रिश्ते

रिश्ते बनते नहीं; होते हैं
धागे में मोती से पिरोतै हैं
कुछ बनाये जाते हैं
कुछ बस दूर सोते हैं
कुछ बस ना भी कहो
कहीं अचानक खोते हैं

रिश्ते सहेजने की ज़रूरत नहीं
वो मेरे पास महफ़ूज़ होते हैं
जो नज़दीक हैं वो जाते नहीं
जो दूर हैं वो पास आते नहीं

रिश्ते बनते नहीं बस होते हैं
चमेंली की ख़ुशबू भी दे जाते हैं
रजनीगंधा सा मुसकाते हैं
गुलाब के काँटों की चुभन भी पाते हैं

कभी चंदन की महक बाटें हैं
रिश्ते हर रंग में ढल जातें हैं
गेहरे बदरंग चेहरे भी नज़र आते हैं
रिश्तों के बड़े अज़ीब मंज़र हैं
किसी के हाथ में फूल तो
किसी के हाथ में ख़ंजर हैं।

मैंनै गिरेबान में झांका तो
मरा रिश्ता खोदा।
मुफ़लिसी, अमीरी, जलन, कुर्सी, ओहदा।
इसी में लिपटा पड़ा था वो बेजान पौधा।

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-मधु खन्ना

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