माँ हिंदी तुम वो हो

तुम मात्र मेरी अभिवक्ति की आवाज़ नहीं हो
तुम वो हो जिसे सुनने के बाद
दुनिया मुझे पहचान जाती है
मैं कौन हूँ कहाँ से हूँ ये जान जाती है
जब मैंने कागज़ पर
अपनी भावनाओं के रूप में लिखा तुम्हें
तुमने बढ़ कर मुझे कवि की संज्ञा दे दी
तुम्हारे ही सांचे में ढल कर
दिनकर और निराला की रचना हुई
साहित्य को साहित्य तुमने ही तो बनाया है
तुम ही वो जो वीरों की दहाड़ बन कर
सरहदों पर दुश्मनों को दहलाती है
तुम वो ही हो जो लोरी बन कर
किसी बालक को मीठी नींद सुलाती है
जब मन के भीतर कोई रचना बन कर टहलती हो तुम
मेरे चेहरे का नूर कुछ और ही होता है
हिमालय के गर्भ से जन्मी हुई
नदी को ‘गंगा’ तुमने ही बनाया है
ब्रह्माण्ड स्वर ॐ
जब तुम्हारी सूरत बन कर जिव्या पर हो
देवता भी तभी प्रसन्न होते हैं
माँ के मन से निकली हुई दुआ हो तुम
पिता का दिया हर आशीर्वाद हो तुम
पुरातन दर्शन हो युग परिवर्तन हो
सूर्य को समर्पित मुनि तपस्वी योगी की अंजुली से
निकलती धारा तुम ही तो हो
तुम्हें सादर प्रणाम माँ हिंदी
तुम मात्र मेरी अभिवक्ति की आवाज़ नहीं हो
तुम वो हो जिसे सुनने के बाद
दुनिया मुझे पहचान जाती है
मैं कौन हूँ कहाँ से हूँ ये जान जाती है

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-पूनम चंद्रा ‘मनु’

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