प्यासी सरिता (अनाथ बेटी)

प्यासी सरिता इक बूँद को तरसे
मेघ बिना कब सावन बरसे।
कैसी विडम्बना है जीवन की
राज़ है गहरा बात ज़रा सी।
प्यासी सरिता दुर्गम पथ जोहती रहती है
और निरंतर बहती रहती है।
प्यासी सरिता किसको, कब और क्या कहती है।

मूक हृदय की अभिलाषा
साँझ-सवेरे दर्शाती है।
मन्द समीर की ओढ़ चूनरी
घाव हृदय के सहलाती है।
धीर-गंभीर-मयूर गामिनी
अति स्नेहिल चुम्बन चाहती है।
प्यासी सारिता इक बूँद को तरसे
किससे, क्या और कब कहती है
और निरंतर बहती रहती है।

हृदय की व्यथा दयनीय है
निर्मल, निश्छल कितनी करुण है।
धरती के चुम्बन में रहती
गीतों के गुंजन में बहती।
प्यासी सरिता की प्रतीक्षा
परीक्षा में परिणित होती है।
प्यासी सरिता किससे, क्या और कब कहती है
और निरंतर बहती रहती है।

मर्यादाओं का आश्रय लेकर
तट की सीमा में रह-रह कर।
तूफ़ानों की उथल-पुथल में
और भँवर में सम्भल-सम्भल कर
असहनीय झंझावातों को सहकर
अपनी राहें ख़ुद चुनती है।
प्यासी सरिता इक बूँद को तरसे
किससे, क्या और कब कहती है
और निरंतर बहती रहती है।

धैर्य की सीमा न लाँघकर
आकांक्षाओं के बाँध-बाँध कर।
आशा के किरणों की लालिमा
लहरों के मृदुल मिलाप की गरिमा।
आदि से अन्त तक भीगी है।
अटल विश्वास को वंदन करती है।
अपनी मंज़िल ‘जौहर’ ख़ुद तय करती है
और निरंतर बहती रहती है।

प्यासी सरिता इक बूँद को तरसे
किससे, क्या और कब कहती है॥

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– सरोजिनी जौहर

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