देवनागरी लिपि

देव नागरी लिपि अनोखी
भाव अर्थ की नहीं है दूरी

अ अमृत की वर्षा हो सब पर
सभी सुखी हों जिस से हर पल।

आ आंगन की तुलसी है न्यारी
मानव जीवन की हितकारी

इ इच्छा सब की सदा सुखारी
जीवन की महके हर क्यारी

ई ईर्ष्या द्वेष नहीं हो
मानवता से प्यार हमें हो।

उ उपमा की छटा निराली
अलंकार की छवि निराली

ऊ ऊंचा हो आदर्श हमारा
भारत लगता हम को प्यारा

ऋ ऋषियों का हो मान सदा ही
मानवता की यही निशानी

ए एकता रहे सदा जन गण में
विश्व भातृभाव हो मन में।

ऐ ऐसा हो आदर्श हमारा
मानवता को मिले सहारा।

ओ ॐ ध्वनि सुंदर सुखकारी
सदा मनुज की है हितकारी।

औ और न हो कुछ दुनिया दारी
दुनिया हो सुंदर सुखकारी .

अं अंग अंग होवें बलशाली
दुष्ट दनुज के हित बलशाली

विसर्ग सदा है विस्मयकारी
जग कितना है विस्मयकारी।

ये है देवनागरी के स्वर और अब व्यंजनों का विषय

क काम निरंतर शुद्ध रहें सब
मानवता के हित में हों सब

ख खं होता आकाश का चिंतन
चिंतनशील मनुज का जीवन

ग गम्य सदा सत के हित अपना
सदाचारमय जीवन अपना

घ घर हो सुंदर आश्रम जैसा
सुंदर सुघड़ गृह हो अपना।

अनुसार है बहुआयामी
कितने भेद सदा अनुगामी

च चंद्र ज्योत्स्ना शीतल होती
कामनियों में अग्नि बोती

छ छाँव सदा सुखके सम होती
माँ की ममता सा सुख बोती

ज जगत ईश की ही माया है
जिस का पार नहीं पाया है।

झ झंझट कोई समझ न पाया
ईश्वर क्या २ खेल दिखाया

फिर अनुस्वार है विस्मय कारी

ट टंटा कुछ ठीक नहीं है
प्रेम परस्पर रीत यही है

ठ ठुमरी की ताल सुहानी
सदा सुनी जाती यह वाणी

ड डमरू की है ध्वनि निराली
जिस केसूत्र दक्षणी वाणी

ढ़ ढम २ बाजें ढोल सुहाने
लगते मह हरसाने वाले

फिर अनुस्वार है विस्मयकारी

त तुम ही ईश्वर जगत नियंता
नाम तेरा है हरि अनन्ता

थ थाम मात की अंगुली हम ने
था पहला तब कदम बढ़ाया

द दान धर्म का अंग बताया
दान किया और पुण्य कमाया

ध धर्म का पालन रहे ज़रूरी
धर्म से इच्छा हो सब पूरी

न नहीं कोई दुष्काम करें हम
ईश्वर चिंतन सदा करें हम

प परम् पिता है जगत नियंता
जिस की है ब्रह्माण्ड में सत्ता

फ फल की इच्छा नहीं करें हम
सदा करें निष्काम कर्म हम

ब बम बम हैं महा देव जी
जग पर कृपा रहे ज़रूरी

भ भक्ति सदा दें ईश हमे बस
इस से सुंदर नहीं कोई वर

म अनुस्वार ध्वनि है सुंदर
मैं का अहंकार है निष्फल

य यहीं स्वर्ग है यही नर्क है
कर्म का सब मिलता फल है।

र रचना प्रभु की है यह सुंदर
हे प्रभु तेरी कृपा अनुपम

ल लीला न्यारी तेरी प्रभुवर
कोई समझ पाया न प्रभुवर

व वाणी हमारी हो बस निर्मल
सदा गाये बस तेरे ही गुण

श शांति सदा सब ओर प्रभु हो
मावन मन को शांत करो प्रभो

ष षडानन सदा तुम्हारा वंदन
कृपा तुम्हारी हो हम पर

स सुख जिस से सब ओर प्रभु हो
सर्व हृदय हरसाने वाले

ह है दुनिया भी चीज निराली
जिसे समझ खीर निराली

क्ष क्षत्र प्रभु तेरा हो सुखकर
मानव जाती हो सुखकारी

त्राहि माम प्रभु तेरा वंदन
सदा ईश का ही हो चिंतन

ज्ञ ग्यानी जन ने बात बता दी
ईश्वर तेरी कृपा है प्यारी

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-मधु खन्ना

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