बौनों की बारात

झूम-झूम कर नाच रही, छायाएँ आधी रात
धूम धाम से निकल रही है, बौनों की बारात

सोच भी बौनी, कर्म भी बौना, मन का हर कोना है घिनौना
जो चाहो गर शामिल होना, होगा बस अपना कद खोना
क्या जो ठिगना दुल्हा भाई, कुर्सी दे देगी ऊंचाई
सबसे बौना, खूब घिनौना, है दुल्हा उस्ताद।
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सत्ता दुल्हन बड़ी रंगीली, नखरीली और छैल छबीली
एक नज़र में कर देती ये, बड़ों-बड़ों की तबियत ढीली
इसके फंदे रंग बिरंगे, इस हमाम में सारे नंगे
गर्वीले मदमाते जाते, आते बनकर दास।

करता हां, हां ना ना
ये ठुल्ला दुल्हे का मामा
चश्मा काला, खद्धर वाला
दुल्हा लगता, इसका साला
बुद्धिजीवी तो है नाई
इसने ही तो जुगत भिड़ाई
मटक रही जो हल्लो-हल्लो
ये अखबारी छमक छल्लो
सत्ता की राधा के संग सब, मचा रहे हैं रास

सबने सत्ता की मय पी है और लम्पटता की कै की है
नेता, लेखक, अफसर, बाबा, इसमें ये भी और वो भी है
बेसुध चेहरे, मेकअप गहरे, अपना बाजा सुन-सुन बहरे
करते नंगे, बेच तिरंगे, नोटों की बरसात।

तज नैतिकता के सरकंडे,समझ सफलता के हथकंडे
खड़ा-खडा क्या देख रहा है, तू भी उठा हाथ में झंडे
राजा बजा रहा है बाजा, तुझे बुलाए आजा -आजा
चिकन तंदूरी खानी तुझको, या खानी है घास

धूम धाम से निकल रही है, बौनों की बारात

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-अनिल जोशी

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