
कल आज और कल
समय की मान्यता को
इतना ऊँचा उठाओ मत,
कल जो गुज़र गया है,
उसे बिल्कुल भुलाओ मत।
कल जो बीत गया,
रीत गया मत सोचो,
कल के गर्भ में जो था,
वही आज मुखरित हो उठा है।
इसीलिए आज को देखते हुये,
कल की मान्यता मिटाओ मत।
कल जो चाहे पिछड़ा हुआ हो,
बेपढ़ा लिखा या ग़रीब,
पर यह क्यों भूलते हो
उसी ने तो सँवारा है,
आज का नसीब?
इसीलिए कहती हूँ,
कल की मजबूरी को दूर करो,
कल की ग़रीबी को दूर करो,
पर कल का धर्म, संस्कृति,
आज के लिए मिटाओ मत।
मत भूलो कल के बिना,
आज का कोई स्वरूप न था।
जो तुम्हें इतना बुरा दिखता है,
कल वह इतना कुरूप न था।
हर गयी पीढ़ी से
नई पीढ़ी अच्छी होती है।
और हर विकास की मीनार
ऐसे ही खड़ी होती है।
पर विकास की मीनार को नापने के लिए,
नीचे की सीढ़ी भी
उतनी ही महत्वपूर्ण होती है,
इसीलिए ऊपरी मंज़िल को देखकर,
ज़मीन की सतह को भुलाओ मत।
न यही देखो कि वहाँ
ज़मीन खुरदुरी व कंकड़ीली है,
तुम्हें नहीं पता ऊँचाईको उठाने में,
सतह ने कितनी विपदा झेली है।
इसलिए पहली सीढ़ी को पूजो,
उसे ठोकर लगाओ मत।
जो कल आएगा उसका
स्वरूप आज से भिन्न होगा।
उसका मन आज के लिए
इतना ही खिन्न होगा।
वह भी कहेगा कि आज पिछड़ा हुआ था,
पुरानी बेड़ियों में जकड़ा हुआ था।
आने वाला कल कभी नहीं जानेगा
कि उसी को निखारने को,
आज कितना तपा हुआ था,
और विकास की यह धारा
जो बाँध तोड़ कर बढ़ रही है,
बाँध वही, जो बीते हुए कल
और आज से बँधा हुआ था।
और इसीलिए आने वाले
कल को समझने के लिए,
बीते हुए कल और आज को समझो,
वही आने वाले कल की नींव है
आज के पुजारी देखो,
तुम आज की नींव को हिलाओ मत।
आज की मान्यता को,
इतना ऊँचा उठाओ मत,
और कल जो गुजर चुका है,
उसकी मान्यता जड़ से मिटाओ मत।
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– शैल शर्मा