विराट

वह मेरी दोस्त-
रानी,
अपने अस्तित्व का रहस्य समझ
इक दिन जब घर से निकली
तो ओस की बूँदों ने
उसके पाँव धोए
पर्वत की ओर जाती पगडंडी ने
उसको अपनी ओर आकर्षित किया
पंछि यों की चहचहाट ने
उसके कानों के द्वार पर दस्तक दी

शीतल हवा का हाथ थामे
वह जा पहुँची जंगल के अन्दर
बहुत अन्दर
मंत्रमुग्ध सी
खो गई उस पल में
रानी –
मेरी दोस्त!

पेड़ों ने उसे देख बाँहें फैलाईं
डाल-डाल पात-पात ने
उसे छू के कहा–
तुझे पता है–
हम भी रानी हैं!
लताओं ने कहा
हम भी रानी हैं!
घास के ति नके-तिनके ने कहा-
हम रानी हैं
हम रानी हैं!

अब माटी के कण-कण से
आवाज़ आने लगी–
हम भी रानी हैं
हम भी रानी!

रूहपोश रानी को लगा जैसे
वह धरती से आकाश तक फैल चुकी थी!

*****

– सुरजीत

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