ञान के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा सर्वाधिक है | विश्व स्तर पर अतृप्त ज्ञान-पिपासा तृप्ति की चाह में नित्य नूतन मापदण्डों को स्थापित करती हुई दृष्टिगत हो रही है | भविष्य में ज्ञान-विज्ञान का समाज ही विश्व में सबसे बड़ा समाज होगा | इसी कारण वर्तमान समय में विकसित और विकासशील देश “ नॉलेज इकॉनमी ” पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं I आधुनिक शिक्षा अत्यधिक प्रतिस्पर्धात्मक होने के साथ साथ समृद्धि और सफलता का मापदण्ड भी बन चुकी है | ऐसे में हमारे समक्ष अनेक यक्ष प्रश्न उपस्थित हैं, क्या हमारी शिक्षा विद्यार्थियों को समग्र जीवनदृष्टि देने में समर्थ है ? क्या यह नैतिक मूल्यों की स्थापना एवं भौतिक आवश्कताओं की पूर्ति कराने में पूर्ण सहायक है ? शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की कार्यदिशा किस स्तर की है ?

    अन्य देशों में, जिस समय विद्यालय की परिकल्पना भी सम्भव नही थी , उस समय भारत में नालंदा , तक्षशिला , विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय अस्तित्व में थे , जहां  शताब्दियों तक अखंड शिक्षा सत्र का संचालन हुआ था | यहाँ लाखों की संख्या में देशी विदेशी स्नातक शिक्षित हुए थे | उस समय भारत विश्व-गुरु के आसन पर आसीन था तथा इस देश में ज्ञान-विज्ञान के साथ-साथ  नैतिक मूल्य भी उच्च स्तर पर स्थापित थे |

आधुनिक भारत में भी शिक्षा का विस्तार हुआ है, किन्तु गुणवत्ता तथा वैश्विक प्रतिस्पर्धा की दृष्टि से यह उपलब्धि अपर्याप्त है | संख्या की दृष्टी से भारत की उच्चतर शिक्षा-व्यवस्था अमरीका और चीन के बाद तीसरे स्थान पर हैं  , किन्तु गुणवत्ता की दृष्टि से विश्व के १००  शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत के ३०० विश्वविद्यालयों में से एक भी विश्वविद्यालय शामिल नही है | विज्ञानं एवं अभियन्त्र्ण के क्षेत्र में यहाँ से विश्वस्तर पर मात्र ३% शोधपत्र ही प्रकाशित होते है | भारतीय छात्र प्रतिवर्ष विदेशो में पढ़ने के लिए लगभग १ अरब डॉलर अर्थात ४३००० करोड़ रुपया खर्च करते हैं  | एक शोध के अनुसार भारत के ९०% कॉलेज तथा ७०% विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक स्तर कमजोर है | यहाँ आई .आई .टी .जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी १५% से २५ % तक अध्यापकों की कमी है | आखिर क्या कारण है कि उच्च में स्वर्णिम इतिहास रहते हुए भी आज हम उच्च शिक्षा में संपन्न देशों से पिछड़ते जा रहे हैं I उच्च शिक्षा को मजबूत किये बिना विकसित देशों की श्रेणी में स्थान पाना दिवा स्वप्न ही रह जायेगा I

आज जब हम अपने सबसे बड़े पडोसी देश चीन की उच्च शिक्षा पर दृष्टि डालते है तो हम इन्हें अपने से आगे पाते है ,चीनी शिक्षा व्यवस्था इन्फ्रास्ट्रक्चर, आधुनिक शोध के नवीन उपकरणों, शोध की गुणवत्ता आदि में काफी आगे है I चीन के कई विश्वविद्यालय विश्व के शीर्ष १०० विश्वविद्यालयों में शामिल है, भारत के ५०० विश्वविद्यालयों की तुलना में चीन में २००० विश्वविद्यालय आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित है , भारत में बड़े बड़े विश्वविद्यालयों में भी ¡°स्मार्ट क्लासरूम ¡± की संख्या काफी नगण्य है,जबकि चीन के विश्वविद्यालयों के लगभग हर क्लासरूम ¡° स्मार्ट क्लासरूम ¡± हैं, हर क्लास में प्रोजेक्टर, टीवी और इन्टरनेट है,यंहा तक कि सुदूर गांवों में स्थित विद्यालयों में भी स्मार्ट क्लासरूम है I चीन अपने उच्च शोध के कारण ही आज विश्व की सबसे बड़ी बुलेट ट्रेन का परिचालन कर रहा है जो अभी भी हमारे लिए सपना है I चीन के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर पीएचडी के शोध निर्देशक नहीं बन सकते, एसोसिएट और प्रोफेसर ही शोध निर्देशक बन सकते हैं वो भी एक निश्चित प्रक्रिया से गुजरने के बाद, समय समय पर शोध निर्देशकों का शिक्षा विभाग द्वारा मूल्याङ्कन भी होता रहता है , जबकि भारत में असिस्टेंट प्रोफेसर भी पीएचडी के शोध निर्देशक बन सकते हैं , जिन्हें स्वयं शोध का समुचित अनुभव नहीं हैं जब वे शोध कराएँगे तो उस शोध की गुणवत्ता के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है I चीन के विश्वविद्यालयों में स्नातक से ही शोध करना सिखाया जाता है , चीन में स्नातक ४ वर्ष का, स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम ३ वर्ष का होता है, विद्यार्थियों को स्नातक में ही शोध निर्देशक मिल जाते हैं, स्नातक चतुर्थ वर्ष में ५-१० हज़ार शब्दों में एक संक्षिप्त शोध पत्र और स्नातकोत्तर तृतीय वर्ष में २०-३० हज़ार शब्दों में लघु शोध पत्र लिखना पड़ता है, इस प्रकार विद्यार्थियों को आरंभ से ही शोध करना सिखाया जाता है जिसका सीधा प्रभाव चीनी विद्यार्थियों के ज्ञान कौशल और देश के विकास पर पड़ता है I  भारत में भी विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तर से ही शोध परम्परा को बढ़ावा देना चाहिए I शोध के लिए सबसे आवश्यक होता हैं सम्बंधित आंकड़ों का संग्रह, गुणवत्ता पूर्ण और तथ्यपूर्ण शोध के लिए चीनी सरकार ने एक वेबसाइट बनाया है जंहा चीन के समस्त विश्वविद्यालयों के शोध पत्र, शोध जर्नल अपलोड किये जाते हैं, किस विषय पर कितना, कंहा,कब और किसने शोध किया है एक ही जगह पर प्राप्त हो जाता है जिससे शोध की अविरल धारा में डेटा सम्बंधित कोई रूकावट नही होती I शोध में गुणवता के लिए सारे शोध की ऑनलाइन जाँच की जाती है I भारत में बहुत कम ही शोध पत्र ऑनलाइन है I भारत में शोध पत्रों के ऑनलाइन नही होने से उनका लाभ बहुत कम लोग ही उठा पाते हैं और वे शोध पत्र कितने मौलिक हैं इसकी प्रमाणिकता पर भी किंचित संशय ही रहता है I

      भारत के अनेक महाविद्यालयों के अनेक विभाग प्राध्यापकों से शून्य है | भारत में मात्र ११% छात्र ही प्रारम्भिक शिक्षा से उच्चशिक्षा की ओर उन्मुख होते हैं| वर्तमान भारत की आधी आबादी पच्चीस वर्ष से कम उम्र की हैं ११२ करोड़ आबादी १८ से २३ वर्षों के बीच  की हैं | इतनी बड़ी आबादी को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करना बहुत बड़ी समस्या हैं | स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व के ५० वर्षो में मात्र ४४ निजी शिक्षण संस्थानों को डीम्ड विश्वविद्यालय का दर्जा प्रदान किया गया था  | विगत कुछ वर्षो में सुधार हुआ है और शिक्षा निजीकरण की ओर तीव्र गति से उन्मुख हो रही है तथापि वर्तमान ढर्रे पर स्नातक की डिग्री प्रदान करने की प्रवृति से शिक्षा व्यवस्था को मुक्त करना भी आवश्यक है | कारण की ,”नैसकाम” और “मैकिन्से” के शोध के अनुशार मानविकी शिक्षा में १० में से १ तथा इंजीनियरिंग की डिग्री ले चुके छात्रों में ४ में से १ भारतीय छात्र ही नौकरी पाने योग्य हैं | भारत में मानविकी ,वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा समन्वय स्थापित करना शिक्षा की सर्वाधिक समयानुकूल आवश्कता है | वंही चीन में उच्च शिक्षा में गुणवत्ता पर समुचित ध्यान दिया जाता है, स्नातक चतुर्थ वर्ष में विद्यार्थियों के १-२ सत्र का कार्य अनुभव लेना अनिवार्य है, बिना कार्य प्रशिक्षण के वे स्नातक नहीं हो सकते I चीनी उच्च शिक्षा में पारदर्शिता लाने तथा विद्यार्थियों को उनका मौलिक अधिकार देने के लिए विश्वविद्यालयों में शिक्षक विद्यार्थियों का मूल्याङ्कन तो करते ही हैं , विद्यार्थी भी शिक्षकों का मूल्याङ्कन करते हैं, दोनों को १०० – १०० अंक दिए जाते हैं एक दुसरे के मूल्याङ्कन करने के लिए, शिक्षक विद्याथियों के गृह कार्य, उनकी कक्षा में उपस्थिति के आधार पर उनका मूल्याङ्कन करते हैं वंही विद्यार्थी शिक्षक के शिक्षण तकनीक, शिक्षक का विद्यार्थी के प्रति व्यवहार , शिक्षक की कक्षा में समय पर उपस्थति आदि के आधार पर मूल्याङ्कन करते है, ये सारे गतविधि ऑनलाइन होते है I विद्यार्थी कौन सा विषय किस शिक्षक से पढेंगे विश्वविद्यालय के वेबसाइट पर जाकर चुनते है, इस प्रकार शिक्षक – विद्यार्थी दोनों अपने अपने उत्तरदायित्वों के प्रति सजग रहते हैं और अध्यापन-अध्ययन में अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं I पुरे सत्र में शिक्षक जो भी विषय पढ़ाते है उसकी विस्तृत जानकारी विश्वविद्यालय के वेबसाइट पर डालना अनिवार्य है I

     चीन ने उच्च शिक्षा में गुणवता पूर्ण शोध के लिए विशेष विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी है, जैसे मेडिकल विश्वविद्यालय ,प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,  अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,विमान निर्माण तकनीक विश्वविद्यालय, रेलवे विश्वविद्यालय, विदेशी विश्वविद्यालय आदि I इन विश्वविद्यालयों में अंतर्राष्ट्रीय मानकों के सारे आधुनिक उपकरण उपलब्ध है जिससे बिना रुकावट के उच्च शोध में प्रगति हो रही हैं I भारत और चीन के विश्वविद्यालयों में अन्तर को स्पष्ट करने के लिए हम विदेशी भाषा विश्वविद्यालय का उदाहरण ले सकते हैं, चीन में लगभग १५ विदेशी भाषा विश्वविद्यालय है जिसमें सबसे प्रसिद्ध पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय है जंहा ८४ विदेशी भाषाओं में डिप्लोमा /स्नातक/स्नातकोत्तर/ पीएचडी पाठ्यक्रम है I चीन के हर विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में जिस विदेशी भाषा की पढाई होती है अनिवार्य रूप से उस भाषा का नेटिव शिक्षक का होना आवश्यक है, जिससे विद्यार्थी विदेशी भाषा का शुद्ध और सही अध्ययन कर सकें I भारत में तो गिने चुने विदेशी भाषा विश्वविद्यालय हैं जंहा मुश्किल से १० -१५ विदेशी भाषाओं में ही पाठ्यक्रम उपलब्ध है, लेकिन उन विश्वविद्यालयों में भी विदेशी भाषा का नेटिव शिक्षक अनुपलब्ध है I    

 २१वीं शताब्दी के ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रतिष्ठित होने के लिए भारत में स्कूली शिक्षा के नीवं को मजबूती प्रदान करना भी आवश्यक है | स्कूली शिक्षा में मूलभूत संसाधनों में वृद्धि  के बावजूद भी गुणवत्ता का विकास सम्भव नहीं हो पा रहा है, जो कि विचारणीय प्रश्न है | भारत में आधे से अधिक प्रारंभिक शिक्षण संस्थाएँ शैक्षणिक गतिविधियों से प्राय: शून्य है| प्रारंभिक शिक्षा में चॉक और ब्लैकबोर्ड के जमाने से आगे बढ़कर आधुनिक तकनीक के प्रयोग की आवश्यकता है | शिक्षा क्षेत्र में अंग्रेजी की अनिवार्यता के चलते भी बहुत से विद्यार्थी पीछे रह जाते है , फलतः भारतीय भाषाओँ में शिक्षा और शोध की उचित व्यवस्था किये बिना शिक्षा की गुणवत्ता में अपेक्षित सुधार सम्भव नहीं है |

  महात्मा विदुर जी का संस्कृत में एक कथन है ¡°अर्थकरी च विद्या ¡± अर्थात शिक्षा को रोजगारुन्मुख होना चाहिए,परन्तु वर्तमान भारतीय उच्च शिक्षा बेरोजगार ज्यादा उत्पन्न कर रही है I भारत में १९८६ ईस्वी में रोजगारोंन्मुखी शिक्षा व्यवस्था लागू की गयी | प्रारम्भ से ही इस व्यवस्था  के साथ एक विसंगति भी जुड़ी हुई हैं कि पढ़ाई में पीछे रहने वाले छात्र ही उस व्यवस्था को पसन्द करते हैं | वर्त्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार द्वारा कौशल-विकास योजना सहित अन्य रोजगारोन्मुखी शिक्षा के लिए पर्याप्त मात्रा में पूंजी उपलब्ध करा कर उस विसंगति को दूर करने का प्रयास प्रारम्भ किया गया हैं |

   भारत के सभी प्रदेशों में एक समान शिक्षा नीति तथा एक समान पाठ्य क्रम नहीं हैं | भारतीय संविधान में शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा गया हैं ,तथापि कोई भी पाठ्य क्रम राज्यों पर केंद्र द्वारा थोपा नही जा सकता हैं | भारत में एक राष्ट्रगान, एक राष्ट्रगीत, एक राष्ट्रीय चिन्ह हो सकता हैं, किन्तु एक समान शिक्षा-नीति नही हैं | भारत के सभी प्रदेशों में परस्पर समन्वय स्थापित कर  एक सम्यक ,समावेशी ,सुदृढ़ ,समग्र ,संतुलित तथा  रोजगारोन्मुखी पाठ्य क्रम तथा शिक्षा नीति की आवश्यकता हैं | इस दिशा में सार्थक प्रयास अपेक्षित हैं | मनमोहन सिंह ने १९९१ ई. में तथा उसके बाद नरेन्द्र मोदी ने २०१७ ई. में जो क्रन्तिकारी सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था में किये हैं , ठीक वैसे ही सुधार की आवश्यकता शिक्षा क्षेत्र में भी हैं ,जिसके बिना भारतीय शिक्षा का कायाकल्प सम्भव नहीं  हैं |

आज विश्व में घटित होने वाली बहुत सी घटनाओं का उतर विज्ञान में नहीं हैं ,जिससे विज्ञान विनाश की ओर भी अग्रसरित हो सकता हैं | फलत: विज्ञान एवं तकनीकी का अध्यात्म के साथ समन्वय आवश्यक हैं | फलत: पाठ्य क्रम में “श्रीमद् भगवद् गीता” जैसे ग्रंथों को सम्मिलित करना शिक्षा की अनिवार्य आवश्यकता हैं , जिससे मनुष्य विनाश से बच सके | भारतीय नैतिक, अध्यात्म ज्ञान का उच्च शिक्षा में स्थान आवश्यक है, इसके अभाव में ही उच्च शिक्षित व्यक्ति ज्यादा बड़े भ्रष्टाचारी सिद्ध हो रहे हैं, विद्यार्थियों में तनाव ,हिंसा आदि की प्रवृतियाँ भी पनप रही है I नैतिक शिक्षा के अभाव में हम सफल तो हो रहे हैं लेकिन समाज ,देश ,विश्व के लिए सार्थक नही हो पा रहे हैं I नैतिक शिक्षा के अभाव में ही भारत के बड़े –बड़े विश्वविद्यालयों में परीक्षाएं भी बन्दूकों के साये में होती है , क्या हम अपने विद्यार्थियों को इस लायक भी नहीं बना पाए कि वे शांति से आयें और परीक्षा दें ? 

चीन में एक समान शिक्षा निति का पालन होता है I १२ वीं की परीक्षा पुरे देश में एक साथ होती है , १२ वीं परीक्षा परिणाम के आधार पर विद्यार्थियों को ऑनर्स विषय तथा विश्वविद्यालय का निर्धारण किया जाता है I चीन में नैतिक शिक्षा , राष्ट्रभक्ति की शिक्षा, सांस्कृतिक शिक्षा, सैन्य शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है I स्नातक पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा और राष्ट्रभक्ति शिक्षा का पेपर अनिवार्य रूप से पढना पड़ता है, स्नातक प्रथम वर्ष में प्रत्येक विद्यार्थी को अनिवार्य सैन्य प्रशिक्षण लेना पड़ता है I नैतिक ज्ञान के अभाव में सारे ज्ञान निरर्थक है, शायद इसी कारण भारत में भ्रष्टाचार हर क्षेत्र में व्यापत है, भारत के शीर्ष विश्वविद्यालयों में राष्ट्र विरोधी नारे लगाये जाते है और तथाकथित बुद्धिजीवी उनका समर्थन भी करते है , इनका सब कारण है हमारे विश्वविद्यालयों में नैतिक शिक्षा और राष्ट्रभक्ति आधारित शिक्षा का अभाव I भारत में हमारी उच्च शिक्षा को मूल भारतीय संस्कृति से विमुख किया जा रहा है, तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारतीय संस्कृति के विरुद्ध विष वमन किया जा रहा है , वंही चीन अपनी पुरातन संस्कृति पर गर्व करते हुए उनपर शोध करने के लिए उचित प्रबंध कर है, परिणामस्वरूप २०१५ में एक चीनी महिला “ थु यौ यौ ”को चिकित्सा क्षेत्र में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया, जिन्होंने अपना काम प्राचीन चीनी चिकित्सा पर किया था I चीनी पारम्परिक चिकिस्ता पर शोध के लिए चीन में बहुत सारे चिकित्सा विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है, चीनी ज्ञान के श्रोत कन्फ़्यूशियस,लाओत्से आदि के विचार रहे हैं, चीन सरकार ने कन्फ़्यूशियस के विचारों को देश की उच्च शिक्षा का अंग तो बनाया ही हैं विदेशों में भी १५० से ज्यादा देशों में कन्फ़्यूशियस शोध केंद्र स्थापित किया है I भारत में भी ऐसा किया जा सकता है क्योंकि हमारे पास प्राचीन भारत के वैज्ञानिक ऋषियों , मुनियों द्वारा योग, आयुर्वेद जैसे महान पुरातन भारतीय ज्ञान है, लेकिन वर्तमान में भारत में विशेष रूप से योग और आयुर्वेद पर शोध के लिए समर्पित विश्वविद्यालयों की कमी है I यदि भारत को पुनः विश्वगुरु बनना है तो हमें अपने पुरातन संस्कृति एवं ज्ञान पर गर्व करते हुए उनपर उचित शोध की व्यवस्था करनी होगी I चीनी विश्वविद्यालयों में विद्याथियों की सामाजिक कार्यों में भी भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, उत्तर चीन में ठंडी के मौसम में भारी बर्फ़बारी होती है , विश्वविद्यालय परिसर के सड़कों पर भी बर्फ की मोटी चादरें बिछ जाती हैं, जिन्हें हटाने की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों की ही होती है, शुन्य से ३० डिग्री नीचे के तापमान में चीनी विद्यार्थी हाथों में कुदाल-फावड़ा लिए सड़क पर से बर्फ को हटाने में जुट जाते हैं I विश्वविद्यालयों में कक्षाएं प्रातः ८:३० से शुरू हो जाती है, सुबह से अध्ययन में लिप्त , सामाजिक कार्यों में भागीदारी का सकारत्मक प्रभाव इनके स्नातक उपरांत नौकरी जीवन पर पड़ता है I

यूनेस्को की डेलार्स कमेटी के रिपोर्ट के अनुसार किसी भी देश की शिक्षा का स्वरूप उस देश की संस्कृति एवं प्रगति के अनुरूप होना चाहिए | इस दृष्टी से आधुनिक भारतीय शिक्षा को भी भारतीय संस्कृति एवं प्रगति की मूलभूत संकल्पना के अनुरूप ढालना आवश्यक है | आधुनिक शिक्षा की दशा में सुधार तथा शिक्षा को नवीन दिशा प्रदान करने हेतु पाठ्यक्रमों की पुर्नरचना आवश्यक है जिससे उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में वृद्धि हो सके और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप भारतीय शिक्षा की पुनर्स्थापना हो सके | पाठ्यक्रमों की पुर्नरचना में भारतीय गौरव को अभिव्यक्त करने वाले ऐतिहासिक तत्वों को पुनः स्थापित करना आवश्यक है | प्राचीन भारतीय जीवन मूल्यों तथा नैतिकता की शिक्षा अनिवार्य करना भी नितांत आवश्यक है | छात्रों में देश तथा समाज के प्रति संवेदनशीलता जागृत करना वर्तमान भारतीय शिक्षा की सबसे बड़ी आवश्यकता है | प्रत्येक तीन वर्ष पर पाठ्यक्रमों की समीक्षा तथा पाठ्यक्रमों की जड़ता समाप्त को समाप्त करना आवश्यक है | पाठ्यक्रमों में सांस्कृतिक धरोहर एवं प्राचीन ज्ञान विज्ञानं की शिक्षा की अनिवार्यता परमावश्यक है | पूरे देश में एक समान पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या को पुनः स्थापित करना भी आवश्यक है | शिक्षा बजट में पर्याप्त वृद्धि तथा शिक्षकों के रिक्त पदों को शीघ्र अति शीघ्र भरना भी अपेक्षित है | मानविकी तथा तकनीकी से सम्बंधित शिक्षा संस्थानों के शैक्षणिक स्तर वृद्धि तथा भविष्य की आवश्यकता के अनुरूप गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण संस्थानों को स्थापित करना भी आवश्यक है | आधुनिक शिक्षा को प्राचीन भारतीय ज्ञान विज्ञान की आधारशीला प्रदान करना भारतीय शिक्षा की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है |  

-डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी

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