अहं की दीवार

यूँ लगा तुम को पुकारूँ, कई कई बार,
और मैं तुमको बता दूँ, तुमसे कितना प्यार,
पर न जाने क्यों, जिह्वा से कुछ नहीं कहती,
बीच में आ जाती है, यह अहं की दीवार।

ग़लतियाँ कुछ आपकी हैं, और कुछ हमारी भी,
क्यों हुई है मुझसे ग़लती, जानता है दिल,
पर कभी भी सामने नहीं कर सकी स्वीकार,
बीच में उठ आई है, यह अहं की दीवार।

चार दिन की ज़िन्दगी है, जानते हम सब,
फिर भी लड़ते हैं, झगड़ते, चूकते हम कब?
क्यों न रह पाते हैं मिलकर प्यार के दिन चार,
बीच में आ जाती है, यह अहं की दीवार।

उसने मुझ को विष दिया, मैं भी ज़हर दे दूँ,
उसने गाली एक दी, मैं सौ बुरा कह दूँ।
उसको नीचा देखना पड़ जाए हो ऐसा,
ज़िंदगी भर को उसे अच्छा सबक़ दे दूँ,

प्यार के बदले ना देते, भूल कर भी प्यार,
बीच में आ जाती है यह अहं की दीवार।

*****

– शैल शर्मा

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