

हे बाबा नानक!
बहुत पुरानी बात है
युगों पुरानी नहीं
बाबा नानक, चहुं दिशाएं घूमता
न कोई सवारी, न कोई ठेला
अपने पांवों पर चल
अपने भक्तों तक पहुंचता
या जो उसकी प्रतीक्षा में
नज़रें बिछाए रहता
स्वयं उसके पास जाकर
बांहें पसार देता।
यह भी याद है सभी को
बाबा नानक ने मलक भागो का घर
उसकी दावत को था ठुकराया
अपने गरीब भक्त
भाई लालो की मेहनत भरी
सूखी रोटी को था अपनाया
मलक भागो के छत्तीस पकवान
भरमा न पाए थे बाबा को।
उसी बाबा नानक की बाणी
पढ़ते व उच्चारण करते
आज कई ‘रब’ बन बैठे
जो कारों/जहाज़ों द्वारा
‘उदासियां’ (यात्राएं) करते
वीडियो व कैसेटों द्वारा
प्रवचन कर
भक्तों-श्रद्धालुओें को निहाल करते
ठाठ-बाठ, सुख-सुविधा
जिस भक्त के घर मिले
डेरा वहीं लगा कर
‘समाधिस्थ’ हो जाते।
अब कई-कई घंटे
इंतजार करते श्रद्धालु
अपने इन ‘भगवन्’ की
एक झलक पाने को तरसते
आज तक ये ‘रब’
किसी गरीब के घर न ठहरे
अब तो मलक भागो के घर ही
इन्हें अपनी ओर खींचते।
धन्य है तू बाबा नानक!
ये तेरे ही सिख हैं
जो तुझे भूल, फिर तेरी ही खोज में
इन ‘भगवन्’ के दर पर जाते
शायद तुम्हें खोजने नहीं
ये तो अपनी जरूरतों को
पूरा करने की आस लेकर जाते
और प्रत्येक ख्वाहिश के लिए
उम्मीद का प्रसादि लिए वापस आते।
ऐसे भगवन् और श्रद्धालुओं के बीच
बाबा नानक, तुम कहीं दिखाई न देते
तेरा ही नाम लेकर
ये भगवान्, तुम्हें ही झांसा दे जाते!
*****
-जसविन्दर कौर बिन्द्रा,
हिन्दी-पंजाबी लेखिका