अबकी दीवाली

अबकी दीवाली कुछ ऐसे मनाएँ
स्याह मनों के, धुल सब जाएँ!

नेह जले सतत प्रेम भावों की
बाती बन रहे संवेदना मन की
दीये बन रहे तन की मिट्टी के
जीवन प्रकाश ही लौ हो जाए!!

अबकी दीवाली कुछ ऐसे मनाएँ
स्याह मनों के, धुल सब जाएँ!

पुत्र है बैठा सीमाओं पर जिसका
सूना न हो कैसे उसका जीवन
आज फिर बस बात हो जाये
इतनी ही प्रतीक्षा में ठहरा आँगन

चलो मिल आएँ उस माता से
स्वर कुछ आँगन में उठ आएँ
अबकी दीवाली कुछ ऐसे मनाएँ
स्याह मनों के, धुल सब जाएँ!

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– संदीप कुमार सिंह

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