
प्राथमिकता का व्याकरण
बहुत जटिल होता है प्राथमिकता का व्याकरण
वैसे यह निर्भर करता है व्यक्ति-व्यक्ति पर
कुछ लोग अपना अर्जित सब कुछ गँवा देते हैं
पर नहीं बदलते प्राथमिकता
कुछ बदल लेते हैं करवट की तरह
अधरों पर लिए कातिल मुस्कान
कुछ के बारे में आप अनुमान लगा सकते हैं
कुछ के बारे में हो सकती है दुविधा
पर कुछ परे होते हैं अनुमान से ब्रूटस की तरह
हालाँकि उनके पास जायज वजह नहीं होती
जैसी थी ब्रूटस के पास
एक दिन जब आपको
सबसे अधिक जरूरत होती है किसी विश्वसनीय की
और आप उठाते हैं नज़र
तो कोई नहीं दिखता है उनमें से दूर-दूर तक
जिन पर आपने किया होता हैअपने कन्धों-सा भरोसा
वे कहीं ओझल हो जाते हैं सफलता और सुख के जादुई कोहरे में
आपकी शिकायत उलझ कर रह जाती है
कभी मुस्कान तो कभी आंसुओं के भीगेपन में
यह प्राथमिकता भी कमाल की चीज है
पल भर में बदल देती है रिश्तों का छंद!
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-जितेन्द्र श्रीवास्तव