अधूरी  कविता

बस एक अधूरी कविता
सुनानी है तुम्हें..
शब्द -निशब्द से
बोलती खामोशी को
शायद पढ़ सके हम जहां..
बस वही एक अधूरी कविता..

ख्वाहिशें पिघलती हुई
बढ़ती आंखों की नमी
शब्दों की रूह कहीं
दिल में उतर रही हो जहाँ..!
बस वही एक अधूरी कविता..

यादों सजे बाजार में
तेरा साथ व चाँद-तारें
फ़िर सारी रात जगे
दर्द का बिस्तर हो ऐसे
खामोशी-बिछी-चादर जैसे

तकिए हो तकते वैसे..
नींद- ख्वाब -आंगन जैसे
चांदनी में बिखरी वह ऐसे
बस वही एक अधूरी कविता..

देंखें एकटक दिन बीते हुए
हुए कैसे खुद से
ही खुद के फासले
शायद कुछ समझ पाएं
पत्थर-शहर-शीशा-दिल-साजिशें
बहके -उमड़े जज्बात अनकहे
बस सुन सके वही..
वही एक अधूरी कविता..
बस वही एक अधूरी कविता..

*****

-सुनीता शर्मा

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