ऋण
दिव्य शक्तियों की बात पुरानी
शास्त्रों में मिलती कई कहानी
वेदों का अनंत ज्ञान
प्रकृति का करता गुणगान
प्राचीन काल से
गहरी आस्था हमारी
जिससे है सृष्टि
जन जवीन सारी
पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि आकाश
पंच महाभूतों के तत्व परोपकारी
जिनका हमपर है उपकार भारी
धरती, जल, गौ हैं माता हमारी
वायु, सूर्य, चंद्रमा हैं देवता हमारे
प्रातः सूर्य नमस्कार
तुलसी जल देकर
करते दिन की शुरूआत
वायु है प्राणदायिनी
वनस्पति है रसों से युक्त
धरती की गोद में
मानव चिंताओं से मुक्त
सच ही,
प्रकृति है बड़ी उपकारी
पेड़-पौधे धरा के आभूषण प्यारे
कभी फूलों में हँसते
कभी पंछियों में चहकते
हरियाली बिखेरते
अमिट है इनकी छाप
दैवीय उर्जा के ये अवतार।
आखिर!
पड़े-पौधे, जीव-जंतु, नदी, पहाड़
सभी है अंश हमारे
हिलमिल जीवन जीते
हम एक दूजे के सहारे।
हे मानव!
भूलना मत
हम ऋणी है इनके
देव ऋण का है हमपर कर्ज
जिसे उतारना है हमारा फर्ज।
आज विनाश के कगार में खड़े
प्रकृति के अमूल्य धरोवर
जल जंगल जमीन
वायु प्रदूषण नदी
खतरे की घंटी बजा रहे
त्राहि त्राहि मचा रहे
हे मानव,
विकास के अंधेपन में
इस सुन्दर धरा को
क्यों खो रहे
अपने कर्तव्य से
क्यों मुँह मोड़ रहे।।
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– सुभाषिनी लता कुमार