ख़्वाब

कितनी ही चीज़ों को
तुमने जोड़ दिया है
मेरे दायरे में-फ़िलहाल
सोच के ढेरों ख़्वाब
हथेलियों में छपाक-छपाक
फिसलती जा रही है देह
नस-नस में
दरिया की तरह बदलती
जा रही है तुम्हारी मौजूदगी
बहुत सारे मायनें बदल गए हैं
अपने और अजनबी में
इंतज़ार की तराई में
आलता रंगें पाँव
बजा रहें हैं पाज़ेब की झनक पर
नदी का समुद्र-गीत
बोलती आँखों में
दहकते कुकुरमुत्तों के फूल
दिल रुबा से थिरकते
पहाड़, आकाश और झरने
भूगोल को महसूसने तक
ले आयें हैं
नथुनों में अनुभवी आदिम गंध
इरादों की चट्टान पर
सहलाती हूँ उसी दूब को
जहाँ तुम्हारे साथ
छिपा दिये थे सुनहरी शामों के रंगीन ख़्वाब
तुम से जुड़ कर –
फिलहाल।

*****

-अनिता कपूर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »