
पहुँच गए अमरीका
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बाँध गठरिया घर से निकले
पहुँच गए अमरीका
नए देश के नए शहर में
लगता था सब फीका
धीरे-धीरे समय गुजरता
दिखती थी चहुँओर विषमता
सात समुंदर पार करे नहीं
कोई रोली टीका
यहाँ रात तो वहाँ पे दिन था
अपनों का मिलना मुश्किल था
ऐ. सी. हीटर वाले घर थे
आँगन था, न छीका
कई बरस फिर यूँ ही बीते
देश-प्रेम में जीते-जीते
बिरहन सी कर ली हालत
पर दर्द मिटा नहीं जी का
इक दिन कुछ नव-ज्ञान मिला
कुछ पूर्वाग्रहों से ध्यान हिला
तो नयी सोच से जीने का
बस उठा लिया फिर ठीका
समझ लिया सब है मोह-माया
क्या अपना और कौन पराया?
जहाँ रहो ख़ुशियाँ बाँटो
क्या इंडिया क्या अमरीका
नये देश में बस उस दिन से
लगा नहीं कुछ फीका
बाँध गठरिया घर से निकले
पहुँच गए अमरीका
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– विनीता तिवारी