निकट
निकट जिस को निकट माना
निकट, विकट हो आ खड़ा है।
विकट हो सब रीत डाला
जीवन ऐसे बीत डाला।
निकट होने की समस्या
कर रही केवल तपस्या।
निकट से कुछ मिल ना पाया
जटिल हो जीवन गवाया।
अब प्रभु अभुदय करो तुम
शांत मन रस से भरो तुम।
प्रेम का कुछ गीत गायें
तेरी रचना में मुस्कुरायें।
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-मधु खन्ना