नाम में का रखा है!
-खमेन्द्रा कमल कुमार
चलो सुनाई तुम लोग के एक कहानी। तो सुनो! सुन्दर दिन रहा, चटक घाम निकला और मंद मंद पुरवैया चलत रहा। जब संझा भए, तो अचानक से अंधियार होई गए। हल्ला मच गए, “सूरज में गरन लग गय है, भागो घर के भित्तर।” भग-दौड़ के बाद सब सनामन होई गये। ना कोई चिड़िया के चिड़चिड़ावट न मुर्गिअन के कुरकुरावट। गाँव के सब कुत्ता तो गन्ना के खेत में लुक गइन।
“दुनिया लैय होई जई का,” अजिया फुस से बोलिस। अंधियार में अजिया, अजवा, अम्मा, बप्पा, महेन भईया, सतेन भईया, और हमार नानी गुड़मियाक के बेलो में बैठीन। अजिया के बात सुन के बप्पा के आँखी हेडलाइट इस्टाइल बर गए। देखे में तो लम्बा चौड़ा रहा, लेकिन डरपोक नंबर वन। अगर रात में बिल्ली मियांउ कर दे तो उसके होपजाब होइ जाये।
“ई सब बात नइ करो! कोई बत्ती बारो, हममें तो कुछ दिखाए नइ,” बप्पा महेन भईया के इशारा करिस। जइसे महेन भईया उठा, वइसे बिजली तड़तड़ान। महेन भईया धब से वही बइठ गये। बप्पा के आँखी और बड़ा बड़ा निकल गये जइसे पूरा उल्लू। दुई तीन मिनट बाद बादल गरजिस- मानो कोई हाथी मूढ़ पे हुड्डा गमगमाइस- घड़ घड़ घड़ घड़ गरजे लगा लगातार दस मिनट तक।
गरजे के बंद भी बिजली तड़तड़ावे जइसे तासा। मानो आसमान में हुड्डा तासा बजे! सब के देहि में गिनगिनी चढ़े लगा और बप्पा के तो बात अलग। ऊ तो डर के मारे कांपे लगा। सतेन भईया हतेली से अपन कान तोप लिस। ई तड़तड़ घड़घड़ लगभग आधा घंटा तक चला। फिर अचानक से थम गए! एकदम से सांति छाए गए। थोड़ा देरी बाद पानी बरसे के सुरू भए। एक लहर आइसे मोटा मोटा बूंद जइसे अनार के दाना। बस का रहा- घमासान पानी बरसे के सुरू होए गए।
तनिक देर में छोटा मोटा नारा में पानी चल पड़ा। देखते देखते उराता नदी बढ़ीयाय गइस और खेत में पानी ओवर फ्लो कर दिस। ई सिलसिला तीन दिन तक चला। बिजली चमके, बादल गरजे, और पानी बरसे। अइसे लगे लगा रहा कि अजिया के बात राईट होई जाई। अजिया भी यही बात रटे, “देखा, हम बोलत रहा, टाइम आयेगे दुनिया लैय होइक। अब धरती मईया और पाप नइ सके लेवे, खलास- सब खलास होई जाइ।”
अजवा के तो अलग स्टोरी रहा। काटिस दुई खीरा और खोलिस फ्रिगेट रम। खीरा कुरकुरावे और मारे निप। बप्पा भी दुई तीन निप सड़काइस। अब जब दुनिया लैय होई जाई तो दारू रख के का करिओ, पीओ सालेके।
रम पिये के बाद थोड़ा तनमना, बोले, “ई सब मामला गाँव के औरतन के कारण भए। कौन काम रहा इन्दर भगवान के इतना पूजा करे के। आओ ना ताओ देखिन, नंग- धरंग खूब नाचिन।” इतना बोल के खिस से हसिस। इतने में अजवा पुछिस, “कहां से देखत रहा औरतन के नाच। तुम तो काम पे गए रहा ऊ रोज ना?” बप्पा खिसियाय के बोलिस, “ताजी, हम तो तुहार पीछे खड़ा रहा बिसुन कक्का के खेत के मेड़ पे।” इससे पहिले और पोल खुले दोनों बाप बेटा बात काट दीन।
तीन दिन तक लगातार पानी बरसा। नदी और जमीन एक होई गईन। गाँव मा रकम रकम बात चले लगा। रुबेन बोले, “एक बड़का बौट बनाइक पड़ी- नोआस आर्क।” उसुफ़ बोले, “ऊपर वाला के बोलावा है, पाप और पुन के हिसाब सब के भरे के पड़ी।” और घर पे अजिया एक्के बात रटे, “दुनिया लैय होई जाई, ई जुवाड़ भाटा है।” गांव में एक डर फइल गए। डर के मारे कोई ईसा के नाम, कोई अल्ला के नाम, और कोई राम के नाम जपे लगा।
ई मुसीबत के समय हमार जनम भए। हममे पईदा करे में अम्मा बहुत मुसीबत काटिस। जब क्लिनिक के लिये अस्पताल गइस तब डॉक्टर बोले रहा, “ट्विन्स बईबी रही।” अम्मा के पेट भी खूब बड़ा होई गए। ऊ बीच बीच में खराब से बीमार भी पड़ जाए। ई सब सुन के हमार नानी दुई महीना पहिले आए गई अम्मा के सेवा करे। हमार नानी चार गांव के दाई माँ रही। अम्मा के पूरा देख भाल अब उसके जिम्मेवारी रहा।
एक तरफ मुसलाधार पानी बरसे और एक तरफ अम्मा हममे जनम दीस। करीब बारह बजे रात जइसे श्री किसन के जनम भए रहा। श्री किसन जी काल कोटरी में जनम लिस और हम एक फूस के बेलो में। इसके अलावा और कोई गुण किसन जी के रकम हममें नहीं रहा।
जइसे डॉक्टर बताए दिस रहा, “तकलीफ रही, ट्विन्स है।” लेकिन डॉक्टर के ट्विन्स वाला बात गलत निकल गए। खली हम जनम लिया। हां! तकलीफ वाला बात सही रहा। पीरा के कारण अम्मा हममे जनम दे के बाद बेहोस होई गई। नानी वइट् करते करते हार गइस। फिर अइलान करिस की खली एक लड़का पइदा भए है। नानी सबसे किरकिराए के बोलिस, “ट्विन्स प्विन्स कुछ नइ, ई साले नौसिक्या डॉक्टर कुछ नइ जाने। हम तो पेट छुई के बताए दिया रहा पैलेहे से! लेकिन बुड़िया दाई के बात कौन सुनी।”
तो अइसे रहा हमार आगमन। दस तारीक, फरवरी, 1975। जब अम्मा के होस आईस, तब नानी हममे एक कपड़ा में लपेट के उसके हाथ में दीस। ममता आँखी से छलक गए, रोए लगी अम्मा। पहिले तो अच्छा से हममे सूंगिस। तब तलक नानी हममे सफा कर के बईबी पोडर पोत दिस रहा। फिर अम्मा चूमिस दुलार वाला गुलक्का में। और फिर हमार नाक, मुँह, कान सब छुईस। जब बावा हाथ के अंगूठा पकड़िस तब कुछ अटपट लगा। अच्छा से देखिस हाथ बत्ती जोर करके देखिस की बब्बा के तो दुई अंगूठा है। नानी मुँह अईट के बोलिस, “ई ट्विन्स नइ छंगू है। एकर नाम हम छंगू रख दिया।” इतना बात सुनिस कि अम्मा फिर बेहोस होई गइस।
सबेरे अम्मा के होस आइस। तब तलक पानी बरसे के बंद होई गए और चटक घाम निकलगे रहा। हम अम्मा के बगल में कपड़ा में लपटान सुता रहा। जब भूख लगा तब हम आँखी खोला। अम्मा दूध पियाइस और खूब दुलार करिस। फिर सोचे लगी हमार नाम के बारे में। वइसे तो अममा हमार नाम धर्मेन्द्रा रखे मांगित रही। हमार जनम से चार महीना पहिले ऊ एक फिलम देखिस रहा- ‘शोले’। पहिला बार गई रही सकिस घर। ऊ फिलम में दुई मईन बॉय रहिन। एक रहा धर्मेन्द्रा और एकउना अमिताभ बच्चन। अच्छा तो दोनों रहिन, लेकिन जब अमिताभ ठाकुर के विधवा पतो के लाइन मारे के सुरू करिस, तब अम्मा के माथा ठनका। इतना गुस्सा लगा के महेन भईया के माउथ ऑर्गन उठाई के झटक दिस, “खबरदार अगर लौट के बाजा बजावा, एक उल्टा झापड़ लगी। महेन भईया हकबकाय गइस लेकिन कुछ नइ बोलिस। लेकिन धर्मेन्द्रा के बात अलग रहा। बहुत मजाकिया और दारू पी के मचान पे चढ़ गए, बोले, “सुसाइड, सुसाइड।” अम्मा के सुसाइड के मतलब तो नइ समझ आइस लेकिन मजा बहुत पकड़ा। हँसत हँसत लोट-पोत होइ गइ। वहीं टाइम से दिमाग में बइठार लिस कि अबकी लड़का रही तो उकर नाम रही धर्मेन्द्रा। लकिन का करिओ, प्रभू के लिखा कौन मिटाई। नानी हमार नाम रख दिस- छंगू। छे उन्ग्री वाला!
अब यहाँ से हमार जिन्दगी के सफ़र चला। हम रहा मोटा, गोला, और रहा बड़ा-बड़ा गुलक्का वाला। सब कोई खूब खेलावे। ई हाथ से ऊ हाथ। कभी फुआ, कभी काकी, कभी अजिया और कभी अजवा के गोदी में हम खेली। महेन और सतेन भईया भी हममे खूब दुलार करे। अम्मा नरम नरम छंगू उन्ग्री के खूब दुलार करे। महेन भईया छंगू उन्ग्री के दुलार से नोचे और बोले, “ई तो जेली बीन है।”
अब हम छे दिन के होई गवा। छे दिन माने- छट्टी के दिन आइगे। सबेरे से घर में चहल पहल मचा। भण्डारा के तइयारी सुरू। पूरी, आलू मटर, और टमाटर चटनी बना। अजवा, अजिया और बप्पा भी काम में जुट पड़ीन। इधर नानी पूरा टाइम अम्मा के सेवा में लगी रही। महेन और सतेन भईया हममे दिन भर देखिन। हम तो उलोग के लिए एक खिलउना बन गवा। थोड़ा देरी गुदगुदी लगावे फिर गुणगुणिया बजावे! हम खिलखिलाय के हँसी। देखत देखत दिन बीत गए।
जब संझा भए तब अम्मा लगी हममे सपरावे। फुआ हमार सुख लाल के दुकान से एक नीला रंग के बईबी सूट खरीदिस रहा। वही अम्मा पहिनायिस। पोडर पोतिस और बईबी क्रीम खूब कस के लगाए दिस। यही सब करते करते अचानक से जोर से चिल्लायिस, “ मईया! देखो इसके उन्ग्री टुट गइस।” पूरा घर भर के अदमी जमा होई गइन। आन पड़ोसी भी दउड़ के आइन। पारी-पारा देखिन-उन्ग्री गायब!
अम्मा तो लगी रोए, जइसे माता कौशल्या विलाप करिस रहा भगवान राम के बनवास के समय। लेकिन यहाँ कोई बनवास नइ, एक उन्ग्री गायब रहा। रोअत रोअत बोले, “हमार लल्ला के उन्ग्री गायब होई गए, अब का होई?” नानी सुरू करिस खोजे के। खटिया के निच्चे, ड्रवर के पिच्छे, टिबल के उप्पर, सब जगह खोज दिस। फुआ, काकी, और आन पोड़ोसी के औरतन भी देखिन। कही नइ मिला। महेन भईया वही खड़ा रहा हाथ लपेटे। अम्मा उकर हाथ पकड़ के अपन पास घिचिस। “हाथ लपेटे खड़ा है, हाथ लपेटे, बताओ कहां है उन्ग्री? कोंची करा?” इतना बोल के दीस दुई झापड़। “सतेन्वा कहां है?” अम्मा पूछिस। इतना बात सुन के सतेन भईया गन्ना में गायब। इधर उन्ग्री गायब उधर सतेन भईया गायब। बहुत छान बीन के बाद सब थक के बइठ गईन मुँह लटकाए के। आज छट्टी है और अइसे होई गए- सब सोचे लगिन। बड़ा अपसगुन होई गए।
अजवा सबेरे से चुप्पे एक दुई निप रम मारत रहा। बप्पा भी पिये रहा खुसियाली में। आइन दोनों अदमी घर में। अजवा बोले, “अरे जनाते नइ एकर हाथ में से जेली बीन गायब है। ई तो अब छंगू नइ है। बप्पा कईला मार दिस अजवा के बात सुन के। ऊ बोले “जब लल्ला नइ रोए, तब तुम लोग काहे मुँह लटकाए हो?” घूम के अजवा से बोलिस, “कइसे बात, दारू बचा की नइ, चलाय देओ!”
रात में छट्टी के कारवाई सुरू भए। आन पड़ोसी और दूर निकट के परिवार झाप में बटुरिन। जब कोई हमार पास आवे तो पूछे, “लल्ला के का नाम है?” अम्मा जवाब में बोले, “अभी तक तो छंगू रहा, अब नवा नाम सोचे के पड़ी।” और इसके बाद नानी सुरू करे बतावे के कि कहां कहां ऊ उन्ग्री खोजिस। ई दउरान अम्मा मनहिमन में बहुत खुसी होइस। सोच लिस, लल्ला के नाम हम अब धर्मेन्द्रा रखेगा। आपन घर जान दो सबके, अइसे मन में ठान लिस।
छट्टी के एक दिन बाद नानी से राहिस नइ पड़ा। उठाईस झाड़ू और सुरू करिस घर के सफाई। आखिर में खटिया के कोना में मिला हमार छंगू उन्ग्री, अपन देहि से दूर। घर के सब प्राणी इकट्टा होए गईन। नानी के हथेली पे हमर बेजान उन्ग्री रहा। सब के आँखी वही के एक टक ताके। महेन भईया घुस के देखे मांगत रहा। अजिया फिर उसके पकड़ के कूटिस, “यही उखाड़िस है लल्ला के उन्ग्री।” इतना सुने के बाद में सतेन भईया फिर गायब। लेकिन महेन भईया के दुई रोज़ से हमार कारण कुटापा पड़ा। कोई ओकर बारे में नई सोचिस।
सब के ध्यान अब नानी के उप्पर रहा। उठाइस हमार बेजान उन्ग्री और लेके गईस इमली पेड़ के निच्चे उसके मट्टी देवे- अंतिमसंस्कार कर दीस। वही बगल में हमार नारा भी तोपान रहा। उधर से लौटिस और अईलान करदिस, “ई मंगर के रोज पईदा भय, एकर नाम अब मंगरू है।” फिर का! अम्मा सुनिस और एक बार फिर बेहोस होई गई।
नानी के ई नामकरण संस्कार कोई के पसंद नइ आइस| एक दुसरे से गुरगुरावे लेकिन कोई के हिम्मत नइ भय सनक बुड़िया से कुछ बोलके| सब के नानी से फटट रहा| अजवा तो समधिन से दिल्लगी खली करे, लेकिन उससे बात में जीते नइ पाये कभी| यही रहा, सब कोई मन में सोच लीन रहा, जोन रोज नानी जाई, वही रोज लल्ला के नाम बदल दइये| और ऊ रोज भी आएगे| कही से सन्देस आइस की दाई वाला काम करे के है तंगनिकूला गाँव में, मोटा बाबू के पतोईया पेट से है| बस का रहा, नानी आपन झोरी झंडा उठाइस और निकल पड़ी| अइसे मानो घर में एक अलग रकम के खुसियाली छाय गए|
अजिया, अजवा, बप्पा, महेन और सतेन भईया दउड़ के हममे छेक लीन। अजवा सबरे सबरे दुई निप मारिस रहा। तन्मनाय के बोलिस, “लल्ला के नाम ना रही छंगू, ना रही मंगरू! कोई अच्छा नाम रखो इसके!” अजिया लगी सोचे। बप्पा भी थोड़ा कोसिस करिस। नाम के नाम सुनिस तो महेन भईया बोलिस, “एकर नाम अमिताभ रखो अम्मा।” इतना सुन के अम्मा के प्रेशा पूरा फोर फोर्टी चढ़ गए। घीचिस अपन पास महेनवा के और कनपटी के निच्चे बजाइस एक अच्छा से। महेन भईया वहा से गायब। अब अम्मा सोचिस की राईट टाइम है बोले के ओकर नाम ‘धर्मेन्द्रा’। लेकिन पहिले बप्पा एक सुझाव दीस, “काहे नइ कनवा पंडित से इसके पतरा खुलवाए लो, नाम है, अच्छा सोच समझ के मांगो रखो ना!” इतना सुन् के बाद पूरा मामला वही ठण्डा होई गए।
अब हमार पास कोई नाम नइ। कोई बोले “लल्ला”, कोई बोले “गुड्डू”, और कोई बोले “बोय्वा”। अम्म्मा मनहिमन बोले ‘धर्मेन्द्रा’ और जब कोई आस-पास नइ रहे तब महेन भईया बोले ‘अमिताभ बच्चन’। अलग अलग नाम से हमसे हुकारी भरवाए। हममे का, पेट भर दूध मिल जाए बस और का, चाहे कोई “लल्ला’ बोले या “गुड्डू”। लेकिन अइसन बात गाँव में फईलत देरी नइ लगे। बात चल पड़ा। छोटा संता के औरत तो तुम जानो- पूरा रेडियो फिजी, सुरू करिस तीन में तेरा जोड़े के, “जहां जाए वहां बतावे, “एक तो तीन टिकट महा बिकट, पहिले तो उन्ग्री गायब, अब लल्ला के नाम भी नइ है। आगे पता नइ का का होई!”
कुछ दिन अदमी हम्मा बात करीन और फिर गाँव में कोई और स्टोरी चल पड़ा। सब हमार बारे में भूल गईन और करिया चांदी के घरे चोर आइस रहा ऊ बात चल पड़ा। तमासा के बात ई रहा कि चोर रात में करिया चांदी के देखिस नइ की ऊ भी अंगना में खड़ा रहा नंगा पीठी। आए के करिया चांदी के धक्का मार दीस। तब का, करिया चांदी धरिस एक लात और चोर ढमलाइके खाले नारा में गिर गए। हाँ! ई बात तो है, हम लोग के गाँव में स्टोरी के कोई कमी नइ रहा।
और यही बात भय। सबेरे से घर में चहल पहल रहा। हम सोचा फिर छट्टी मनाइये का? लेकिन नइ, आज हम लोग के पड़ोसी ऑस्ट्रेलिया से घूम के लौटिस रहा। उसके नाम- स्किती लम। एक्के चईनी औरत रही हम लोग के गाँव में और उप्पार से सेकंड्री स्कूल इंग्लिश टीचा। बहुत मान सम्मान रहा उसके। कोलुम्बर के बाद में इससे अदमी डेरात रहीन। कुछ बोल दे अगर इंग्लिश में तो आधा गाँव मुंह बंद कर लय और बचा कुचा, “यस मडम, यस मडम” करे। हमार अजवा के बहुत मानित रही, पता नइ काहे? अजवा भी उसके अपन लड़की के रकम मानत रहा। स्किती अइस और सीधा अम्मा के पास गयी। हममे देख के ललियाय गयी। गोदी में हममे उठाए के अम्मा से पूछिस, “इसके नाम?”
अम्मा थोड़ा बहुत इंग्लिश समझत रही। जान गइस कि नाम पूछे है। एक सास में बोलिस, “दिस इस आ बॉय। दिस बॉय नो नेम। खानवा पंडित लूकिंग सन, लूकिंग मून कम होम, टेल आ गुड नेम।” इतना इंग्लिश बात अम्मा स्कूल में कभी नइ करिस रहा। अब सोचो तुम लोग कितना खुस्सी भय होई ना! खली अम्मा नइ, सब के मुंह खुल्ला के खुल्ला रहे गए। अम्मा के इंग्लिश बात सुन के बप्पा भी जोशियान, “वाइफ स्पीकिंग ब्रोकन इंग्लिश लिट्टल लिट्टल।”
स्किती बेचारी समझ गयी कि हमार नाम अभी नइ रखिन। अजवा के तरफ देख के बोलिस, “इसके नाम डेनी!” ई नाम सुन के सबके बहुत अच्छा लगा- इंग्लिश नाम है, अच्छा होई! अम्मा खिलखिलाय के बोलिस, “लिट्टल बॉय नेम डेनी।” बस का रहा, ई बात भी गाँव में आगी रकम फ़इलगे। तनिक देर में छोटा संता के औरत के कान में बात पहुँच गए। बस का रहा। बोले, “अब का राम प्यारे के पोता के नाम है डेनी, एक चईनी औरत, हिन्दुस्तानी लड़का के इंग्लिश नाम धर दिस- डेनी!”
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