मोटी सुई

नितीन उपाध्ये

आज शाम से ही गोलू की बेचैनी देखने लायक थी। आज उसने अम्मा से कुछ खाने के लिए भी गुहार नहीं लगाई। वह तो अम्मा ने सुबह की रोटी पर घी चुपड़कर उसके ऊपर शक्कर बुरक कर उसके हाथों में पकड़ाना भी चाहा, पर वह “भूख नहीं है” कह कर दादी के कमरें में भाग गया। दादी ने आँगन का सब हाल-हवाल देख लिया था, इसलिए बिना कुछ पूछे उसे अपने पास के डिब्बे से गुड़ और मुरमुरे का लड्डू देना चाहा, पर वह तो दादी की गोदी में सर छुपा कर सोने का ढोंग करने लगा। दादी ने वही से बाहर भूरी गाय को चारा पानी दे रहे उसके दादा जी को आवाज लगाते हुए कहा “अरे सुनो, आज मेरा लड्डू गोपाल जल्दी सोने जा रहा है, आ जाओ, आप इसे कहानी नहीं सुनाओगे?” दादी गोलू को प्यार से लड्डू गोपाल कहती थी। वैसे तो गोलू का असली नाम चिन्मय था, जो कि उसकी अम्मा ने बड़े प्यार से रखा था, पर उसे घर का हर आदमी अलग अलग नामों से पुकारता था। छोटा चाचा उसे गोलू कहता, बुआ मुन्नू और फौजी पापा उसे “मेरा वीर बहादुर” कह कर पुकारते। दादा जी उसे गुरुनाथ कहते, और उसे गुरुनाथ और बुरुनाथ इन नामों के दो भाइयों की कहानी सुनाते, जिसमें बुरुनाथ बुरा होता और सभी ख़राब ख़राब काम करता जिसे गुरुनाथ ठीक करता। गोलू समझ जाता कि उसके द्वारा की गई शैतानियों को दादा जी बुरुनाथ के नाम से उसे सुनाकर उसे गुरुनाथ बनाना चाह रहे है। वह दादा जी से पूछता भी “दादा जी मैं ही बुरुनाथ हूँ न?” तब दादाजी अपनी बड़ी बड़ी मुंछों को उसके गालों पर रगड़ते हुए उसका जोर से चुम्मा लेते और कहते की “न बेटा, तू तो हम सबका गुरुनाथ है”।

पांच साल का गोलू घर भर की आँखों का तारा था। सुबह उठने से रात को सोने तक अपने घर आँगन में डोलता फिरता था। दादा जी के साथ खेतों में जाया करता था। वहां जाकर कुँए के ठन्डे ठन्डे पानी से नहाना भी उसे अच्छा लगता था। यह तो गाँव की खुली हवा और घर के साग, सब्जी, अन्न, दूध, दही और फलों का ही असर था। ऊपर से उसकी दादी के घरेलु दवाइयों की पोटली की वजह से उसे कभी भी न तो बिमारी का मुँह देखना पड़ा था और न ही किसी चिकित्सक के पास जाना पड़ा था ।

पिछले सप्ताह उसके फौजी पिता पुरे महीने भर की छुट्टी लेकर गाँव आये थे। क्योंकि वह गोलू को नये शैक्षणिक सत्र में विद्यालय में दाखिला दिलवाकर अपने सामने उसे विद्यालय भेजना चाहते थे। दादा जी ने कहा कि विद्यालय जानें के पहले गोलू को एक टिटनेस का टीका जरूर लगवा देना, बच्चे मैदान में खेलते हुए गिरते पड़ते है और चोट लगती रहती है। जब से पिताजी घर आये है, गोलू उनसे बन्दुक, तोप, हवाई जहाज की बाते करते नहीं थकता था। कल सुबह उसके पिता जी से मिलने उसके पशु चिकित्सक मामा शहर से गाँव आये थे। शाम को अचानक भूरी जोर जोर से आवाज करते हुए जमीं पर लौट गई तो मामा ने उसका मुआयना करके गोलू से कहा “जा जरा भाग कर मेरा चमड़े वाला बैग ले कर आ”। गोलू बिना समय गवाये मामा का बैग लेकर आया और जब मामा ने उसमे से होली की पिचकारी से भी मोटी सुई निकालकर भूरी को लगाई तो भूरी से ज्यादा जोर से तो गोलू ही चीख पड़ा। मामा ने हँसते हुए कहा ‘तुझे भी लगा दूँ” तो वह भागकर दादी के कमरें में छुप गया। उसकी दादी उसे बताती थी कि बचपन में उसे काफी टीके लगे है तो उसे लगता की जैसे रोज पूजा के बाद दादी उसके माथे पर चन्दन का बड़ा सा टीका लगाती है वैसे ही टीके लगे होंगे, पर एक दिन बुआ ने कहा “टीका मतलब सुई बुद्धू” तो उसे लगा की सुई यानी जैसे उसकी माँ उसके टूटे हुए बटन लगाने के लिए जो सुई लेती है वैसे ही सुई लगाई होगी पर आज मामा के पास उसके हाथ से भी मोटी सुई देखकर उसके होश उड़ गए थे। हनुमान चालीसा पढ़ते पढ़ते कब उसे रात में नींद लग गई थी उसे पता ही नहीं चला था।

सुबह से ही वह मामा के पास नहीं गया था, सोच रहा था की मामा तो कल सुबह बस से शहर चले जायेंगे। पर दोपहर के खाने के बाद दादा जी ने पिता जी से कहा कि “कल सुबह तुम कार लेकर शहर चले जाओ, बहु रानी गोलू के लिए कपडे, किताबें कलम दवात ले लेगी और अपनी भाभी से भी मिल लेगी। बस तब से गोलू को मानो बुखार ही चढ़ गया था। वह तो मामा से पीछा छुड़ाना चाह रहा था और कहाँ दादा जी उसे भी उनके साथ एक ही कार में भेज रहे है।

इस बैचेनी में उसे दादी की ममता भरी गोद में भी नींद नहीं आई और वह उठकर दरवाजे के पास बैठे झबरे के कानों में कहने लगा “जा मामा के बैग से मोटी वाली सुई निकला कर ले आ”। झबरे ने भी अपनी दुम हिलाकर जताया मानों वह गोलू की सारी बातें समझ गया है,  पर अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। शायद उसे भी कल का दृश्य देखकर मामा से डर लगने लगा था। अब गोलू को समझ नहीं आ रहा था कि वह किससे मदद मांगे। सारे घर में एक झबरा और भूरी ही तो थे जो उसकी हर बात मानते थे, भूरी गले की घंटी बजाकर और झबरा अपनी दुम हिलाकर उसकी बादशाहत की तस्लीम किया करते थे। पर गोलू जान गया था कि इस विकट घडी में इन दोनों से मामा के विरुद्ध किसी भी प्रकार के सहयोग की आशा करना बेकार ही है। उसने सोच लिया कि अब जो भी करना है, सब उसे ही करना होगा। उसने चुपके से देखा अम्मा रसोईघर में रात का खाना बनाने में व्यस्त थी, दादी अपनी सुमिरनी लेकर राम नाम का जाप करने बैठ गई थी, दादा जी भूरी के पास थे और चाचा तो दोस्तों के पास पढ़ने गया था। पिताजी और मामा छत पर फ़ौज के किस्सों पर बातें कर रहे थे। गोलू चुपके से मामा के बैग से मोटी सुई निकाल लाया और आँगन में पड़े गोबर के ढेर में फेंकने जा ही रहा था कि उसकी नज़र भूरी पर पड़ी और उसके मन में एक विचार आया कि अगर आज भी भूरी को वैसा ही दर्द उठा तो मामा उसे कैसे ठीक करेंगे ? यह सोचकर वह पलटा पर देखा कि पिताजी और मामा सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे। वह जल्दी से दादा जी के पास गया और मोटी सुई उनके हाथों में देते हुए बोला “मैं बुरुनाथ थोड़े ही हूँ , मैं तो गुरुनाथ हूँ”।

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