बड़े हो गए हम

ज़रूरी नहीं अब
किसी का अनुमोदन
बड़े हो गए हम।

औरों की सुनी थी
मन की ना मानी
कमी थी,या खूबी
ना जानी,पहचानी

विवादों ने घेरा
परे हो गए हम।

अनचीन्हा कोई
भय था, घुटन थी
बड़ी उलझनों की
तीखी चुभन थी

कसौटी पे घिस के
खरे हो गए हम ।

थकने लगे थे
निभाते-निभाते
दुविधाएँ मन की
छिपाते छिपाते

बिसराई पतझड़ 
 हरे हो गए हम।

सुख दुःख को जीवन
तराजू पे तोला
कभी तो अडिग थे
कभी धीर डोला

ले संयम की लाठी
खड़े हो गए हम।

सूरज ना पूछे
उगने से पहले
ना रुकतीं हवाएँ
उड़ने से पहले

कड़ी धूप झेली
कड़े हो गए हम
बड़े हो गए हम!!!!

*****

– शशि पाधा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate This Website »