मनुष्य की आँख

मूल भाषा : अर्मेनियन

लेखक : नार दोस

अनुवादक : गायाने आग़ामालयान

एक बार पुराने ज़माने में एक ग़रीब आदमी को कोई चीज़ मिली। चीज़ नरम, गोल और छोटे-से अखरोट के बराबर थी। आदमी आश्चर्यचकित हो गया। उसे मालूम नहीं था कि यह क्या है। ऐसी चीज़ आदमी ने कभी किसी के पास  नहीं देखी थी। वह उस चीज़ को घर लाया और अपनी बीवी को दिखाया। बीवी भी आश्चर्यचकित हो गयी। वह भी जीवन में ऐसी चीज़ पहली बार देख रही थी। फिर आदमी ने वह चीज़ पड़ोसियों को, दोस्तों को, रिश्तेदारों को, अजनबियों को, हर मिलनेवालों को /चाहे पुरुष हो या स्त्री, बूढ़ा हो या बच्चा, बुद्धिमान हो या मुर्ख, दानिशमंद हो या नादान / दिखाई लेकिन कोई भी नहीं बता सका कि सचमुच वह चीज़ क्या है। किसी ने कहा था कि पत्थर  है।

-लेकिन नरम क्यों है?

-फल है।

-ऐसा फल तुमने कौन-सा पेड़ पर देखा है?

-हीरा है, चमकता है।

-लेकिन नरम क्यों है?

और ऐसे हर एक आदमी अपना मत बताता था। कुछ ही समय बाद सारे शहर में ख़बर फैली कि फलाँ ग़रीब आदमी के पास कोई अजीब चीज़ है और किसी को नहीं पता वास्तव में वह क्या है। ख़बर सुनते ही जिज्ञासु लोग अजीब-सी चीज़ देखने के लिए उस आदमी के घर पहुँचे।सब हैरान होते थे, सिर फोड़ते थे लेकिन कोई भी कुछ नहीं कह सकता था। आख़िर यह ख़बर महाराज को मिली। वह हैरान हो गए जब सुना कि वह क्या अजीब चीज़ है किसी को पता नहीं। उनकी उत्सुकता बढ़ गयी और उन्होंने आदेश दिया उस आदमी को अजीब चीज़ के साथ राज महल में हाज़िर किया जाए।

-हम ने सुना हैं कि तुझको एक अजीब-सी चीज़ मिली है। दिखाओ!- महाराज ने कहा। आदमी ने फ़ौरन जेब से चीज़ निकाली और महाराज को दी।

महाराज ने ध्यान से देखा, हथेली में उल्टा -पलटा, आश्चर्यचकित हो गया, सोच में पड़ा, सिर फोड़ा लेकिन उसकी समझ में कुछ नहीं आया।

-यह क्या है?- महाराज बड़बड़ाता था,- न पत्थर है, न फल, क्या कहूँ! ख़ैर, सचमुच अजीब-सी चीज़ है।      

फिर सोचा: ”मेरे लिए गर्व की बात होगी अगर मैं यह चीज़ अपने ख़ज़ाने में रखूँ।”

-मुझको बेचोगे?- आदमी से पूछा।

-महाराज की जय हो! क्यों नहीं!- आदमी ने कहा।

-कितने में?

 -महाराज की जय हो! जैसी आपकी मरज़ी है। 

-नहीं, बेचनेवाला तुम हो,- महाराज ने कहा,- तुम ग़रीब हो, मुँह माँगे पैसे दे दूँगा। आदमी सोच में पड़ गया। उस चीज़ की क़ीमत वह नहीं जानता था। थोड़ी देर बाद जवाब दिया।

– महाराजकी जय हो! चूँकि न मैं जानता हूँ यह क्या है, न आप, न कोई भी, मैं ऐसी क़ीमत लगाऊँगा कि न आप असंतुष्ट होंगे न मैं।

-बताओ!- मोहताज ने कहा।

-मुझे इसके वज़न का सोना दीजिए !

महाराज हैरान हो गए।   

-बस, इतना?- हँसते हुए कहा,- और माँगो, और!

-नहीं, महाराज, ज़्यादा नहीं माँगूँगा। मेरे लिए इतना काफ़ी है।

-ठीक है,- महाराज ने कहा,- चलो, ख़ज़ानची के पास चलें। तुलवाऊँगा और दूँगा। 

महाराज और ग़रीब आदमी ख़ज़ाने में पहुँचे। महाराज ने वह चीज़ ख़ज़ानची को सौंपी और तौलने की आज्ञा दी। ख़जांची फ़ौरन सबसे छोटा तराज़ू ले लाया। एक पल्ले पर वह चीज़ रखी, दूसरे पर कुछ सोना, लेकिन पल्ले नहीं हिले। ख़जांची ने और सोना डाला – तराज़ू के पल्ले फिर भी स्थिर थे।  

और ज़्यादा सोने डाला… पल्ला भरा हुआ था, लेकिन स्थिर था। वह पल्ला जिस पर अजीब चीज़ थी, सोने से भरे हुए पल्ले से नीचे था। महाराज, ख़ज़ानची और ग़रीब आदमी हैरान हुए खड़े थे। महाराज ने बड़े तराज़ू पर तौलने की आज्ञा दी। ख़ज़ानची बड़ा तराज़ू लाया और फिर  तौलना शुरू किया। और सब आश्चर्यचकित हुए थे जब पल्ले फिर भी स्थिर थे।

महाराज ने सबसे बड़े तराज़ू पर तौलने की आज्ञा दी। ख़ज़ानची ने इस तराज़ू के पल्ले पर ख़ज़ाने का सारा धन रख लिया लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। महाराज और ख़ज़ानची ने दंग रह गए। सब सोचते थे: ”यह चमतकार है या हम सपना देख रहे हैं?” हलकी सी चीज़ सारे ख़ज़ाने की दौलत से भारी थी।

महाराज क्रोध में आए और डर और आश्चर्य से काँपते हुए ग़रीब आदमी को कहा- बदमाश, हरामख़ोर… मुझे धोखा देना चाहते हो? लूटना चाहते हो? जादूगर हो तुम? हाँ? तुम्हारा सिर कटवाऊँगा! बताओ, कौन हो तुम और यह क्या चीज़ है?  

आदमी रो-रोकर महाराज के पाँव पड़ा।  महाराज की जय हो!- उनके पाँव चूमते हुए आदमी ने कहा,- मैं एक लाचार, ग़रीब आदमी हूँ… मुझे पता नहीं यह क्या है। क्षमा कीजिए!

-अगर तुझे पता नहीं तुमने क्यों सोना माँगा?

-भगवान् साक्षी है मुझे मालूम नहीं था… मैंने बस यों ही कहा… क़सम खाता हूँ मैं झूठ नहीं बोलता हूँ। मेरे बाल- बच्चे हैं… दया कीजिए।

महाराज ने उस बेचारे पर तरस खाया और उनको जीवन दान दिया।    

”लेकिन मुझे अवश्य जानना होगा यह क्या है!”- उन्होंने फ़ैसला किया और फ़ौरन आदेश दिया कि अपने राज्य की सर्व विद्वानों को एकत्रित होना चाहिए।

जब सब विद्वान् राज महल में पधारे महाराज ने यह अजीब चीज़ उनको दिखाई और सारी कहानी सुनाई। उन्होंने तुरंत जवाब देने का आदेश दिया और मृत्युदंड से धमकाया। विद्वानों ने भयभीत होकर वह अजीब चीज़ देखी और जाँच करनी शुरू की। बाद में महाराज से सोचने की मौहलत माँग ली। महाराज ने दो घंटे की मौहलत दी।  उन्होंने बहुत कोशिश की, सिर फोड़े, बहुत सारी किताबें पलटी लेकिन सब कुछ व्यर्थ था। बेचारों ने निराश होकर जिंदगी को अलविदा कहा।

-क्या जवाब मिल गया?- दो घंटे बाद महाराज ने पूछा।

-जी नहीं,- दबी आवाज़ से विद्वानों ने जवाब दिया।

-सब को ले जाओ और मारो,- महाराज ने जल्लादों को आदेश दिया,- ये दो कौड़ी के विद्वान लोग मुझको नहीं चाहिए। जल्लादों ने आज्ञा का पालन किया। 

लेकिन महाराज ज़रूर जानना चाहता था कि वह चीज़ क्या है जिसकी वजाह से इतने लोगों की जान गई। उत्सुकता और बेसबरी ने उसका चैन छीन लिया। उन्होंने पूछा कि राज्य में एक ही विद्वान् बच गया है? जवाब मिला कि नहीं।

-जाइए, फिर ढूँढ़िये और हमारे पास लाइए! अगर नहीं है बना लीजिए! यह हमारी इच्छा  है, आज्ञा है! जाइए!

सैनिकों ने कोने-कोने में बहुत तलाश की और आख़िर एक पक्के बालोंवाला वृद्ध मिला जो लिखा-पढ़ा नहीं था लेकिन अनुभवी और बुद्धिमान था। वे ख़ुश हो गए और उनको महाराज के पास लाए।        

महाराज  ने उसको वह चीज़ दी और बताया कि राज्य के सारे विद्वान् नहीं बता सके कि यह क्या है जो ख़ज़ाने के तमाम धन से भारी है। और आदेश दिया ज़रूर कुछ बताना, नहीं तो उनका नसीब भी वही होगा। वृद्ध ने एक बार ही चीज़ पर नज़र डाली और कहा:

-महाराज की जय हो! आप कहते हैं यह ख़ज़ाने के तमाम धन से भारी है?

-हाँ,- महाराज ने कहा।

-तराज़ू  लाने की आज्ञा दीजिए!

महाराज ने  सबसे बड़ा तराज़ू लाने की आज्ञा दी।

-ऐसे बड़े तराज़ू की क्या ज़रूरत है?- वृद्ध ने कहा,-  सबसे छोटा तराज़ू लाइए!

 -लेकिन इनसे कैसे तौलोगे?- महाराज ने आश्चर्य से पूछा।

-मैं तौलूँगा। लेकिन सोने से नहीं। यह नामुमकिन है।

-तो?

-मिट्टी से! एक ही मुट्ठी मिट्टी लेने की आज्ञा दीजिए!

महाराज ने हैरान होकर आज्ञा दी। जब सब कुछ लाए, वृद्ध ने तराज़ू के एक पल्ले पर वह चीज़ रखा और दूसरे पर थोड़ी सी मिट्टी डाली। दोनों पल्ले बराबर हो गए। वृद्ध ने बाक़ी मिट्टी ज़मीन पर डाली और महाराज के आँखों में तीव्र नज़र डाली। महाराज आश्चर्य से चुपचाप देख रहे थे।

-यह क्या है, हे विद्वान् पुरुष?- उन्होंने पूछा।

-यह मनुष्य की आँख है, महाराज!- वृद्ध ने जवाब दिया,- आप कैसे आँख सोने से तौलना चाहते थे जब मिट्टी के सिवा आँख का लालच कोई भी मिटा नहीं सकता है।     

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