तुम मुझसे बात करते रहना , मेरे दोस्त!
तुम मुझसे बात करते रहना , मेरे दोस्त!
क्योंकि जब तुम मुझसे बात करते हो ,
मेरा शहर मुझसे बात करता है।
वो रास्ते जिन पर मैंने
साइकिल से लेकर
मोटरकार तक चलाई है ,
जिन पर सुनहरी सुबहों को दौड़ा हूँ ,
और सुहानी शामों को चला हूँ ,
अचानक मेरे सामने बाँहें फैलाए खड़े हो जाते हैं
और पूछते हैं कि
इतने बरसों बाद
तुमने इधर से गुज़रना
बंद क्यों कर दिया
यकायक ?
अब कब महसूस करेंगे हम
तुम्हारे पैरों की छुअन ?
कब सुनाई देगी
वह पहचानी हुई पदचाप ?
मोहल्ले का नुक्कड़
जहाँ दोस्तों के ठहाके लगते थे
बेसब्री से
गले लिपट जाता है
और पूछता है :
क्या मेरी तरह
तुम्हें भी
सूना सूना लगता है आजकल ?
वो पेड़
जो मेरे बचपन में
पौधे हुआ करते थे,
जिन्होंने मेरे साथ
उम्र के कई पड़ाव पार किये,
कह उठते हैं :
देखो,
अब कैसी ठंडी हवा देते हैं
हम झूम झूम कर।
कब आओगे
हमारे आगोश में?
लोग कहते हैं कि
चाँद तो सारी दुनिया में
एक सा निकलता है,
फिर पता नहीं
मुझे मेरे शहर का चाँद ही क्यों पुकारता है?
झीलें गुनगुनाती हैं,
फ़व्वारे नाच उठते हैं,
वह ज़मीन
जहाँ हमने कंचे खेले थे,
वह आकाश
जहाँ हमने पतंगें उड़ाई थीं,
वह बाग़
जहाँ से अमरूद चुराए थे,
वह मैदान
जहाँ गिर-गिर कर फिर दौड़े थे,
सब अचानक एक साथ बोल उठते हैं ।
इसीलिए कहता हूँ,
तुम मुझसे बात करते रहना,
मेरे दोस्त!
क्योंकि जब तुम मुझसे बात करते हो,
मेरा शहर मुझसे बात करता है।
***
-हरप्रीत सिंह पुरी