इसी पल

जब सपाट आवाज़ में
डुबो देती है उदासी
और भूल जाते हो तुम बात करना
ठीक उस वक्त से मैं मुरझाने लगती हूँ
ठूँठ की तरह
क्यों सूखा देते हो तुम मुझे
इस मौसम में जहाँ हम रोंप रहें हैं
अपने सम्बन्धों को एक दूसरे के भीतर
अपनी धीमी आँच में
हमारा प्यार हमें सौंप रहा है
मीठे दर्द से भरे सुख
और
तुम्हारी परेशानियाँ मेरे भीतर
दूर तक पगडंडियों पर भटकती हैं
नींद के बीच
मैं जब देती हूँ थपकियाँ
तुम्हारी जागती सी पलकें
देर रात तक
मुझे भटकाती हैं नींद में
तुम्हारे लिए
मैं बन सकती हूँ नर्म रुई का नमदा
तकिये के भीतर बसी धड़कन
कमर के नीचे पहुँचा नींद का एहसास
माथे पर रुका हुआ हाथ
पर इस से पहले जरूरी है
लौट आए तुम्हारी आवाज़ में ठुमरी सी खनक
आज और इसी पल।

*****

– अनिता कपूर

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