
कब्र का मुनाफा
तेजेंद्र शर्मा एम.बी.ई.
“यार कुछ न कुछ तो नया करना ही पड़ेगा। सारी जिन्दगी नौकरी में गंवा चुके हैं। अब और नहीं की जाएगी ये चाकरी”, खलील जैदी का चेहरा सिगरेट के धुंए के पीछे धुंधला सा दिखाई दे रहा है। नजम जमाल व्हिस्की का हलका सा घूंट भरते हुए किसी गहरी सोच में डूबा बैठा है। सवाल दोनों के दिमाग में एक ही है—अब आगे क्या करना है। कौन करे अब यह कुत्ता घसीटी।
खलील और नजम ने जीवन के तैंतीस साल अपनी कम्पनी की सेवा में होम कर दिए हैं। दोनों की यारी के किस्से बहुत पुराने हैं। खलील शराब नहीं पीता और नजम सिगरेट से परेशान हो जाता है। किन्तु दोनों की आदतें दोनों की दोस्ती के कभी आड़े नहीं आती हैं। खलील जैदी एक युवा अफसर बन कर आया था इस कम्पनी में, किन्तु आज उसने अपनी मेहनत और अक्ल से इस कम्पनी को युरोप की अग्रणी फाइनेन्शियल कम्पनियों की कतार में ला खड़ा किया है। लंदन के फाइनेन्शियल सेक्टर में खलील की खासी इज्जत है।
“वैसे खलील भाई क्या जरूरी है कि कुछ किया ही जाए। इतना कमा लिया अब आराम क्यों न करें।.. बेटे, बहुएं और पोते पोतियों के साथ बाकी दिन बिता दिए जाएं तो क्या बुरा है ?”
“मियां, दूसरे के लिए पूरी जिन्दगी लगा दी, कम्पनी को कहां से कहां पहुंचा दिया। लेकिन कल को मर जाएंगे तो कोई याद भी नहीं करेगा। अगर इतनी मेहनत अपने लिए की होती तो पूरे फाइनेंशियल सेक्टर में हमारे नाम की माला जपी जा रही होती।”
“खलील भाई, मरने पर याद आया, आपने कार्पेण्डर्स पार्क के कब्रिस्तान में अपनी और भाभी जान की कब्र बुक करवा ली है या नहीं? देखिए उस कब्रिस्तान की लोकेशन, उसका लुक, और माहौल एकदम यूनीक है। अब जिन्दगी भर तो काम, काम और काम से फुर्सत नहीं मिली, कम से कम मर कर तो चैन की जिन्दगी जिएंगे।”
“क्या बात कही है मियां, कम से कम मर कर तो चैन की जिन्दगी जिएंगे। भाई वाह, वो किसी शायर ने भी क्या बात कही है कि, मर के भी चैन न पाया तो किधर जाएंगे।… यार मुझे तो कोई दिक्कत नहीं। तुम्हारी भाभी जान बहुत सोशलिस्ट किस्म की औरत हैं। पता लगते ही बिफर जाएगी। वैसे, तुमने आबिदा से बात कर ली है क्या? ये हव्वा की औलादों ने भी हम जैसे लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है। अब देखो ना।”
नजम ने बीच में ही टोक दिया, “खलील भाई इनके बिना गुजारा भी तो नहीं। नेसेसरी ईविल हैं हमारे लिए; और फिर इस देश में तो स्टेट्स के लिए भी इनकी जरूरत पड़ती है। इस मामले में जापान बढ़िया है। हर आदमी अपनी बीवी और बच्चे तो शहर के बाहर रखता है, सबर्ब में-और शहर वाले फ्लेट में अपनी वर्किंग पार्टनर। सोच कर कितना अच्छा लगता है।” साफ पता चल रहा था कि व्हिस्की अपना रंग दिखा रही है।
“बार ये साला कब्रिस्तान शिया लोगों के लिए एक्सक्लूसिव नहीं हो सकता क्या?.. वर्ना मरने के बाद पता नहीं चलेगा कि पड़ोस में शिया है सुन्नी या फिर वो गुजराती टोपी वाला। यार सोच कर ही झुरझुरी महसूस होती है। मेरा तो बस चले तो एक क़ब्रिस्तान बना कर उस पर बोर्ड लगा दूं—शिया मुसलमानों के लिए रिर्ज्वड।”
“बात तो आपने पते की कही है खलील भाई। लेकिन ये अपना पाकिस्तान तो है नहीं। यहां तो शुक्र मनाइए कि गोरी सरकार ने हमारे लिए अलग से कब्रिस्तान बना रखा है। वर्ना हमें भी ईसाइयों के कब्रिस्तान में ही दफन होना पड़ता। आपने कार्पेण्डर्स पार्क वालों की नई स्कीम के बारे में सुना क्या? वो खाली दस पाउण्ड महीने की प्रीमियम पर आपको शान से दफनाने की पूरी जिम्मेदारी अपने पर ले रहे हैं। उनका जो नया पैम्फलैट निकला है उसमें पूरी डिटेल्स दे रखी हैं। लाश को नहलाना, नए कपड़े पहनाना, कफन का इन्तजाम, रॉल्स रॉयस में लाश की सवारी और कब्र पर संगमरमर का प्लाक—ये सब इस बीमे में शामिल है।”
“यार ये अच्छा है, कम से कम हमारे बच्चे हमें दफनाते वक्त अपनी जेबों की तरफ नहीं देखेंगे। मैं तो जब इरफान की तरफ देखता हूं तो बहुत मायूस हो जाता हूं। देखो पैंतीस का हो गया है मगर मजाल है जरा भी जिम्मेदारी का अहसास हो ।… कल कह रहा था, डैड कराची में बिजनस करना चाहता हूं, बस एक लाख पाउण्ड का इंतजाम करवा दीजिए। अबे पाउण्ड क्या साले पेड़ों पर उगते हैं। नादिरा ने बिगाड़ रखा है। अपने आपको अपने सोशलिस्ट कामों में लगा रखा है। जब बच्चों को मां की परवरिश की जरूरत थी, ये मेमसाब कार्ल मार्क्स की समाधि पर फूल चढ़ा रही थीं। साला कार्ल मार्क्स मरा तो अंग्रेजों के घर में और कैपिटेलिज्म के खिलाफ किताबें यहां लिखता रहा। इसीलिए दुनिया जहान के मार्क्सवादी दोगले होते हैं। सालों ने हमारा तो घर तबाह कर दिया। मेरा तो बच्चों के साथ कोई कम्यूनिकेशन ही नहीं बन पाया।” खलील जैदी ने ठण्डी सांस भरी।
थोड़ी देर के लिए सन्नाटा छा गया है। मौत का सा सन्नाटा। हलका सा सिगरेट का कश, छत की तरफ़ उठता धुआं, शराब का एक हलका सा घूंट गले में उतरता, थोड़ी काजू के दांतों से काटने की आवाज। नजम से रहा नहीं गया, “खलील भाई, उनकी एक बात बहुत पसन्द आई है। उनका कहना है कि अगर आप किसी एक्सीडेन्ट या हादसे का शिकार हो जाएं, जैसे आग से जल मरें तो वो लाश का ऐसा मेकअप करेंगे कि लाश एकदम जवान और खूबसूरत दिखाई दे। अब लोग तो लाश की आखरी शक्ल ही याद रखेंगे न। नादिरा भाभी और आबिदा को यही आइडिया बेचते हैं, कि जब वो मरेंगी तो दुल्हन की तरह सजाई जाएंगी।”
“यार नजम, एक काम करते हैं, बुक करवा देते हैं दो दो कब्रें। हमें नादिरा या आबिदा को अभी बताने की जरूरत क्या है। जब जरूरत पड़ेगी तो बता देंगे।”
“क्या बात कही है भाई जान, मजा आ गया। लेकिन, अगर उनको जरूरत पड़ गई तो बताएंगे कैसे? बताने के लिए उनको दोबारा जिन्दा करवाना पड़ेगा।… हा.. हा… हाहा…”
“सुनो, उनकी कोई स्कीम नहीं है जैसे बाई वन गैट वन फ्ररी या बाई टू गैट वन फ्ररी ? अगर ऐसा हो तो हम अपने अपने बेटों को भी स्कीम में शामिल कर सकते हैं। अल्लाह ने हम दोनों को एक एक ही तो बेटा दिया है।”
“भाई जान अगर नादिरा भाभी ने सुन लिया तो खट से कहेंगी, क्यों जी हमारी बेटियों ने क्या कुसूर किया है?”
“यार तुम डरावनी बातें करने से बाज नहीं आओगे। मालूम है, वो तो समीरा की शादी सुन्नियों में करने को तैयार हो गई थी। कमाल की बात ये है कि उसे शिया, सुन्नी, आगाखानी, बोरी सभी एक समान लगते हैं। कहती हैं, सभी मुसलमान हैं और अल्लाह के बंदे हैं। उसकी इंडिया की पढ़ाई अभी तक उसके दिमाग़ से निकली नहीं है।”
“भाई जान अब इंडिया की पढ़ाई इतनी खराब भी नहीं होती। पढ़े तो मैं और आबिदा भी वहीं से हैं। दरअसल मैं तो गोआ में कुछ काम करने के बारे में भी सोच रहा हूं। वहां अगर कोई टूरिस्ट रिजॉर्ट खोल लूं तो मजा आ जाएगा…! भाई, सच कहूं, मुझे अब भी अपना घर मेरठ ही लगता है। चालीस साल हो गए हिन्दुस्तान छोड़े, लेकिन लाहौर अभी तक अपना नहीं लगता। …यह जो मुहाजिर का ठप्पा चेहरे पर लगा है, उससे लगता है कि हम लाहौर में ठीक वैसे ही हैं, जैसे हिन्दुस्तान में… अछूत।”
“मियां चढ़ गई है तुम्हें। पागलों की सी बातें करने लगे हो। याद रखो, हमारा वतन पाकिस्तान है। बस। यह हिन्दू धर्म एक डीजेनेरेट, वल्गर और कर्रप्ट कल्चर है। हिन्दुओं या हिन्दुस्तान की बड़ाई पूरी तरहे से एन्टी-इस्लामिक है। फिल्में देखी हैं इनकी, वल्गैरिटी परसॉनीफाईड। मेरा तो बस चले तो सारे हिन्दुओं को एक कतार में खड़ा करके गोली से उड़ा दूं।”
नजम के खर्राटे बता रहे थे कि उसे खलील जैदी की बातों में कोई रूचि नहीं है। वो शायद सपनों के उड़नखटोले पर बैठ कर मेरठ पहुंच गया था। मेरठ से दिल्ली तक की बस का सफर, रेलगाड़ी की यात्रा और आबिदा से पहली मुलाकात, पहली मुहब्बत, फिर शादी। पूरी जिन्दगी जैसे किसी रेल की पटरी पर चलती हुई महसूस हो रही थी।
महसूस आबिदा भी कर रही थी और नादिरा भी। दोनों महसूस करती थीं कि उनके पतियों के पास उनके लिए कोई समय नहीं है। उनके पति बस पैसा देते हैं घर का खर्चा चलाने के लिए, लेकिन उसका भी हिसाब किताब ऐसे रखा जाता है जैसे कंपनी के किसी क्लर्क से खर्चे का हिसाब पूछा जा रहा हो। दोनों को कभी यह महसूस नहीं हुआ कि वे अपने अपने घर की मालकिनें हैं। उन्हें समय समय पर यह याद दिला दिया जाता था कि घर के मालिक के हुक्म के बिना वे एक कदम भी नहीं चल सकतीं। आबिदा तो अपनी नादिरा आपा के सामने अपना रोना रो लेती थी लेकिन नादिरा हर बात केवल अपने सीने में दबाए रखतीं।
नादिरा ने बहुत मेहनत से अपने व्यक्तित्व में परिवर्तन पैदा किया था। उसने एक स्थाई हंसी का भाव अपने चेहरे पर चढ़ा लिया था। पति की डांट फटकार, गाली गलौच यहां तक कि कभी-कभार की मार-पीट का भी उस पर कोई असर दिखाई नहीं देता था। कभी-कभी तो खलील जैदी उसकी मुस्कुराहट से परेशान हो जाते, “आखिर आप हर वक्त मुस्कुराती क्यों रहती हैं? यह हर वक्त का दांत निकालना सीखा कहां से है आपने। हमारी बात का कोई असर ही नहीं होता आप पर।”
नादिरा सोचती रह जाती है कि अगर वो गमगीन चेहरा बनाए रखे तो भी उसके पति को परेशानी हो जाती है। अगर वो मुस्कुराए तो उन्हें लगता है कि जरूर कहीं कोई गड़बड़ है अन्यथा जो व्यवहार वे उसे दे रहे हैं, उसके बाद तो मुस्कुराहट जीवन से गायब ही हो जानी चाहिए।
नादिरा ने एक बार नौकरी करने की पेशकश भी की थी। लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. पास है वह। लेकिन खलील जैदी को नादिरा की नौकरी का विचार इतना घटिया लगा कि बात, बहस में बदली और नादिरा के चेहरे पर उंगलियों के निशान बनाने के बाद ही रुकी। इसका नतीजा यह हुआ कि नादिरा ने पाकिस्तान से आई उन लड़कियों के लिए लड़ने का बीड़ा उठा लिया है जो अपने पतियों एवं सास ससुर के व्यवहार से पीड़ित हैं।
खलील को इसमें भी शिकायत रहती है, “आपका तो हर खेल ही निराला है! मैडम कभी कोई ऐसा काम भी किया कीजिए जिससे घर में कुछ आए। आपको भला क्या लेना कमाई धमाई से। आपको तो बस एक मजदूर मिला हुआ है, वो करेगा मेहनत, कमाएगा और आप उड़ाइए मजे।” अब नादिरा प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती। जैसे ही खलील शुरू होता है, वो कमरा छोड़ कर बाहर निकल जाती है। वह समझ गई है कि ख़लील को बीमारी है—कंट्रोल करने की बीमारी। वह हर चीज, हर स्थिति, हर व्यक्ति को कंट्रोल कर लेना चाहता है—कंट्रोल फ्रीक। यही दफ्तर में भी करता है और यही घर में।
अपने अपने घरों में आबिदा और नादिरा बैठी हैं। आबिदा टी.वी. पर फ़िल्म देख रही है—लगान। वह आमिर खान की पक्की फैन है। उसकी हर फिल्म देखती है और घंटों उस पर बातचीत भी कर सकती है। पाकिस्तानी फिल्में उसे बिल्कुल अच्छी नहीं लगतीं। बहुत लाउड लगती हैं। लाउड तो उसे अपना पति भी मालूम होता है लेकिन इसका कोई इलाज नहीं है उसके पास। उसे विश्वास है कि नादिरा आपा कभी गलत हो ही नहीं सकती हैं। वह उनकी हर बात पत्थर की लकीर मानती है।
लकीर तो नादिरा ने भी लगा ली है अपने और खलील के बीच। अब वह ख़लील के किसी काम में दख़ल नहीं देती। लेकिन खलील की समस्या यह है कि नादिरा दिन प्रतिदिन खुदमुख्तार होती जा रही है। जब से ख़लील जैदी ने घर का सारा खर्चा अपने हाथ में लिया है, तब से वो घर का सौदा सुलुफ भी नहीं लाती। खलील कुढ़ता रहता है लेकिन समझ नहीं पाता कि नादिरा के अहम् को कैसे तोड़े।
नादिरा खलील के अजेंडे से पूरी तरह वाकिफ है, जानती है कि जमींदार खून बरदाश्त नहीं कर सकता कि उसकी रियाया उसके सामने सिर उठा कर बात कर सके। परवेज अहमद के घर हुए बार-बे-क्यू में तो बदतमीजी की हद कर दी थी खलील ने। बात चल निकली थी प्रजातन्त्र पर, कि पाकिस्तान में तो छद्म डेमोक्रेसी है। परवेज स्वयं इसी विचारधारा के व्यक्ति हैं। उस पर नादिरा ने कहीं भारत को विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्र कह दिया। खलील का पारा चढ़ गया। “रहने दीजिए, भला आप क्या समझेंगी”, बस यही कह कर एकदम चुप हो गया। नादिरा ने स्थिति को समझने में गलती कर दी और कहती गई, “परवेज भाई मैं क्या गलत कह रही हूं। भारत का प्रधानमंत्री सिख, वहां का राष्ट्रपति मुसलमान और कांग्रेस की मुखिया ईसाई। क्या दुनिया के किसी भी और देश में ऐसा हो सकता है?”
फट पड़ा था खलील, “आप तो बस हिन्दू हो गई हैं। आप सिंदूर लगा लीजिए, बिन्दी माथे पर चढ़ा लीजिए और आर्य समाज में जा कर शुद्धि करवा लीजिए… लेकिन याद रखिएगा, हम आपको तलाक दे देंगे।” सन्नाटा छा गया था पूरी महफिल में। नादिरा भी सन्न रह गई। उसने जिस निगाह से खलील को देखा अपने इस जीवन में खलील उसकी परिभाषा के लिए शब्द नहीं खोज पाएगा। फिर नादिरा ने एक झटका दिया अपने सिर को और चिपका ली वही मुस्कुराहट अपने चेहरे पर। खलील तिलमिलाया, परेशान हुआ और अंततः चकरा कर कुर्सी पर बैठ गया। महफिल की मुर्दनी खत्म नहीं हो पाई। परवेज शर्मिंदा सा नादिरा भाभी को देख रहा था। उसे अफसोस था कि उसने बात शुरू ही क्यों की। महफिल में कब्रिस्तान की सी चुप्पी छा गई थी।
घर में भी कब्रिस्तान पहुंच गया। नादिरा आम तौर पर खलील के पत्र नहीं खोलती। एक बार खोलने का खमियाजा भुगत चुकी है। लेकिन इस पत्र पर पता लिखा था श्री एवं श्रीमती खलील जैदी। उसे लगा जरूर कोई निमन्त्रण पत्र ही होगा। पत्र खोला तो हैरान रह गई। अपने घर से इतनी दूर किसी कब्रिस्तान में इतनी पहले अपने लिए कब्र आरक्षित करवाने का औचित्य समझ नहीं पाई। क्या उसका घर एक जिन्दा कब्रिस्तान नहीं? इस घर में खलील क्या नर्क का जल्लाद नहीं। घबरा भी गई कि मरने के बाद भी खलील की बगल में ही रहना होगा। क्या मरने के बाद भी चैन नहीं मिलेगा ?
चैन तो उसे दिन भर भी नहीं मिला। पाकिस्तान से आई अनीसा ने आत्महत्या का प्रयास किया था। रॉयल जनरल हस्पताल में दाखिल थी। उसे देखने जाना था, पुलिस से बातचीत करनी थी। अनीसा को कब्र में जाने से रोकना था। अनीसा को दिलासा देती, पुलिस से बातचीत करती, सब-वे से सैंडविच लेकर चलती कार में खाती वह घर वापिस पहुंची।
घर की रसोई में खटपट की आवाजें सुनाई दे रही थीं। यानि कि अब्दुल खाना बनाने आ चुका था। रात का भोजन अब्दुल ही बनाता है। खलील के लिए आज खास तौर पर कबाब और मटन चॉप बन रहीं थीं। नादिरा ने जब से योग शुरू किया है, शाकाहारी हो गई है। उपर कमरे में जा कर कपड़े बदल कर नादिरा अब्दुल के पास रसोई में आ गई है।
अब्दुल की खासियत है कि जब तक उससे कुछ पूछा ना जाए चुपचाप काम करता रहता है। बस हल्की सी मुस्कुराहट उसके व्यक्तित्व का एक हिस्सा है। आज भी काम किए जा रहा है। नादिरा ने पूछ ही लिया, “अब्दुल तुम्हारी बीवी की तबीयत अब कैसी है। और बेटी ठीक है न।”
“अल्लाह का शुक्र है बाजी। मां बेटी दोनों ठीक हैं।” फिर चुप्पी। नादिरा को कई बार हैरानी भी होती है कि अब्दुल के पास बात करने के लिए कुछ भी नहीं होता। अच्छा भी है। दो घरों में काम करता है। कभी इधर की बात उधर नहीं करता।
ख़लील घर आ गया है। अब शरीर थक जाता है। उसे इस बात का गर्व है कि उसने अपने परिवार को जमाने भर की सुविधाएं मुहैया करवाई हैं। नादिरा के लिए बी.एम. डब्लयू. कार है तो बेटे इरफान के लिए टोयोटा स्पोर्ट्स। हैम्पस्टेड जैसे पॉश इलाके में महलनुमा घर है। घर के बाहर दूर तक फैली हरियाली और पहाड़ी। बिल्कुल पिक्चर पोस्टकार्ड जैसा घर दिया है नादिरा को। वह चाहता है कि नादिरा इसके लिए उसकी कृतज्ञ रहे।
नादिरा तो एक बेडरूम के फ्लैट में भी खुश रह सकती है। खुशी को रहने के लिए महलनुमा घर की जरूरत नहीं पड़ती। सात बेडरूम का घर अगर एक मकबरे का आभास दे तो खुशी तो घर के भीतर घुसने का साहस भी नहीं कर पाएगी। दरवाजे के बाहर ही खड़ी रह जाएगी।
“खलील ये आपने अभी से कब्रें क्यों बुक करवा ली हैं? और फिर घर से इतनी दूर क्यों ? कार्पेण्डर्स पार्क तक तो हमारी लाश को ले जाने में भी खासी मुश्किल होगी।”
“भई, एक बार लाश रॉल्स राईस में रखी गई तो हैम्पस्टैंड क्या और कार्पेण्डर्स पार्क क्या। यह कब्रिस्तान जरा पॉश किस्म का है। फाइनेंशियल सेक्टर के हमारे ज्यादातर लोगों ने वहीं दफन होने का फैसला लिया है। कम से कम मरने के बाद अपने स्टेटस के लोगों के साथ रहेंगे।”
“ख़लील, आप ज़िन्दगी भर तो इन्सान को पैसों से तौलते रहे। क्या मरने के बाद भी आप नहीं बदलेंगे। मरने के बाद तो शरीर मिट्टी ही है, फिर उस मिट्टी का नाम चाहे अब्दुल हो नादिरा या फिर खलील।”
“देखो नादिरा अब शुरू मत हो जाना। तुम अपना समाजवाद अपने पास रखो। मैं उसमें दखल नहीं देता तुम इसमें दखल मत दो। मैं इन्तजाम कर रहा हूं कि हम दोनों के मरने के बाद हमारे बच्चों पर हमें दफनाने का कोई बोझ न पड़े। सब काम बाहर बाहर से ही हो जाए।”
“आप बेशक करिए इन्तजाम लेकिन उसमें भी बुर्जुआ सोच क्यों ? हमारे इलाके में भी तो कब्रिस्तान है, हम हो जाएंगे वहां दफन। मरने के बाद क्या फर्क पड़ता है कि हम कहाँ हैं।
“देखो मैं नहीं चाहता कि मरने के बाद हम किसी खानसामा, मोची, या प्लंबर के साथ पड़े रहें। नजम ने भी वहीं कब्रें बुक करवाई हैं। दरअसल मुझे तो बताया ही उसी ने। मैं चाहता हूं कि तुम्हारी जिन्दगी में तो तुमको बैस्ट चीजें मुहैया करवाऊं ही, मरने के बाद भी बेहतरीन जिन्दगी दूं। भई अपने जैसे लोगों के बीच दफन होने का सुख और ही है।”
“खलील अपने जैसे क्यों? अपने क्यों नहीं? आप पाकिस्तान में क्यों नहीं दफन होना चाहते ? वहां आप अपनों के करीब रहेंगे। क्या ज्यादा खुशी नहीं हासिल होगी ?”
“आप हमें यह उल्टा पाठ न पढ़ाएं। इस तरह तो आप हमसे कहेंगी कि मैं पाकिस्तान में दफन हो जाऊं अपने लोगों के पास और आप मरने के बाद पहुंच जाएं भारत अपने लोगों के क़ब्रिस्तान में। यह चाल मेरे साथ नहीं चल सकती हैं आप। हम आपकी सोच से अच्छी तरह वाकिफ है बेगम।”
“खलील हम कहे देते हैं, हम किसी फाइव स्टार कब्रिस्तान में न तो खुद को दफन करवाएंगे और न ही आपको होने देंगे। आप इस तरह की सोच से बाहर निकलिए।”
“बेगम कुरान-ए-पाक भी इस तरह का कोई फतवा नहीं देती कि कब्रिस्तान किस तरह का हो। वहां भी सिर्फ दफन करने की बात है।”
“दिक्कत तो यही है खलील, यह जो तीनों आसमानी किताबों वाले मजहब हैं वो पूरी जमीन को कब्रिस्तान बनाने पर आमादा हैं। एक दिन पूरी जमीन कम पड़ जाएगी इन तीनों मजहबों के मरने वालों के लिए।”
“नादिरा जी, अब आप हिन्दुओं की तरह मुतासिब बातें करने लगी हैं। समझती तो आप कुछ हैं नहीं आप तो यह भी कह देंगी की हम मुसलमानों को भी हिन्दुओं की तरह चिता में जलाना चाहिए।” ख़लील जब गुस्सा रोकने का प्रयास करता है, तो नादिरा के नाम के साथ जी लगा देता है।
“हर्ज ही क्या है इसमें ? कितना साफ सुथरा सिस्टम है। जमीन भी बची रहती है, खाक मिट्टी में भी मिल जाती है।”
“देखिए हमें भूख लगी है। बाकी बात कल कर लेंगे।”
कल कभी आता भी तो नहीं है। फिर आज हो जाता है। किन्तु नादिरा ने तय कर लिया है कि इस बात को कब्र में नहीं दफ़न होने देगी। आबिदा को फोन करती है, “आबिदा, कैसी हो ?”
“अरे नादिरा आपा कैसी हैं आप? आपको पता है आमिर खान ने दूसरी शादी कर ली है। और सैफ़ अली ख़ान ने भी अपनी पहली बीवी को तलाक दे दिया है। इन दिनों बॉलीवुड में मजेदार खबरें मिल रही हैं। आपने शाहरूख की नई फिल्म देखी क्या ? देवदास क्या फिल्म है!
“आबिदा, तुम फिल्मों की दुनिया से बाहर आकर हकीकत को भी कभी देखा करो। तुम्हें पता है कि खलील और नजम कार्पेण्डर्स पार्क के कब्रिस्तान में कब्रें बुक करवा रहे हैं।”
“आपा हमें क्या फर्क पड़ता है? एक के बदले चार चार बुक करें और मरने के बाद चारों में रहें। आपा जब जिन्दा होते हुए इनको सात सात बेडरूम के घर चाहिएं तो मरने के बाद क्या खाली दो गज जमीन काफी होगी इनके लिए। मैं तो इनके मामलों में दखल ही नहीं देती। हमारा ध्यान रखें बस ।.. आप क्या समझती हैं कि मैं नहीं जानती कि नजम पिछले चार साल से बुश्रा के साथ वक्त बिताते हैं। आप क्या समझती हैं कि बंद कमरे में दोनों कुरान शरीफ की आयतें पढ़ रहे होते हैं? पिछले दो सालों से हम दोनों भाई बहन की तरह जी रहे हैं। अगर हिन्दू होती तो अब तक नजम को राखी बांध चुकी होती।”
धक्क सी रह गई नादिरा। उसने तो कभी सोचा ही नहीं कि पिछले पांच वर्षों से एक ही बिस्तर पर सोते हुए भी वह और खलील हम बिस्तर नहीं हुए। दोनों के सपने भी अलग अलग होते हैं और सपनों की जबान भी। एक ही बिस्तर पर दो अलग अलग जहान होते हैं। तो क्या खलील भी कहीं… वैसे उसे भी क्या फर्क पड़ता है।” आबिदा, मैं जाती रिश्तों की बात नहीं कर रही। मैं समाज को ले कर परेशान हूं। क्या यह ठीक है जो यह दोनों कर रहे हैं?
“आपा, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरे लिए यह बातें बेकार सी हैं। जब मर ही गए तो क्या फ़र्क पड़ता है कि मिट्टी कहां दफन हुई। इस बात को लेकर मैं अपना आज क्यों खराब करूं? हां अगर नजम मुझ से पहले मर गए, तो मैं उनको दुनिया के सबसे गरीब कब्रिस्तान में ले जाकर दफन करूंगी और कब्र पर कोई कुतबा तक नहीं लगवाऊंगी। गुमनाम कब्र होगी उसकी। अगर मैं पहले मर गई तो फिर बचा ही क्या?”
ठीक कहा आबिदा ने कि बचा ही क्या। आज जिन्दा है तो भी क्या बचा है। साल भर बीत जाने के बाद भी क्या कर पाई है नादिरा। आदमी दोनों ज़िन्दा हैं लेकिन क़ब्रें आरक्षित हैं दोनों के लिए। खलील और नजम आज भी इसी सोच में डूबे हैं कि नया धन्धा क्या शुरू किया जाए। कब्रें आरक्षित करने के बाद वो दोनों इस विषय को भूल भी गए हैं।
लेकिन कार्पेण्डर्स पार्क उनको नहीं भूला है। आज फिर एक चिट्ठी आई है। मुद्रा स्फीति के साथ साथ मासिक किश्त में पैसे बढ़ाने की चिट्ठी ने नादिरा का खून फिर खौला दिया है। ख़लील और नजम आज ड्राइंग रूम में योजना बना रहे हैं। पूरे लन्दन में एक नजम ही है जो खलील के घर शराब पी सकता है। और एक खलील ही है जो नजम के घर सिगरेट पी सकता है। लेकिन दोनों अपना अपना नशा खुद साथ लाते हैं—सिगरेट भी और शराब भी।
“खलील भाई, देखिए मैं पाकिस्तान में कोई धन्धा नहीं करूंगा। एक तो आबिदा वहां जाएगी नहीं, दूसरे अब तो बुश्रा का भी सोचना पड़ता है, और तीसरा यह कि अपना तो साला पूरा मुल्क ही करप्शन का मारा हुआ है। इतनी रिश्वत देनी पड़ती है कि दिल करता है सामने वाले को चार जूते लगा दूं। ऊपर से नीचे तक सब कर्रप्ट। अगर हम दोनों को मिल कर कोई काम शुरू करना है तो यहीं इंगलैण्ड में रह कर करना होगा। वर्ना आप कराची और हम गोआ। मैं तो आजकल सपनों में वहीं गोआ में रहता हूं। क्या जगह है ख़लील भाई, क्या लोग हैं, कितना सेफ फील करता है आदमी वहां।”
“मियां तुमको चढ़ बहुत जल्दी जाती है। अभी तय कुछ हुआ नहीं तुम्हारे अन्दर का हिन्दुस्तानी लगा चहकने। तुम साले हिन्दुस्तानी लोग कभी सुधर नहीं सकते। अन्दर से तुम सब के सब मुत्तासिब होते हो, चाहे मजहब तुम्हारा कोई भी हो। तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता।”
“तो फिर आप ही कुछ सोचिए ना। आप तो बहुत ब्रॉड-माइन्डेड हैं।”
“वही तो कर रहा हूं। देखो एक बात सुनो…”
नादिरा भुनभुनाती हुई ड्राइंग रूम में दाखिल होती है, “खलील, मैंने आपसे कितनी बार कहा है कि यह कब्रें कैंसिल करवा दीजिए। आप मेरी इतनी छोटी सी बात नहीं मान सकते ?”
“अरे भाभी, आपको खलील भाई ने बताया नहीं कि उनकी स्कीम की खास बात क्या है? उनका कहना है कि अगर आप किसी एक्सीडेन्ट या हादसे का शिकार हो जाएं, जैसे आग से जल मरें तो वो लाश का ऐसा मेकअप करेंगे कि लाश एकदम जवान और खूबसूरत दिखाई दे। अब आप ही सोचिए ऐसी कौन सी खातून है जो मरने के बाद खूबसूरत और जवान न दिखना चाहेगी ?”
“आप तो हमसे बात भी न करें नजम भाई। आपने ही यह कीड़ा इनके दिमाग में डाला है। हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे।… खलील आप अभी फोन करते हैं या नहीं। वर्ना मैं खुद ही कब्रिस्तान को फोन करके कब्रें कैंसिल करवाती हूं।”
“यार तुम समझती नहीं हो नादिरा, कैंसिलेशन चार्ज अलग से लगेंगे। क्यों नुकसान करवाती हो ?”
“तो ठीक है मैं खुद ही फोन करती हूं और पता करती हूं कि आपका कितना नुक्सान होता है। उसकी भरपाई मैं खुद ही कर दूंगी।”
नादिरा गुस्से में नम्बर मिला रही है। सिगरेट का धुंआ कमरे में एक डरावना सा माहौल पैदा कर रहा है। शराब की महक रही सही कसर भी पूरी कर रही है। फोन लग गया है। नादिरा अपना रेफ़रेन्स नम्बर दे कर बात कर रही है। खलील और नजम परेशान और बेबस से लग रहे हैं।
नादिरा थैंक्स कह कर फोन रख देती है। “लीजिए खलील, हमने पता भी कर लिया है और कैन्सिलेशन का आर्डर भी दे दिया है। पता है उन्होंने क्या कहा ? उनका कहना है कि आपने साढ़े तीन सौ पाउण्ड एक कब्र के लिए जमा करवाए हैं। यानि कि दो कब्रों के लिए सात सौ पाउण्ड। और अब इन्फ़लेशन की वजह से उन कब्रों की कीमत हो गई है ग्यारह सौ पाउण्ड यानि कि आपको हुआ है कुल चार सौ पाउण्ड का फायदा।”
खलील ने कहा, “क्या चार सौ पाउण्ड का फायदा, बस साल भर में!” उसने नजम की तरफ देखा। नजम की आंखों में भी वही चमक थी।
नया धन्धा मिल गया था!
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