परछाइयाँ
नापती पसीने से,
तर बूंदें, कहीं शरीर पर,
अनायास चल पड़़ती धार,
सूरज ताप से,
भूख के संताप से,
तपती देह को,
घटती, बढ़ती परछाइयाँ।
सुबह उठ,
कर, झाड़ साफ, झोंपड़ी,
राख सनी रुखी रोटी,
मिर्ची की महक
लहसुन का जायका,
उगते सूरज की किरणें,
नापती परछाइयाँ।
ईंट रोड़ा सिर,
सीमेंट, गारा सनी देह,
मशीनों की घड़घड़ाहट बीच,
उभरती,
पड़ती दमदार चीख,
काम निपटाने की जल्दी,
नापती देह की,
बोझिल थकावट भरी,
नंगे पैरों, चाल की परछाइयाँ।
बाल रुदन,
पत्नी के साँझ का वचन,
इसी बीच, बार बार, हर बार,
ठेकेदार की पड़ती फटकार,
होती नकार,
उभरी, फटती बीवाइयाँ,
सर्द दर्द नापती परछाइयाँ ।
दुबली लचकती
कँपमान देह,
फटे मैले हाथ,
बसी साँस, बीच पसलियाँ,
पगार को मापती
मँहगाई की परछाइयाँ।
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-रामा तक्षक