सुनो मुझे चाहिए

सुनो, नहीं चाहिए तुम्हारी जायदाद,
तुम्हारी कोठी, तुम्हारा रुतबा,
तुम्हें मुबारक तुम्हारी शान।

हमें तो बस, एक छोटी सी क्यारी थी चाहिए,
जिसमें सुबह ही खिल उठती, थोड़ी हँसी,
ज़रा सा प्यार, पूरा विश्वास।
और चाहिए, उन नशीली निगाहों का सहारा,
जिनके सहारे, हम चले आए वन में तुम्हारे द्वारे।

वह हाथ जो तुमने बढ़ाया था हमारी ओर,
हमें दे दो, तुम हमारी हस्ती, हमारी महक,
हमारी आशाएँ और हमारी खनकती आवाज़
जो कभी भाई थी तुम्हें।

सुनो, नहीं चाहिए तुम्हारी जायदाद
तुम्हारी कोठी, तुम्हारा रुतबा,
तुम्हें मुबारक तुम्हारी शान।

*****

– भुवनेश्वरी पांडे

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