
मद्धम
चाँद मद्धम, रात मद्धम
रात की हर बात मद्धम।
नभ की नीली नीलिमा में
दीप झिलमिला रहे
काँपते अधर धरा के
गीत गुनगुना रहे
सुर मद्धम, ताल मद्धम
बज रहे हैं साज मद्धम।
अंग-अंग छू रही है
मंद-मंद यह पवन
दिशा-दिशा निहारते
प्रीत में भीगे नयन
मेघ मद्धम, धार मद्धम
झर रही फुहार मद्धम।
धरा की नर्म सेज पर
बिछी है पुष्प पंखुड़ी
ओढ़ ली है साँझ ने
ओढ़नी तारों जड़ी
रंग मद्धम, राग मद्धम
रात का श्रृंगार मद्धम।
चाँद छूने को चली
उमंग से सिन्धु लहर
धरा का रोम-रोम आज
जी रहा है यह प्रहर
आस मद्धम, हास मद्धम
रूप का विलास मद्धम।
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– शशि पाधा