ग़ज़ल- 1.

न तुम अच्छे, न मैं अच्छी, ग़लतफ़हमी में मत रहना,
हुई ये बात अब नक्की, ग़लतफ़हमी में मत रहना।

सितारों पर घुमाने का मुझे सपना दिखाते हो,
बहुत भोले हो तुम सच्ची, ग़लतफ़हमी में मत रहना।

नहीं आता मुहब्बत को निभाना ठीक से जब तक,
समझ लो उम्र है कच्ची, ग़लतफ़हमी में मत रहना।

हमारी टीम कब मैदान में देखो उड़ा डाले,
तुम्हारी टीम की धज्जी, ग़लतफ़हमी में मत रहना।

फटे कपड़ों में अपने को बहुत सुंदर समझती हो,
सुधर भी जाओ अब बच्ची, ग़लतफ़हमी में मत रहना।

न समझे थे न समझोगे, भले कितना भी समझाओ,
क़सम से हो बड़े झक्की, ग़लतफ़हमी में मत रहना।


ग़ज़ल-2

इस क़दर वो हमें रास आने लगे,
बिन बुलाए भी घर उनके जाने लगे।

रोज़ छत पे टहलने की आदत लगी,
रोज़ खिड़की पे आ गुनगुनाने लगे।

बैठकर उनकी आग़ोश में रात दिन,
गीत लिखने लगे, धुन बनाने लगे।

बात ही बात में कह गए आप सब,
और समझने में हमको ज़माने लगे।

देर तक आईने में सँवरने लगे,
हम हर इक बात पर मुस्कुराने लगे।

रास्ते में उन्हें देखकर यक-ब-यक,
कुछ गिराने लगे, कुछ उठाने लगे।

जिस्म से उनकी ख़ुश्बू मिटाने को हम,
भीगकर बारिशों में नहाने लगे।


ग़ज़ल -3

रहमतों का तेरी सिलसिला चाहिए,
अपने हक़ में हर इक फ़ैसला चाहिए।

गीत ग़ज़लों को कहने में माहिर हैं पर,
सुर में गाए कोई वो गला चाहिए।

साथ उपवास हों, साथ में महफ़िलें,
प्यार में मन ज़रा मनचला चाहिए।

हमसफ़र में वो क्या-क्या नहीं ढूँढते,
हमसफ़र चाहिए कि बला चाहिए?

ट्रोल करने की आदत पड़ी इस कदर,
रात-दिन इक नया मसअला चाहिए।

काम से काम रखना ही बेहतर है पर,
बात रखनी भी हो, तो कला चाहिए।

ग़र वो गुज़रें इधर से कभी या ख़ुदा,
चाँद पूरा गगन में खिला चाहिए।


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– विनीता तिवारी

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