चाय की चुस्की लेते हुए पापा ने पूछा, “नेहा कौन सा विषय सोचा नवीं कक्षा के लिए, साइंस या कॉमर्स?”

कुछ सोचते हुए नेहा बोली, “पापा, साईंस तो बिल्कुल नहीं। यह काट-पीट और ख़ून देखना मेरे बस की बात नहीं। मैं तो कॉमर्स ही लूँगी। कम से कम कल ठाठ से बैंक में ऑफ़िसर तो बन सकूँगी।”

पास बैठी मम्मी और दादी उसकी बात सुनकर खिलखिला उठीं।

प्यार से मुस्कुराकर नेहा का कंधा थपथपाते हुए पापा बोले, “ठीक है बेटा, जिस विषय में दिलचस्पी हो, वही लेना चाहिए। और क्या-क्या नया होगा नवीं कक्षा से?“

आँखों को ऊपर तानते हुए झट से बोली, “पापा, नवीं कक्षा में संगीत और एन.सी.सी भी होती है। आप इनमें से कोई एक को चुन सकते हैं। मेरी बहुत सी सहेलियाँ एन.सी.सी ले रही हैं, मैं भी लेना चाहती हूँ, क्या मैं ले लूँ।”

पापा कुछ कहते उससे पहले ही दादी बोल उठी, “एन.सी.सी लेके क्या सीखेगी? तनकर चलना और बंदूक चलाना, यही ना। भला लड़कियों को कब यह सब शोभा देता है। संगीत सीख, जीवन में कुछ काम आएगा। औरत की ज़ात तो दबी-ढकी ही अच्छी लगती है। वह अपनी पलकें और कंधे ज़रा झुकाकर चले, तो जीवन भर रिश्ते-नाते और घर-गृहस्थी सुर में रहती है, समझी।”

माँ की अवज्ञा करना नहीं चाहते थे; इसलिए बिना कुछ बोले ही पापा उठकर चले गए। मम्मी की ओर गुज़ारिश-भरी निगाहों से नेहा ने ताका, तो बेबस मम्मी ने भी आँखों से समझा दिया कि सम्भव नहीं।

उदास-सी नेहा अपने कमरे में चली गई।

पढ़-लिखकर नेहा बैंक में नौकरी करने लगी। देखते-देखते घर-गृहस्थी वाली भी हो गई। चालीस की उम्र पार करते-करते काम के बोझ से ऐसी दबी कि उसकी कमर जवाब देने लगी।

असहनीय पीड़ा के चलते डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर बोला, “आपकी रीढ़ की हड्डी में कुछ गैप आ गया है। और दो-एक हड्डियाँ अपने स्थान से थोड़ी सी खिसक भी गई हैं। पीड़ा से जल्दी छुटकारा पाने के लिए आप सुबह-शाम व्यायाम करो और ज़रा तनकर चला करो। झुककर चलना रीढ़ के लिए घातक होता है।”

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-कृष्णा वर्मा

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