
यात्रा
मैं अपने घोड़े पर सवार,
हिमतुंगों का सर झुकाना चाहता हूँ,
भूल गया हूँ कि
इन चोटियों पर विजय पाने के लिए
पैदल चलना पड़ता है
क़दम-ब-क़दम
भूल गया हूँ कि
पथरीले रास्तों पर –
पदचिह्न नहीं होते
हर एक को खोजना होता है
अपना मार्ग
नुकीले पत्थरों पर
चढ़ाना होता है
अपने छिले तलवों का अर्घ्य
*****
– सुमन कुमार घई