अच्छा इंसान
थके-हारे जज़्बात,
जब रातों को उलझने लगते थे,
गुम-सुम एहसास,
जब सर्द-ऋतु में सुलगने लगते थे,
मैं अन्तर्द्वन्द्व की आवाज़,
ख़ामोशी से सुनना चाहता था
मैं तो बस केवल,
एक अच्छा इंसान बनना चाहता था।
जब उकता के ख़ामोशी से,
दिल ख़ुद से संवाद करता था,
जब कोई शब्द अर्थ बदल के,
मेरे वजूद का अनुवाद करता था,
मैं उस अजीब कशमकश को,
कुछ कम करना चाहता था
मैं तो बस केवल,
एक अच्छा इंसान बनना चाहता था।
यादों के घोड़े की पकड़ लगाम,
दिल जब सवार होता था,
रौशनी दे के भी जब बेचारा,
कोई जुगनू ख़्वार होता था,
उसका दुख समझने की ख़ातिर,
मैं ख़ुद जरना चाहता था
मैं तो बस केवल,
एक अच्छा इंसान बनना चाहता था।
अब शाम माथे पे हाथ धरे,
जब कायनात में महकती है,
आकाँक्षाओं के रेलों पर,
जब ज़िंदगी धीरे-धीरे सरकती है,
यादों के एक कारवाँ संग,
मैं तो अब भी चलना चाहता हूँ
मैं तो आज भी केवल,
एक अच्छा इंसान बनना चाहता हूँ।
*****
-जगमोहन संघा