अधूरा आदमी

वह
अपनी हर बात अधूरी छोड़
आगे बढ़ जाता है
संतुष्ट . . .
पूर्णता के आभास से विश्वस्त
छोड़ जाता है
तो एक प्रश्नचिह्न
हवा में लटका हुआ
अपना सर पटकता हुआ!

प्रश्नचिह्न . . .
पूर्णता के आभास को भोगने के लिए
पूर्णविराम बनने के प्रयास में
शून्य में खोजता रहता है
अपने जन्मदाता का विश्वास
जो अधूरेपन के कुहासे पर टिका है!

पर अधूरा आदमी विश्वस्त है
उसका मार्ग प्रशस्त है
कुहासे तो प्रश्नचिह्नों के लिए होते हैं
वह तो पूर्णविराम है!

*****

– सुमन कुमार घई

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