आप्रवासी दिवस

आया है दिन यह कितना सुहाना
प्यार में छेड़ो सब यह तराना
पाँच जून है यह दिन तो पुराना
आए थे उस दिन परनानी और परनाना

आए थे परआजा और परआजी
कहते थे हम सब हैं जहाजी
लालारुक था पहला जहाज़
आए सब पढ़ते-पढ़ते रामायण या नमाज़

आए सब पुरखों ने
अपना मुलुक भारत छोड़कर
उन्हें अड़काठी नहीं बताया, कहाँ है सूरीनाम
बस चल दिए सब बिना करे प्रणाम

कटलीस चलवाए, चूंटी कटवाकर
कोफी लगवाए जंगल कटवाकर
ककाव भी बोइली कभी नरोईली
देशवा में रहईली सब तो सहईली

एक सौ और बारा बरस तो बीतल
जैसे भी बीतल, अच्छा से बीतल
वकील या डॉक्टर, मंत्री या मास्टर
सभी बने हम इस देश में पढ़कर

***

-कारमेन सुयश्वी जानकी
मई १९८५

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