
एक नाटक के पीछे का नाटक
-आस्था देव
दिन के इस समय जब न सुबह है, न शाम , न दोपहर! घड़ी ने 10:30 बजाये हैं। बावजूद इसके कि मैं पिछले 6 घंटे से जगी हुई हूँ.ऐसा लगता है, कि मेरा बिस्तर मुझे बुला रहा है। ठीक उसी तरह बांहे फैलाकर जैसे कोई रोमांटिक मूवी स्टार बुलाता है।वैसे मेरे जैसी कल्पनाशक्ति, imagination शायद ही किसी की हो, मैं कुछ भी इमेजिन कर सकती हूँ, कुछ भी। इतनी गहराई से कि reality और imagination के बिच का अंतर ही गायब हो जाता है। पर इसके लिए दिल से आवाज़ आनी चाहिए, मैं orgasm की तरह इसे fake नहीं कर सकती। तो ये लाइन पढ़ते पढ़ते आप इस conclusion पर पहुँच गए होंगे, कि मैं हमेशा fake ही करती होंगी! बेचारी चरम सुख से वंचित, अबला नारी। वैसे तो आप हैं कौन जिनसे मैं अपनी सेक्स लाइफ डिसकस करूं? पर चुकी आप आगे मेरी कहानी पढ़ने की जहमत उठाने वाले हैं, तो ये जरूरी है कि आप मुझे थोड़ा तो जान ही लें। तो जब मैं ये कहती हूँ कि मैं कोई काम कर सकती हूँ,तो इसका ये मतलब कतई नहीं है कि मैं वो काम करुँगी ही। बाकि, आप खुद समझदार हैं!
बिस्तर पर लेट, लैपटॉप पर उँगलियाँ चलाती हुई मैं fake meat के बर्गर खाते हुए, एक नाटक लिखने की पुरजोर कोशिश कर रही हूँ। लैपटॉप के किसी कोने में अधूरा पड़ा assignment मुझे दुहाई दे रहा है, भगवान् से नहीं, प्रोफेसर से नहीं तो अपनी माँ से डर पगली। हर unit test की date, time और उसमें तुम्हारी position, ये उनकी जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण डाटा है, extremely sensitive मेरठ जैसे छोटे से शहर से आकर, “How Papaji made it big?” ये किस्सा मम्मी ने इतनी बार सुनाया है, कि गिना होता तो guinness world records में जाता पर इसमें उन्हें टक्कर देने के लिए किसी को बाहर नहीं ढूँढना पड़ेगा। उतने ही किस्से मम्मी के त्याग के पापाजी ने सुनाने हैं। इनकी प्रेम कहानी, शादी के बाद शुरू हुई, पर जब से शुरू हुई है तब से खत्म नहीं हुई। पढ़ा था कहीं, “प्रेमियों के बच्चे अनाथ होते हैं। मैंने इसे पूरी तरह अनुभव किया है। बाकि आप खुद समझदार हैं।
नाटक का नायक, मेरी जिंदगी के तथाकथित नायकों से थोड़ा अलग है।न इसे commitment से डर लगता है, न किसी की मम्मी से। बेफिक्र लड़का है, सपनों को चुनता है, हकीकत को मैं खुशनुमा बनाये रखती हूँ। बतौर राइटर, कौन परोसे वही दाल चावल थाली में। वही प्रेम, वही झगडे, वही जिंदगी के उतार-चढाव। इसलिए इसे मैंने नए challenges दिए है। उसे ये आज़ादी दी है कि आराम की चीज़ें उसे बोरियत से भर दें। माँ-बाप ऐसे कि सबसे अच्छे दोस्तों को भी अपने friendly attitude से शर्मिंदा कर दें। प्यार मोहब्बत का कोई scene ही नहीं रखना, रिश्तों में confusion रखा है, पर benifits में कोई कटौती नहीं की। आखिर, रोमांटिक scene के बिना, नाटक कहाँ पूरा होगा। वैसे भी अधूरे रिश्तों में जो रहस्य छुपा रहता है न, वो पढ़ने सुनने वाले के लिए उसकी रोचकता को कम नहीं होने देता। पैसे रुपए की चिंता में घुटता, भविष्य के लिए आज को भूलता, ऐसा mediocre नायक नहीं चाहिए था मुझे। और माँ का लाडला तो कतई नहीं, वैसे इसके लिए मेरे एक दोस्त ने मेरे इस नायक के को PKC का title दिया है। PKC मतलब “privileged k CHONCHLE” अब बताइये, उस एक दोस्त के लिए मैं यथार्थ तो नहीं परोस सकती न। कहानियां मनोरंजन का साधन है , उसमें मियाँ बीवी के झगडे, ऑफिस पॉलिटिक्स, माँ की यादें , हमारी कायरता, ये सब डालकर मैं उसे बोझिल नहीं बना सकती। बाकि आप खुद समझदार हैं!
तब बारी आती है, नायिका की! उसे लिखना क्या कोई आसान काम है? बिलकुल नहीं। बतौर लेखिका, मेरे महिला किरदारों से उम्मीद ज्यादा रहती है। मेरी नायिका मेरा इंस्टा पोस्ट्स की तरह होती है। मैं उसकी अच्छी बातों को ज़ूम कर, फ़िल्टर लगा, चमका के पेश करती हूँ। नारीवादी नारी है वो, मम्मी के सीरियल्स की तरह नहीं कि अपने आप को भूल जाये, औरों के लिए। वो जिंदगी खुल के जीती है, कमीना नहीं बोलती, fuck you बोलती है, अपने पसंद का poison चुनती है, किसी सांप का जहर नहीं उतारती, ऑफिस पॉलिटिक्स हो, दारू पार्टी या फिर रिलेशनशिप का confusion, कुछ भी उसके मेन्टल हेल्थ को नहीं बिगाड़ पाता। motherhood हो, या friendships , उसकी ship कभी नहीं डूबती। सब करने का टाइम होता है उसके पास, casual sex से लेकर बच्चे को स्कूल ड्राप करने तक। क्योंकि वो सुपरवूमन है। यूँ तो इसमें यथार्थ डालने की पूरी सम्भावना है पर मुझे मनोरंजन चाहि , रोना हो भी तो उतना ही जितना vibe को ख़राब न करे और sympathy बटोर लाये। अब नाटक में fullon ड्रामा नहीं होगा तो क्या होगा! बाकि आप खुद समझदार हैं।
पुरुष और स्त्री के अलावा दुनिया में 72 और genders हैं। पर उनमें बारे में लिखना मेरे लिए काफी risky है। एक तो जब मैं किसी और जेंडर से मिलती हूँ तो उसमें मुझे इंसान नहीं बस सवालों के जवाब नज़र आते हैं। फिर कौतूहल में उलझ जब उसके पास पहुँचती हूँ, तो मैं सतही सवालों के जवाब से ज्यादा जान नहीं पाती। ऐसे प्राइड परेड के ज़माने में , मैं कुछ ऐसा परोसना तो चाहती हूँ जो others के बारे में बात करे , पर जब तक उनके बारे में और गहराई से जान नहीं लेती न, तब तक एक आधा GAY या लेस्बियन प्रेम का ट्रैक डालकर काम चला लुंगी, पर रखना उसको भी casual ही है मुझे। वैसे एक ड्रेस खरीदने के लिए, हम न जाने कितनी ड्रेस try करते हैं, फिर casual सेक्स में बुरा क्या है, Try before you buy! ये बात अलग है कि मेरे किरदार ज्यादातर window शॉपिंग कर रहे हैं। बाकि आप खुद समझदार हैं!
तो ये नाटक लिखना, तो पहली सीढ़ी है, मंच तो अभी काफी दूर है। अभी i am the Creator aka God के mode में मैं न जाने कौन से चुनिंदा लोगों को चुनूंगी, जो न केवल characters के सांचे में fit बैठें, बल्कि मेरी बात सुनें और मान लें, समझना उनकी choice है! फिर बड़े छोटे egos के बिच कहानी पनपेगी और शायद एक दिन नाटक के तौर पर लोगों तक पहुंचे। कहानी के पीछे purpose बदलाव लाना भले ही न रहा हो, पर वो बदलेगा कुछ न कुछ हर देखने वाले के अंदर। अब वो बदलाव कुछ भी हो सकता है, सही, गलत पर सही बात तो ये है कि हर इंसान अपनी सोच के लिए खुद जिम्मेदार है। तो क्या हुआ, जो मैंने, थोड़ा झूठ परोसा, क्या हुआ जो मैंने vulnerability को पूरी तरह खारिज कर दिया, casual को cool , infidelity को necessity ,woman को superhuman, human को एलियन दिखाया। मनोरंजन तो किया न, वही तो purpose है हर play का। बाकि आप खुद समझदार हैं!!!
P.S. : ये एक इंसान का perspective है, इसे गलत सही कहना, दूसरे इंसान का perspective हो सकता है!