मधु स्मृति

अवसादों की भीड़भाड़ में
और विषाद के परिहास में
प्राणों के सूने आंगन में
अश्कों के बहते प्रवाह में
मधु स्मृति !
तुम थोड़ा मन बहलादो,
तुम थोड़ा मन बहलादो,
आज बहकती सी यादों में
आज थमे मेरे सपनों में
अश्क धुले मेरे अंतर में
एक दीप जला दो!
मधु स्मृति!
तुम एक दीप जला दो!
यादों की बढ़ती बाढ़ों में
अश्कों के चुप चाप गुजरते
इस अविरल बहते प्रवाह में
थोड़ी सी गति लादो !
तुम थोड़ी सी गति लादो !
अरि प्रतीक्षा के बन्धन पर
शत शत मुक्ति लुटा दूँ
मैं शत शत मुक्ति लुटा दूँ ,
प्रणय अश्रु के दो कण पर
शत शत मुस्कान लुटा दूँ
मैं शत शत मुस्कान लुटा दूँ ,
प्रिय लौटेगें कल,
मधु स्मृति !
तुम आज मधुर बना दो !

*****

-स्नेह सिंघवी

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