श्येन परों पर ठहरी हिन्दी
-डॉ. आरती ‘लोकेश’ दुबई, यू.ए.ई.
किसी विदेश भ्रमण के दौरान हर व्यक्ति एक विदेशी भाषा को हर समय सुनने के लिए अपने कानों को तैयार कर घर से निकलता है। यू.ए.ई. की सातों अमीरातों, विशेषकर दुबई और शारजाह घूमते हुए बाज़ारों में अथवा सड़क पर चलते हुए आपको ऐसा आभास भी नहीं होगा कि आप भारत से बाहर एक विदेशी धरती पर खड़े हैं। हर एक स्थान पर हिंदी में बात करते हुए लोग दिख जाएँगे। हिंदी में हँसते-बोलते, मुसकाते-खिलखिलाते लोग यह भ्रम पैदा कर देने में सक्षम हैं कि आप भारत के ही किसी नए हिस्से में हैं। काम के लिए हम भारतीयों की कर्मनिष्ठा, ईमानदारी, लगन व सामंजस्य की क्षमता यहाँ बहुत पसंद की जाती है। इस कारण अन्य भारतीय भाषाओं के साथ हिंदी भी सब जगह फैल गई है।
‘भारतीय जहाँ, हिन्दी वहाँ’ यह तो मुख्य कारण है ही यहाँ आकर हिंदी के कानों में रस घोल जाने का, इसके अतिरिक्त यहाँ के स्थानीय अमीराती लोगों का हिंदी-प्रेम भी इसका मूल कारण है। हिंदी सिनेमा यहाँ के लोगों में बहुत मशहूर है। अमीराती लोग हिंदी फ़िल्म कुछ-कुछ हिंदी भाषा में समझ लेते हैं। साथ ही भारतीय संस्कृति के प्रति खिंचाव उन्हें हिंदी सिनेमा तक ले जाता है जहाँ अरबी भाषा में स्क्रीन पर लिखित भाषांतर संवाद उनकी मदद करते हैं। रुचिकर बात यह है कि सिनेमा से निकलते हुए वे हिंदी गीत गुनगुनाते हुए देखे जा सकते हैं। ‘तू चीज़ बड़ी है मस्त-मस्त’ गीत 1994 में सबकी जबान पर इसी प्रकार चढ़ गया था।
हिंदी सिनेमा के कई गायकों के गीत-संगीत व नृत्य कार्यक्रमों ने भी मधुरिम मनोरंजन का झरना अनेकों बार यहाँ बहाया है। हिंदी सिनेमा का प्रभाव यह है कि इन समारोहों में भारी तादाद में भीड़ जुटती है। आशा भोंसले, येसुदास, एस.पी.बालासुब्रमण्यम, जगजीत सिंह, पंकज उधास से लेकर, कुमार शानु, ए.आर. रहमान, सोनु निगम, अलका यागनिक, श्रेया घोषाल, अरिजीत सिंह, आतिफ़ असलम व राहत फ़तह अली ख़ान आदि की म्यूज़िकल नाइट्स अथवा कॉंसर्ट्स में सुर-लय-ताल के संगम से सारा वातावरण हिंदीमय हो जाता है।
सघन आबादी के देश भारत के भिन्न-भिन्न राज्यों से प्रचुर संख्या में श्रमिक यहाँ पहुँचते हैं। अलग-अलग बोली बोलने वाले इन श्रमिकों को एक-दूसरे से संवाद स्थापना के लिए हिंदी का माध्यम अधिक सुगम लगता है। उर्दू की करीबी भाषा होने के कारण हिंदी समझना उर्दू बोलने वालों के लिए भी सरल होता है। इसी कारण इस देश में चारों तरफ़ हिंदी बोलने वाले लोग देखे जा सकते हैं। साथ ही श्रमिक वर्ग से व्यापार या सरोकार रखने वाले बांग्लादेश, श्रीलंका, फिलीपीन्स, इंडोनेशिया, मिस्र, ईरान, सरबिया, ओमान, बहरेन, फ़िलीस्तीन, सूडान आदि बहुत से देशों के प्रवासी यहाँ हिंदी में ज़रूरी कामचलाऊ बातचीत करना जल्दी ही सीख जाते हैं।
सबसे अधिक आश्चर्य तब होता है जब ‘बर दुबई’ स्थित शिव मंदिर के भूमितल पर स्थित पूजा-सामग्री की दुकानों में आप ईरानी दुकानदारों को हिंदी में सारी बातचीत करते हुए पाते हैं। हम भारतीय यह देखकर गदगद हो उठते हैं। 1958 में स्थापित इस मंदिर परिसर में व्यापार की संभावना से दुकान बनाने पर ईरानी परिवारों ने हिंदी सीखने में सालभर भी न लगाया होगा। तीन पीढ़ियों से यह अब उनका खानदानी पेशा बन गया है। सर्वधर्म समभाव की जीती-जागती मिसाल ये ईरानी परिवार प्रस्तुत करते हैं जो मुस्लिम धर्म के अनुयायी होकर भी पूजा का प्रसाद, फूल, दीप, ज्योत, घंटी और यहाँ तक कि देवी-देवताओं के चित्र व मूर्तियाँ सभी अपनी दुकानों में बिक्री के लिए रखते हैं। यह देखकर आप उन्हें श्रद्धापूर्ण नमन किए बिना नहीं रह सकेंगे।
स्थानीय पुलिस को नागरिकों की सुविधा के लिए हिंदी के शब्द बोलते आप देख सकते हैं तो अस्पताल में डॉक्टर को। ड्राविंग इंस्टीट्यूट में हिंदी जानने वाले प्रशिक्षक से ट्रेनिंग लें और चाहे तो कॉल सेंटर में हिंदीभाषी से वार्तालाप करें। टैक्सी ड्राइवर, चौकीदार, दुकानदार आदि सब अपने काम के लायक हिंदी का प्रयोग करना जानते हैं। कई सड़कों अथवा स्थानों पर साइन बोर्ड में अरबी, अंग्रेज़ी के साथ ही हिंदी भाषा भी लिखी मिलेगी तो कार्यालयों के नोटिस बोर्ड भी हिंदी में मिल जाएँगे। ईद हो या राष्ट्रीय त्योहार, सरकार की ओर से बधाई व शुभकामना संदेश हिंदी में आते हैं तो मन सुखद भाव से भर जाता है। स्थानीय बैंक तथा मोबाइल कंपनियाँ भी हिंदी में लघु संदेश भेज मन प्रसन्न करती रहती हैं।
एफ़.एम रेडियो. पर तो हिन्दी के स्टेशनों की भरमार है। सारा दिन मज़े से बॉलीवुड के गाने सुनकर बिताया जा सकता है। और हाँ, हिंदी में आर.जे. की चक-चक भी सुननी पड़ती है। भूले बिसरे गीत से लेकर लेटेस्ट फ़िल्म के गाने, देश से दूर स्थानीय रेडियो फ़्रीक्वेंसी पर सब सुन सकते हैं। टी.वी पर भारत के सारे हिंदी चैनल तो कमाल है और क्या चाहिए एक भारतीय को परदेस में।
अब यदि हिंदी शिक्षा की बात करें तो पर्याप्त संख्या में भारत के मुख्य ‘केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड’ यानि सी.बी.एस.ई. और आई.सी.एस.ई. बोर्ड के बहुत से विद्यालय भारतीय समुदाय के बच्चों को भारतीय शिक्षा प्रदान करने का काम कई वर्षों से कर रहे हैं। कक्षा दस तक के बच्चों को हिंदी विषय का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है। द्वितीय भाषा के रूप में मलयालम, उर्दू, फ़्रैंच व हिंदी में से किसी एक का चुनाव बालकों को करना होता है तथापि हिंदी लेने वाले छात्रों का प्रतिशत सर्वाधिक रहता है। भारतीय बोर्ड के वाले भारतीय विद्यालयों के अलावा बहुत से अमेरिकन पाठ्यक्रम के स्कूल भी अतिरिक्त विषय के तौर पर हिंदी विषय का विकल्प रखते हैं। कारण है कि कई विदेशी पाठ्यक्रमों वाले विद्यालयों में भी बहुत से भारतीय बच्चे पढ़ते हैं। अभिभावकों का मानना है कि कभी इस स्थान से वापिस अपने देश जाने की स्थिति आए तो बच्चों को अपने देश में पुन: दाखिला मिलने में असुविधा न हो।
सी.बी.एस.ई. स्कूलों की निर्देश भाषा अंग्रेज़ी रहती है फिर भी हिंदी भाषा की मोहक सुगंध का आपको विद्यालय के वातावरण में सर्वत्र भास होता रहेगा। विद्यालयों के दृष्टिकोण से देखें तो छात्रों को हिंदी विषय देना जितना आसान है, हिंदी अध्यापक पा जाना उतना आसान नहीं है। हिंदी साहित्य के ज्ञाता तथा हिंदी प्रशिक्षण प्राप्त लोगों की संख्या यहाँ कम ही है। शैक्षिक स्तर पर हम हिंदी को जानें तो कुछ बातें खुशी देती हैं और कुछ दु:ख भी। यह बात अखरती है कि दसवीं कक्षा के बाद हिंदी पढ़ने का कोई साधन उपलब्ध नहीं है। विश्वविद्यालयों के स्तर पर तो हिंदी पूरी तरह नदारद है।
पाठ्यक्रम से इतर भी भाषा के विकास के लिए समय-समय पर विद्यालयों में हिंदी प्रतियोगिताएँ राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित की जाती हैं जिनसे छात्रों में हिंदी भाषा को बोलने-सुनने व हिंदी में रचना करने की क्षमता का विकास होता है। भारतीय दूतावास (आबु धाबी में स्थित) तथा भारतीय कौंसलावास (दुबई में स्थित) द्वारा भी हिंदी वाचन व लेखन से संबंधी वार्षिक स्पर्धा का आयोजन किया जाता है जिसके द्वारा छात्र-छात्राओं को हिंदी के अधिकाधिक प्रयोग के लिए प्रोत्साहन मिलता है। स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) तथा गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के दिन दूतावास व कौंसलावास में देशभक्ति कार्यक्रमों का आयोजन होता है। 14 सितम्बर, हिंदी दिवस व 10 जनवरी, विश्व हिंदी दिवस पर भी देशभर के बालकों के लिए प्रतियोगिताएँ तथा बड़ों के लिए काव्य गोष्ठियों का आयोजन दूतावास के तत्वावधान में होता है।
यू.ए.ई. में बसे हिंदी प्रेमियों के लिए साहित्य संकायों द्वारा नाटक, नृत्य-नाटिका आदि की प्रस्तुति की जाती है। नाट्य-संस्थाओं से जुड़े कलाकारों को अपनी प्रतिभा के प्रदर्शन का अवसर मिलता है तो दर्शकों को हिंदी की रसधारा का आनंद। प्रतिष्ठित रंगकर्मियों द्वारा प्रसिद्ध नाटकों का मंचन भी खूब धूम मचाता है। अनेक हास्य-कवि सम्मेलनों के अतिरिक्य युवाकवि कुमार विश्वास का कवि सम्मेलन भी यहाँ हुआ है। भारी संख्या में लोगों की भीड़ हिंदी के प्रेम को व्यक्त करने वहाँ जमा होती है। मुनव्वर राणा, अशोक चक्रधर आदि ने भी इस धरा को अपने काव्य की फुहार से संतृप्त किया है। नरेंद्र चंचल द्वारा देवी माँ माता का जगराता भी किया जा चुका है जिसमें उत्तर-भारत के भक्तों की खूब भीड़ जुटी। बर-दुबई स्थित मंदिर के सौजन्य से यदा-कदा भजन-कीर्तन द्वारा भक्ति की गंगा में गोते लगाए जा सकते हैं। कुछ सामुदायिक कार्यक्रमों जैसे- नवदुर्गा, होली, गणेश चतुर्थी, आदि में कुछ हिंदी और कुछ हिंदी-मिश्रित गीत-संगीत सुनने को मिल जाता है।
‘विश्व हिंदी दिवस’ के अवसर पर भारतीय कौंसलावास द्वारा आयोजित काव्य गोष्ठी में मेरी मुलाकात एक अमीराती शायर डॉ. जुबैर फ़ारुक अल-अर्शी से हुई जो हिंदी में कविता, उर्दू में शायरी ऐसी ही उत्कृष्टता से सुना रहे थे जैसे वे अरबी और अंग्रेज़ी में सुनाते हैं। केवल हिंदी-उर्दू की ही 150 पुस्तकों के रचयिता डॉ. जुबैर फारुक अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं और हिंदी-उर्दू पर अपनी पकड़ पर फ़ख्र करते हैं। 35 पुस्तकें तो उनकी हिंदी कविताओं की ही प्रकाशित हैं। बाल्यावस्था से भारतीय मित्रों के साथ खेलते-बढ़े होते हुए उन्होंने हिंदी सीख ली थी। भारत के दौरे पर वे 1984 में पहली बार थे, इसके बाद ही उन्होंने हिंदी में लिखना शुरु किया।[1] है न आश्चर्य की बात! जिसे सुनकर दिल बल्लियों उछलने लगता है।
‘अरबी’ यहाँ की मुख्य व राष्ट्रीय भाषा है। मध्य और उच्च, शिक्षित वर्ग संप्रेषण के लिए अंग्रेज़ी का प्रयोग अधिक करता है। अपने समुदायों के साथ सब अपनी मातृभाषा में ही बेतकल्लुफ़ी महसूस करते हैं। इसके बाद तीसरे नंबर पर हिंदी का स्थान आता है। 2019 में आबुधाबी में न्यायालय की तीसरी अधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को सम्मिलित किया गया।[2] यह निर्णय हम भारतीयों के लिए बहुत गर्व का विषय रहा। न्यायिक मामलों की सुनवाई का हिंदी में किए जाने से मेहनतकश वर्ग को बड़ी राहत मिली।
प्रचुर मात्रा में हिंदी भाषा को पहचान व भारतीय संस्कृति को सम्मान मिलने के पश्चात भी कुछ वर्ष पूर्व तक तो हिंदी की काव्य गोष्ठियों अथवा नाटकों आदि का भी अभाव बहुत खलता था। वर्ष 2020 से कोरोनाकाल में जब ऑनलाइन या आभासी माध्यम से गोष्ठियों की बाढ़-सी आ गई तो यू.ए.ई. में बसे प्रवासियों ने भी इस बहती क्रीक (गंगा के समकक्ष दुबई की जीवनरेखा[3]) में हाथ धो लिए। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक संगोष्ठियों का आयोजन यहाँ हुआ। विदेशों ने भी अपने हाथ बढ़ाकर यहाँ के लेखकों-कवियों को अपने आयोजनों में सम्मिलित किया। यू.ए.ई. के साहित्यकारों ने अंतर्राष्ट्रीय पटल पर खूब वाहवाही बटोरी। आज यह कहते हुए मुझे गर्व होता है कि प्रवासी साहित्यकारों में यू.ए.ई. के कई रचनाकारों का नाम आदर से लिया जाता है।
जहाँ तक मेरी दृष्टि जाती है, अक्टूबर-नवम्बर 2020 में सबसे बड़ा आयोजन ‘टैगोर विश्वविद्यालय’ भोपाल के द्वारा आयोजित हुआ। उनके द्वारा ‘विश्वरंग’ नामक साहित्य व कला महोत्सव में यू.ए.ई. के कई रचनाकारों, संगीतज्ञों, नर्तकों, गायकों-वादकों, कलाभिज्ञों, फ़िल्म-निर्माताओं, व्यवसायियों, समाज-सेवियों से वार्ताओं, साक्षात्कारों अथवा प्रस्तुतियों को विश्वभर के फलक पर दर्शाया गया। इस कार्यक्रम की यू.ए.ई. निदेशक होने के नाते मैं यह दावे से कहना चाहूँगी कि इसे बहुत सारे दर्शक तथा उनकी सराहना मिली। हिंदी का इसमें विशेष योगदान रहा क्योंकि सभी वार्ता-साक्षात्कार इत्यादि पूरी तरह हिंदी में किए गए। हिंदी कार्यक्रमों की कमी की भरपाई होनी शुरु हो गई थी।
साहित्य-सम्मेलनों का यह सिलसिला थमा नहीं, सतत जारी है। श्रीमती पूर्णिमा वर्मन की बरसों पुरानी ‘चौपाल’ 2021 के उत्तरार्ध में फिर महक उठी। कवियों का जमघट उनके घर शारजाह में लगा और खूब काव्य-चर्चाएँ हुईं। 10 जनवरी 2022 ‘विश्व हिंदी दिवस’ की गूँज पूरे देश ने सुनी जब भारतीय कौंसलावास द्वारा ‘एक्सपो 2020’[5] में भारतीय मंडप (pavilion) स्थित रंगगृह में भव्य समारोह का अयोजन हुआ। हिंदी के गौरवशाली इतिहास पर प्रकाश डाला गया, हिंदी व उर्दू कवि सम्मेलन, गीत-संगीत का सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि हुआ। इस कार्यक्रम से उत्साहित होकर कौंसलावास ने पुन: फरवरी में कवि-सम्मेलन का शानदार आयोजन किया जिसका जिम्मा यू.ए.ई. की काव्य संस्था ‘महिला काव्य मंच’ को सौंपा गया। इस संस्था की दुबई और आबुधाबी की इकाइयों ने 2022 में काव्य-गोष्ठियों की झड़ी लगा दी।
हिंदी के प्रसार-प्रसार में प्रयासरत यू.ए.ई. की एक और संस्था श्री आलोक शर्मा द्वारा स्थापित-संचालित ‘एक्ट यूनिवर्सल’ (अथक चेष्टा ट्रस्ट यूनिवर्सल) ने बालकों का हिंदी में रुझान, क्रियात्मकता और नवीन सोच को बढ़ावा देने का अद्भुत काम किया है। यह संस्था गत 3-4 वर्षों से कार्यरत है। 2021 में तीनों राष्ट्रीय पर्व, प्रेमचंद पर्व, हिंदी दिवस, सामाजिक-सांस्कृतिक पर्व; कोई मौका खाली नहीं जाने दिया जब न केवल यू.ए.ई. वरन अन्य खाड़ी देशों और भारतीय बच्चों के लिए कोई प्रतियोगिता, नाटक, कविता वाचन, कहानी वाचन, भाषणादि का मंच न प्रदान किया गया हो। अहिंदीभाषियों द्वारा हिंदी प्रतिभागिता को खूब सराहा गया। इस संस्था द्वारा ‘अनुशीलन’ नामक समूह का गठन किया गया है जिसमें बालकों को हिंदी साहित्य से परिचय करा, उसके रसास्वादन का अवसर दिया जा रहा है। हिंदीप्रेम को पल्लवित करने का यह प्रयत्न बहुत सराहनीय है।
जहाँ तक हिंदी पुस्तकों की बात आती है, पाठयक्रम की पुस्तकों व सहायक पुस्तिकाओं के अतिरिक्त बहुत सीमित संसाधन यहाँ पर हैं। दुकानों पर पुस्तकों की बिक्री के कठोर नियम हैं जिसके चलते विक्रेता हिंदी की पत्रिकाएँ व पुस्तकें बिक्री के लिए नहीं रखते। साल में एक बार लगने वाले ‘शारजाह बुक फ़ेयर’ में कुछ हिंदी की नई पुस्तकों के दर्शन भले हो जाते हों किंतु वास्तव में हिंदी की पुस्तकें अभी विद्यालय परिसर तक ही सीमित हैं। साहित्यानुरागियों को भारत से लाई गई पुस्तकें अदल-बदलकर अपना शौक पूरा करना पड़ता है। इस कार्य में डॉ. नितिन उपाध्ये का बड़ा योगदान है।
शारजाह में श्रीमती पूर्णिमा वर्मन जी की पुस्तकें ‘पूर्वा’, ‘वक्त के साथ’, ‘चोंच में आकाश’, ‘वतन से दूर’; श्री कृष्ण बिहारी जी की ‘दो औरतें’, ‘पूरी हक़ीकत पूरा फ़साना’, ‘नातूर’, ‘चुनी हुई कहानियाँ’, ‘गौर तलब कहानियाँ’, ‘यह बहस जारी रहेगी’, ‘एक दिन ऐसा होगा’, ‘गांधी के देश में’, ‘संगठन के टुकड़े’, ‘मेरे मुक्तक: मेरे गीत’, ‘मेरे गीत तुम्हारे हैं’, ‘मेरी लम्बी कविताएँ’, ‘रेखा उर्फ नौलखिया’, ‘पथराई आँखों वाला यात्री’, ‘पारदर्शियाँ’; बाबू गौतम की ‘कथाकानन’; श्री कुलभूषण व्यास जी की ‘हाइकु इंद्रधनुष’, ‘पुष्करणा रत्न’, ‘सहज अभिव्यक्ति’, ‘प्रगति की ओर’, ‘सहज अभिव्यक्ति भाग-2’; डॉ. संजीव दीक्षित ‘बेकल’ का ‘तिनका-एक सफ़रनामा’, ‘ज़िंदगी-एक सफ़रनामा’, ‘धूप को निचोड़कर’, ‘उड़ना जानता हूँ’; डॉ. शिबिन कृष्ण रैना जी की ‘कश्मीर की श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘बेतुके बोल’ आदि पढ़ने को उपलब्ध हैं।
श्री दिगम्बर नासवा जी की ‘कोशिश माँ को समेटने की’; श्री अरविंद भगानिया जी की ‘हिंदी कविता – एक कोशिश 2020’; श्री अजीत झा की ‘मेरा गाँव मेरा खेत’; अनु बाफना की ‘और कली खिल उठी’, ‘फिर भी इंतज़ार है’; स्नेहा देव की पुस्तक ‘स्पंदन’; भारती रघुवंशी ‘प्रिया’ की ‘यादों का मौसम’, करुणा राठौर ‘टीना’ की ‘हर बात में तेरा ज़िक्र’ तो आपस में बदल ही लेते हैं। इसके अलावा मेरी कुछ पुस्तकें ‘रोशनी का पहरा’, ‘कारागार’, ‘छोड़ चले कदमों के निशाँ’, ‘प्रीत बसेरा’, ‘साँच की आँच’, ‘कुहासे के तुहिन’, ‘कथ्य-अकथ्य’, ‘निर्जल सरसिज’ भी अन्य रचनाकार पढ़ने के लिए ले जाते हैं। इस अभ्यास का उद्देश्य भी यही है कि हम यू.ए.ई. में बसे प्रवासी भारतीय रचनाकार आपस में एक-दूसरे के लेखन-कर्म से परिचित रहें और मरुबिंदु से मरूद्यान में पनपती हिंदी के साक्षी बनें।
राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित (पद्मश्री डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार प्राप्त) श्रीमती पूर्णिमा वर्मन जी वरिष्ठ कवयित्री-लेखिका होने के साथ-साथ ‘अभिव्यक्ति’ तथा ‘अनुभूति’ जाल-पत्रिकाओं की संस्थापक-संपादक हैं। अंतर्जाल (वेब) पर हिंदी की स्थापना करने वालों में उनका नाम अग्रगण्य है। वर्ष 2000 से से अब तक ये दोनों पत्रिकाएँ नियमित प्रकाशित होने वाली विश्व की पहली हिंदी जाल-पत्रिकाएँ हैं। इनके द्वारा उन्होंने प्रवासी तथा विदेशी हिंदी लेखकों को एक साझा मंच प्रदान करने का महत्त्वपूर्ण काम किया है। वे जलरंग, रंगमंच, संगीत तथा हिंदी के अंतर-राष्ट्रीय विकास के अनेक कार्यों से जुड़ी हैं। शारजाह स्थित उनकी आलीशान कुटीर में चाय पीते हुए ‘चौपाल’ में जुड़ने को सभी रचनाकार ललायित रहते हैं (यह सौभाग्य व सान्निध्य केवल यू.ए.ई. के रचनाकारों को सहज सुलभ है)।
आबुधाबी से वर्ष 2006 से ‘निकट’ नामक पत्रिका प्रकाशित करने वाले श्री कृष्ण बिहारी सेवानिवृत्त होने के बाद, गत कुछ वर्षों से प्रयागराज से इस पत्रिका का संपादन-प्रकाशन कर रहे हैं। 2-3 वर्षों से दुबई से ही एक नई जाल-पत्रिका ‘साहित्य अर्पण’ का भी उदय हुआ है। इस पत्रिका की संपादक युवा रचनाकार नेहा शर्मा हैं। अगस्त 2022 से ‘अनन्य यू.ए.ई.’ पत्रिका के संपादन की बागडोर मैंने सँभाल रखी है और यह पत्रिका विश्व हिंदी सचिवालय तथा भारतीय कौंसलावास न्यूयॉर्क से मासिक निकल रही है। श्री विकास भार्गव जैसे साहित्यप्रेमी द्वारा यू.ए.ई. के नए-पुराने सभी रचनाकारों को आगे लाने और जोड़ने का बीड़ा उठाने पर ‘सोच- हिंदी इमाराती चश्मे से’ नामक पुस्तक का उदय हुआ। इस पुस्तक की विशेष बात यह है कि इसकी संकल्पना से मूर्त रूप देने तक का सभी कार्य, अर्थात् प्रकाशन-मुद्रण सब यू.ए.ई. में ही हुआ। इस पुस्तक की उपलब्धि ने भी हिंदी जगत को हिंदी के भविष्य के प्रति आशावान बनाया है। यू.ए.ई. के दृश्य में, श्येन दृष्टि से और आसमानी दिशा में पर लगाए हिंदी अब आगे बढ़ चली है।
सन्दर्भ सूची
[1] https://gulfnews.com/uae/uae-meet-the-emirati-doctor-who-is-a-veteran-of-hindi-and-urdu-poetry-1.85199989
[2] https://gulfnews.com/uae/education/hindi-becomes-abu-dhabi-labour-courts-third-official-language-1.61985699
[3] दुबई क्रीक एक मानवनिर्मित नहर है। धरती को खोदकर समुद्र के पानी को दुबई शहर के अंदर लाया गया है, जैसे नहरों द्वारा नदियों के पानी को लाया जाता है।
[4] यू.ए.ई. में पुस्तकों का सबसे बड़ा सैंटर व पूरे देश में सबसे अधिक स्टोर
[5] तकनीकी प्रदर्शन का विश्व-मेला, जो हर 5 साल में किसी नए देश में लगता है।