थाईलैंड के महान कवि सुन्दरभू और अनूदित कविता

“सुन्दरभू” थाईलैंड के सबसे महान कवियों में से एक हैं। उनका जीवनकाल  सन् 1786 से 1855 तक रहा था। उस समय थाईलैंड की शासन व्यवस्था राजतंत्र की व्यवस्था थी। सुन्दरभू मान्नीय महामहिम राजा फ्रफुदलेदला नभालय यानी द्वितीय रामराजा के सरकार में दरबारी कवि थे। वे फ्रसुन्दरवोहार की उपाधि से भी जाने जाते थे। उनके काव्य कला पक्ष और भाव पक्ष दोनों में प्रसिद्ध हैं। उन्होंने छंदबद्ध काव्य के रूप में यात्रा वृतांत की 12 रचनाएँ रचीं। ये 12 रचनाएँ अनमोल हैं क्योंकि थाईलैंड के तत्कालीन समाज, संस्कृति और इतिहास आदि के चित्रण का विस्तृत रूप में वर्णन किया जाता है। यात्रा वृतांत के अतिरिक्त सुन्दरभू ने प्रबंध काव्य, उपदेशात्मक कविताएँ, नाटक आदि लिखे। उनके “फ्राअभयमणी” नामक प्रबंध काव्य को सबसे अधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई। फ्राअभयमणी की कथा  फ़िल्म, कार्टू और एनिमेशन भी बन गई थी। आज भी स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों में उनकी कई रचनाएँ सिखायी जाती हैं। विश्वविद्यालयों में उनके जीवन और रचनाओं के बारे में तमाम शोध कार्य किए गये थे। उनका जन्मदिवस 26 जून प्रतिवर्ष “सुन्दरभू दिवस” के नाम से मनाया जाता है। उनके स्मरण के लिए कविता-पाठ प्रतियोगिता, काव्य-लेखन  प्रतियोगिता, प्रदर्शन आदि मनाया जाता है। सन् 1986 में उनके 200 वीं जयंती के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा साहित्यिक क्षेत्र में विश्व के महत्वपूर्ण व्यक्ति की उपाधि सुन्दरभू को प्रदान की गयी थी।

प्रस्तुत कविता थाई से हिंदी अनूदित है जिसका मूल शीर्षक है “सवददि रक्सा”। सवददि स्वस्ति का और रक्सा रक्षा के संस्कृत से रूपांतरित रूप हैं।  सवददि रक्सा का अर्थ है स्वस्ति की रक्षा यानी शुभ-मंगल या अपनी कल्याण की रक्षा। सुन्दरभू ने यह रचना अपने शिष्य राजकुमार आभरण को उपदेशात्मक कविता के रूप में लिखी। थाईलैंड के विद्वानों का सहमत है कि इस कविता में भारतीय संस्कृति व मान्यताओं का प्रभाव अधिक दिखाई देता है।  कविता इस प्रकार है –

स्वस्ति की रक्षा

सुन्दर ने “स्वस्ति की रक्षा” की रचना रची अर्पित
राजकुमार को जो ईश्वर राजा के सुपुत्र पवित्र
पालि ग्रंथ से आधार लेकर रचित विस्तार
यशस्वान व्यक्ति के लिए यह जो अति योग्य है
इससे अक्षय लाभ अनंत प्राप्त किया जाता है
सूर्यवंश का परिवार निरंतर बढ़ेगा संतान
अधिकाधिक वृद्धि हो जाएगी कीर्तिमान
अपने शुभ-मंगल के लिए ध्यान रखें
पारंपरिक पद्धति लेकर अपनाएँ
कि अरुणोदय के समय उठकर
क्रोधित कुपित न होना किसी पर
पूर्वोन्मुख या दक्षिणोन्मुख करते हुए
अभिषिक्त जल बनाने में मंत्र जपते हुए
बौद्ध त्रिरत्न को लेना त्रिसरण
फिर मुख-माथा को धोना उस क्षण
और भलाई की बातें बात करनी प्रथम
वृद्धि होती है अपनी शक्ति श्रेष्ठतम
शुभ-मंगल बनाए रखने से
चेहरे पर दिन के सवेरे से
दोपहर शुभ-मंगल रखने का स्थान
उर पर स्थित इसलिए करना स्नान
छाती पर फिर सौरभ सुगंध लगाना
इससे हर्षित और आरोग्य हो जाना
संध्या रात्रि के समय अंधेरा कृष्णाकाश
शुभ-मंगल का स्थान अब है दोनों पाद
बाएँ-दाएँ पाँव धोकर स्वच्छ रखना
नारी को पाँव पर पाँव रखने न देना
भोजन करते समय पूर्वोन्मुख करने से
बढ़ जाती है दीर्घ अवस्था
भोजन करते समय दक्षिणोन्मुख करने से
बढ़ जाती है अपनी लोकप्रियता
भोजन करते समय पश्चिमोन्मुख करने से
दुख की समाप्ति तथा सम्मान की प्राप्ति मिलेगी
परंतु भोजन करते समय उत्तरोन्मुख करने से
हानिकारक है अल्पायु हो जाएगी

मलोत्सर्ग करते समय नीचे देखना नहीं
अशुभ है और उस समय थूकना नहीं
उस समय उत्तर या पश्चिम की ओर देखना
इन्द्रजाल और शत्रुओं से छुटकारा पाना
मलोत्सर्ग के पश्चात माथा भी धो लेना
चमकीला रहेगा रूप-रंग वर्ण अपना
जहाँ भी जाने से पूर्व स्नान करना
तब शुभ समय हो जाएगा बाहर जाने का

रहते समय अपनी प्रेमिका के साथ 

उसके लिए तकिया मत बनाना अपने हाथ
संभोग के पश्चात स्नान करना है उचित
मानता है शुभ-मंगल अधिक शोभित

संकट से मुक्ति मिलती है इस प्रकार

केश धोने का मुर्हूत मानना मंगलवार व शनिवार
सोमवार व बुधवार को नख काटकर बुराइयों से बचना
शुभ-मंगल होता है बृहस्पतिवार को शिक्षा करना
युद्ध में जाने के लिए वस्त्र परिधान
सातों रंगों का सुयोग्य रखना सप्तवार
रविवार के लिए समृद्धि शुभ-मंगल
लाल रंग का वस्त्र पहनना है सुफल
सोमवार को श्वेत रंग का पहनना
हो जाती है दीर्घायु की अवस्था
मंगलवार को बैंगनी और नील का
शुभ है क्षत्रियों के युद्धवीरों का
बुधवार के लिए नारंगी रंग है उत्तम
साथ में मिश्रित रंग भी पहनना श्रेष्ठतम
बृहस्पतिवार को हरे और पीले रंग का
शुक्रवार को मेघों का रंग पहनकर युद्ध में जाना
शनिवार के लिए काला रंग पहनना श्रेष्ठ है
इससे आपका सामना कोई साहसी नहीं है
घोड़ों के वस्त्र भी ठीक उसी प्रकार अलंकार
शुभ रंगों से शुभ-मंगल है संपूर्ण सप्तवार

यदि स्नान करना है किसी नदी की धारा में

या वन के गुहे से किसी पानी के बहाव में
बहाव के अनुकूल उन्मुख करना है
मल-मूत्रोत्सर्ग करना सख्त मना है
बहाव के विरुद्ध उन्मुख मत करना
नहीं तो लड़खड़ाकर गिर जाना ही होगा
नदी में स्नान करने के पश्चात मत भूलना
गंगा देवी को प्रणाम करते रहना सदा

रहस्यमयी विद्याएँ जो शिक्षित
रात्रि को अभ्यास करना है नित्य
शक्तिशाली होकर शत्रुओं पर विजय
यशस्वी होकर सर्व प्रसिद्ध अतिशय

कुत्ता भौंकता ही रहता है

उसको गाली देना शुभ नहीं है
ऐसा करना आपको शोभा नहीं देता
कोई आपके वचन का सम्मान नहीं देता
पवन के झोंके में थूकना नहीं, सावधान
पशु पर लगा तो मंत्र न रहेगा शक्तिमान
सुशील भिक्षु से मिलने पर यदि न वंदन
यश कीर्ति धन संपत्ति का होगा पतन
धूप, हवा, बारिश को गाली न देना
दिन बीतने को चिंतित न करना
सूर्योदय और सूर्यास्त के दोनों समय
सूर्य और चंद्र को प्रणाम मंगलमय
रात को सोने जाना है जब विश्राम
न भूलना तकिये पर हाथ जोड़ प्रणाम
माता-पिता व गुरुओं की प्रशंसा करनी सदा
उनके परोपकार का स्मरण करना सदा

धोती का छोर दाएँ ओर बाँधकर रखना है

हिंसक जानवरों से बचने का सहारा देता है
न जाना पुल सेतु के नीचे
न जाना कद्दू मचान के नीचे
न जाना धरन और पशु बाड़े के नीचे
जो जाता है कीर्ति सम्मान खो जाता है
चाहे शक्तिशाली मंत्र है अपने पास
बुरे प्रभाव से बदलेगा हारा परास्त
कहीं मार्ग पर कोई शव देह दिखाई
कुछ भी बोलना नहीं अशुभ बुराई
जल से धोना अपना मुख-माथा
बुराई से बचना ग्रंथ में यह उपाय लिखा

पूजा-वस्तुएँ जो बँधीं शरीर के अंकों में

तोड़ सकती हैं सोते समय असावधानी से
अस्त्र-शस्त्रों पर पारकर चलना मना है
नारी की बाईं ओर न सोना यह खतरा है
सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण और पूर्णिमा के दिन
नववर्ष तथा श्राद्ध पर्व एवं अपने जन्मदिन
इन दिनों को नारी से दूर रहना अच्छा होता है
इन दिनों को संभोग करना अल्पायु हो जाती है
स्त्री के मासिक धर्म के आने पर साथ न रहना
नहीं तो मृत्यु हो जाना या अंधा हो जाना
नहीं तो फोड़े मवाद के रोग से पीड़ित होना
अपने स्वास्थ्य अच्छा सावधान रहना

अपने जन्मदिवस के शुभावसर पर

प्राणियों को न मारना अशुभ कार्य न कर
इससे अपनी आयु छोटी हो जाती रहेगी
दुख, शोक और रोग की पीड़ा होती रहेगी
एक बात और है जब विश्राम करना
सोते समय दायें पैर पर बायाँ पैर न रखना
बायें पैर पर दायाँ पैर रखना उचित है
इससे शुभ-मंगल माना जाता है

आपके चलते, सोते और बैठते समय
यदि सुनाई देती अज्ञात ध्वनि या कोई लय
भूत-प्रेत-पिशाच-राक्षस का प्रभाव है जानना
उसे ध्यान देता तो जाल में फंस जाता

हे राजकुमार, कृपया सदैव रखें स्मरण 

इस प्रकार “स्वस्ति की रक्षा” का कथन
क्षत्रिय वंशियों के लिए मंगलमय
सुख शांति की प्राप्ति और निर्भय
पुरानी रचना कठिन छंदों में रची थी
लोगों की समझ में नहीं आयी थी
इसलिए मैंने साधारण कविता में लिखा
स्मरण के लिए सरल है मेरी है आशा
मेरे स्वामी की कृपा है मैं कृतज्ञ हूँ
आपकी समृद्धि रहे मैं प्रार्थना करता हूँ
यदि पुरानी रचना से कुछ भिन्न हुआ
मुझे कृपा दें, आपसे मैं मांगता हूँ क्षमा

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(अनुवादक : कित्तिपोंग बुनकर्ड,

हिंदी लेक्चरर, चूड़ालंकरण विश्वविद्यालय, बैंकॉक, थाईलैंड)

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