जिंदगी तुझसे यूं..
जिंदगी तुझसे यूं गुफ्तगू करते रहे
क्रेडिट कार्ड के जमाने में जैसे
कहीं रिश्तों के भरे बटुए से
रुपया-अठन्नी से निकले-तजुर्बे
पाकर, भी क्यूँ नादान से
जख्मों पर खुद ही अपने
कहीं नमक छिड़कते रहे हम ..!
कत्ल-कहीं खुद हम ही अपने
आस-उल्लास-अहसास का करके
हर जीत का जश्न अपनों के लिए
ही खुद हार, कहीं हार बना कर गले
पहनते रहे ऐ जिंदगी तुझ से
यूँ नजरों से नज़र मिलाते रहे हम ..!!
अब जाना पर, मुट्ठी भर जिंदगी में
दरिया भर ख्वाब यूँ देखते रहे..
पुराने दर्द को भुलाने के लिए
नए दर्द खुद को कहीं हवा देते रहे
ऐसे आस्तीन में सांप पालते रहे हम..!!
दिल की कोरी-नमी जमीन पे
तेरी क्यारियों में सांसे-हल चलाते हुए
ख्वाब-ख्वाहिश के बीज यूँ बोते रहे
जज्बाती-किस्सों-सी उगी फ़सलें..
लापता-सायों से न जाने कैसे
खुद से खुद का ही पता पूछते रहे हम..!!
जिंदगी तेरी वेवफाई पर ऐसे
मौत तक ही हम हंसते रहे हम ..!!
जिंदगी तुझसे यूं गुफ्तगू करते रहे
क्रेडिट कार्ड के जमाने में जैसे
कहीं रिश्तों के भरे बटुए से
रुपया-अठन्नी से निकले-तजुर्बे
पाकर, भी क्यूँ नादान से
जख्मों पर खुद ही अपने
कहीं नमक छिड़कते रहे हम ..!
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-सुनीता शर्मा
