तुम्हारा साथ

तुम्हारा हाथ
जब थाम लेता है
हाथ मेरा
बेचैन मन को
मिलता है
एक मजबूत भरोसा
जैसे चटकती धूप में
मिल गई हो छाव कहीं।

शाम की चाय हो
जब साथ तेरे
राहत पा जाती है
दिनभर की थकावट
से तने कंधे मेरे

तुम्हारा साथ है
बगीचे में खिले
गेंदे के फूल जैसा
जो अपनी छोटी-छोटी पंखुड़ियों
के बना है अधूरा
तुम्हारा हाथ
जब थाम लेता है
हाथ मेरा
पिघला देती है
चिंताएं मोम जैसी
मिटा देती है परेशानियाँ
अपनी चटपटी बातों से
दे जाता है सुकून
मचलते दिल को
जैसे ठंडी हवा का झोंका
छूकर गुज़रा हो करीब से मेरे ।
खुशनसीब हूँ मैं
जीवन में तुम्हारा साथ है
जैसे उदासी में मधुर संगीत
रंग भरता है वैसे।

*****

सुभाषिनी लता कुमार

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