
मृणाल कांति घोष के जादुई जूते
जब भी पहनता हूँ जूता
मुझे मृणाल कांति घोष के वे जूते याद आते हैं
जिन्हें सन् 1997 के अक्टूबर में पहनकर गया था मैं
नौकरी का इंटरव्यू देने अबके प्रयागराज और तबके इलाहाबाद
सपनों का समुच्चय संभाले उम्मीदों की गठरी उठाए
सोचता हूँ तो अचरज होता है
पर विश्वास बढ़ जाता है भलमनसाहत पर
कि अब भी हैं ऐसे लोग जिन्हें सुख मिलता है
औरों का सुख देखकर
मृणाल भी ऐसे ही थे बांग्ला ढंग से हिंदी बोलते हुए
कंप्यूटर साइंस के साथ -साथ
बांग्ला साहित्य पर रस लेकर बतियाते हुए
लोगों को अचरज में डालते हुए
मित्रता को जीते हुए अपनी अकुंठ मुस्कान के साथ
एक दिन जब मैंने उन्हें बताया
दिल्ली में तो मुश्किल है इसलिए जा रहा हूँ इलाहाबाद
उत्तर प्रदेश के राजकीय महाविद्यालयों के लिए लेक्चरर का इंटरव्यू देने
आखिर कब तक रहूँगा जेएनयू में
कहीं तो जाना ही होगा दादा
तो दादा ने बहुत गौर से मेरी बाहरी तैयारी का परीक्षण किया
यह कहते हुए कि सब्जेक्ट तो आप जानिए जितेंदर
और यह वाला जूता मत पहनकर जाइए बिल्कुल फॉर्मल नहीं है
मैं ले आया हूँ एक हफ्ते पहले ही एक जोड़ी नया जूता
अपने इंटरव्यू के लिए आप उसे ही पहनकर जाइए
और फिर उन्होंने पॉलिश करके वे जूते मुझे दिए
जो इस तरह आए मेरे पैरों में जैसे खरीदे ही गए हों मेरे लिए
उन जूतों में कोई जादू था जैसे
वह नौकरी मिली मुझे तबके उत्तर प्रदेश के पर्वतीय संवर्ग में
जो अब है उत्तराखंड एक अलग राज्य
वहीं मैंने पहली बार चखा स्वाद अपनी कमाई की रोटी का
जाना घनत्व हवा का पानी का और प्यार का
वह जादू ही था शायद मृणाल के प्रेम का
कि कुल पांच पदों में से एक पद मिला मुझ अकिंचन को भी
किसी आठवें आश्चर्य की तरह
जे एन यू छूटा तो छूट गया रोज का संपर्क
पर नहीं छूटा नेह का धागा
मृणाल चले गए अमेरिका
बहुत सारे कंप्यूटर विशेषज्ञों की तरह रोजगार में उन्मेष पाने
पर उन्हें बहुत प्यार था मातृभूमि से अपने लोगों से
वे आते रहते थे बीच – बीच में अपने देश और अपने बंगाल और अपने जे एन यू
इस बार भी आए थे अपनी बीमारी से ठीक होकर
फिर अमेरिका जाने और फिर –फिर भारत आने के लिए
पर धरी रह गईं योजनाएं
पीछे छूट गया परिवार और छूट गए साथी – संघाती
मृणाल हार गए जीवन
बस गए हमारी स्मृतियों के जीवित कोटर में
वे रहेंगे वहां हमारे रहने तक
बादलों की तरह कभी छाए हुए कभी बरसते हुए
अब सुबह शाम दोपहर रात जब भी पहनता हूँ जूता
याद आते हैं मृणाल याद आता है उनका बड़प्पन
याद आते हैं उनके वे जादुई जूते
जिन्होंने संवारी थी कभी मेरी जिंदगी।
*****
-जितेन्द्र श्रीवास्तव