मेरी आँखों में
आज सुबह को देखना तुम
मेरी आँखों में
उस सपने की तरह
जो लाती है सूरज को रोज़ किसी
सच की तरह
देखना वो हो जाएगा बर्फ
तुम्हारे प्यार की आग के सामने .
तब तुम खेलना उस से
किसी मनचाहे खिलौने की तरह
मुझे यकीन है तब
वो बन जाएगा तुम्हारी ज़मीन
तुम चलोगी उस पर उन तारों की तरह
जो कभी उगते होंगे तुम्हारी
सपनो की ज़मीन में
करना तुम अपनी मुठी को बंद
ले जाना धीरे से अपनी आँखों तक
फिर खोलना संभलकर उन्हें
देखो कहीं मैं गिर न पड़ूँ
छूना उसे पलकों से
गिनूंगी मैं उन्हें एक-एक कर
हर पलक के बीच होंगे वही सपने
जिन्हें छोड़ गए हो तुम पीछे
थोडा सा झुको
छुओ मुझे, मैं वही एक सपना हूँ।
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-अनिता कपूर